सतनाली। सतनाली क्षेत्र में शिक्षा की अलख व लौ जलाने के लिए गांव सतनाली बास निवासी मा. शिवराम आर्य के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। मा. शिवराम आर्य ने जिस समय सतनाली क्षेत्र में शिक्षा की अलख जगाने का कार्य आरंभ किया उस समय न स्कूलों की संख्या पर्याप्त थी न ही शिक्षा के प्रसार के संसाधन। मा. शिवराम आर्य ने अकेले ही समाज को शिक्षित करने का क्रांतिकारी कदम विपरीत परिस्थितियों में उठाया तथा बाद में उनके इस मिशन को मिले अपार समर्थन व सहयोग से उन्होंने पीछे मुडक़र नहीं देखा।
वर्ष 1948 में प्रथम निजी स्कूल खोलने का श्रेय
जिले में प्रथम निजी विद्यालय को खोलने का श्रेय भी मा. शिवराम आर्य को ही जाता है जो संभवतया स्वतंत्र भारत का भी प्रथम निजी विद्यालय होगा। सतनाली के बालू मिट्टी के टीलों पर जाल के पेड़ की छाया में मा. शिवराम आर्य के प्रयासों से यह विद्यालय वर्ष 1948 में उस समय लगा था जब आजाद भारत मे सभंवत: किसी ने निजी विद्यालय की कल्पना भी नही की होगी। सतनाली व बास के बीच बालू मिट्टी के टिल्ले पर जाल के पेड़ की छाया में युवा अध्यापक प्रभाकर एवं साहित्य रत्न की उपाधि धारक मास्टर शिवराम आर्य द्वारा विद्यालय स्थापित किया गया था। स्वाभिमानी, सत्यवादी, चरित्रवान व निर्भीक व्यक्तित्व के धनी मास्टर शिवराम आर्य को यह प्रेरणा स्वामी केशवानंद महाराज से मिली थी। स्वामी जी का शिक्षा के क्षेत्र में बडा योगदान था एवं मास्टर शिवराम ने दो वर्ष स्वामी जी के सानिध्य मे व्यतीत किए थे।
आजीवन किया शिक्षा का प्रसार
उन दिनों सतनाली में क्षेत्र का एकमात्र लोयर मिडिल स्कूल था जिसमें अध्यापकों की संख्या आधा दर्जन से अधिक थी लेकिन छात्रों की संख्या बहुत ही कम थी। उन दिनों जिला शिक्षा अधिकारी के स्थान पर जिले में स्कूल निरीक्षक होते थे, वे एक बार सतनाली स्कूल के मुआयने पर आए व स्कूल में घटती छात्र संख्या का कारण जानने के बाद वे बणी मे स्थित मास्टर शिवराम आर्य के स्कूल में पहुंच गए। वे स्कूल के वातावरण व शैक्षणिक प्रक्रिया से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने टिब्बे पर बैठे-बैठे ही मास्टर शिवराम आर्य को सतनाली के सरकारी स्कूल में बतौर अध्यापक नियुक्ति पत्र दे दिया। मास्टरजी ने सरकारी स्कूल में छात्रों को प्रवेश दिलाया और अध्यापक के रूप मे स्कूल में पदभार ग्रहण कर लिया। इस प्रकार यह पहला निजी स्कूल करीब डेढ़ वर्ष तक चला। मास्टर शिवराम आर्य शिक्षा विभाग से सेवानिवृत होने के बाद भी आजीवन शिक्षा का प्रसार करते रहे। मा. शिवराम आर्य आज हालांकि हमारे बीच में नहीं है, लेकिन उनका जिक्र आते ही क्षेत्र के लोग शिक्षा के प्रचार व प्रसार में उनके योगदान को याद कर भावुक हो जाते है। मा. शिवराम आर्य ने शिव विचार तरंगिणी शीर्षक से एक जनोपयोगी प्रेरणादायक पुस्तक का प्रकाशन एवं लेखन भी किया। यह पुस्तक आज भी क्षेत्रवासियों के लिए एक पथ प्रदर्शक का कार्य कर रही है।
परिवार भी है शिक्षा को समर्पित
मा. शिवराम आर्य आजीवन शिक्षा के प्रति समर्पित रहे, अब उनका परिवार भी शिक्षा क्षेत्र में सक्रिय है। मा. शिवराम आर्य के पुत्र शक्ति पाल सिंह आर्य जिला शिक्षा अधिकारी के पद से सेवानिवृत हो चुके है तथा उनकी पुत्री संतोष देवी शिक्षा विभाग में प्राचार्या पद से सेवानिवृत्त हो चुकी है। मा. शिवराम आर्य की पुत्रवधु डा. संगीता भी शिक्षा विभाग में अपनी सेवाएं दे रही है तथा शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान को देखते हुए वर्ष 2017 में उनका चयन राज्य शिक्षक पुरस्कार के लिए किया गया था।