Bhiwani News : साफा बांध घोड़ी पर बैठकर बेटी ने थामी घोड़ी की लगाम, गाजे बाजे के साथ निकाला बनवारा

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Bhiwani News : साफा बांध घोड़ी पर बैठकर बेटी ने थामी घोड़ी की लगाम, गाजे बाजे के साथ निकाला बनवारा
गांव खरकड़ी में बेटी का घोड़ी पर बैठकर बनवारा निकालते परिजन।
  • शिक्षक ने अपनी बेटी पायल की शादी में बेटा और बेटी में अंतर नहीं का दिया संदेश

(Bhiwani News) लोहारू। अपना प्रदेश व समाज बदल रहा है, प्राचीन रूढ़िवादी परंपराएं समाप्त हो रही हैं। विवाह-शादियों की परंपराओं में बहुत तेजी के साथ बदलाव आ रहा है। पहले जहां केवल दूल्हे की ही बनवारा निकाला जाता था। परंतु आज बदलते परिवेश के साथ-साथ लोगों की मानसिकता बदली है। पुरानी रूढ़िवादी परंपराओं को तोड़ने को शिक्षित युवा पीढ़ी को सामाजिक व पारिवारिक सहयोग मिलने लगा है।

बेटियों की शादियों में बनवारा निकाले जाने के कई आयोजन सामने आ चुके

अब दुल्हन पर भी घोड़ी पर बैठने लग गई हैं। बेटियों की शादियों में बनवारा निकाले जाने के कई आयोजन सामने आ चुके हैं। रविवार रात को गांव खरकड़ी में पेशे से शिक्षक एवं निजी स्कूल के निदेशक अशोक शर्मा की बेटी पायल ने जब दूल्हे की तरह साफा बांध घोड़ी पर बैठकर उसकी लगाम थामी तो परिजनों और ग्रामीण की खुशी देखने लायक थी। पायल की शादी पांच मार्च को होनी है तथा इससे पूर्व परिवार ने अपनी बेटी को घोड़ी पर बैठाकर उसका बनवारा निकाला। बेटी का बनवारा घोड़ी पर निकाल कर बेटा-बेटी की समानता का संदेश समाज तक पहुंचाया गया।

पायल एक शिक्षित लडक़ी

शादी के इस अवसर पर परिवार की महिलाएं मंगल गीत गाते हुए नाचते हुए बनवारा निकाल रही थीं। पायल एक शिक्षित लडक़ी है तथा उसने बीए, बीएससी, एमए और बीएड तक पढ़ाई कर रखी है। बेटी पायल की शादी से पूर्व उसके पिता अशोक व चाचा बजरंग व कृष्ण शर्मा ने रविवार रात को गांव में न केवल ढोल नगाड़ों के साथ, बल्कि लडक़ी को घोड़ी पर बैठाकर बनवारा निकालकर समाज में सकारात्मक संदेश दिया।

इस मौके पर ताऊ देवदत शर्मा ने कहा कि बेटियों के प्रति जो सोच रूढि़वादी समाज में व्याप्त थी उनका अंत अब होना चाहिए। समाज में रूढि़वादी विचार धाराओं ने असमानता रखी और इसके चलते नारी समाज किसी न किसी रूप में प्रताडि़त होता रहा। समाज की युवा पीढ़ी ऐसी रूढ़िवादियों को अब समूल नष्ट करना चाहती है। इसके लिए ग्रामीणों व अभिभावकों भी को भी उनका साथ देना चाहिए।

बेटियों के जन्म, बेटियों की शिक्षा, बेटियों के वैवाहिक रीति रिवाज आदि आदि में मांगलिक कार्यक्रमों में बेटों के मांगलिक कार्यक्रमों में समानता बदलाव का आगाज हो चुका है। इस बदलते दौर में बेटे और बेटियों में अभिभावक भी फर्क नहीं कर रहे हैं। आज बेटा और बेटी में कोई फर्क नहीं रह गया है।

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