• महाशिवरात्रि केवल व्रत और पूजन का पर्व नहीं, बल्कि यह आत्मशुद्धि, साधना और मोक्ष प्राप्ति का द्वार है : “सिद्धगुरु” श्री सिद्धेश्वर ब्रह्मर्षि गुरुवर

(Bhiwani News) तिरुपति। विश्व धर्म चेतना मंच के तत्वाधान में श्री सिद्धेश्वर तीर्थ – ब्रह्मर्षि आश्रम, तिरुपति में श्री महाशिवरात्रि महोत्सव 2025 का भव्य आयोजन किया गया। इस पावन पर्व पर देश विदेश से श्रद्धालु एवं संतजन पहुंचे। इस शुभ अवसर पर “सिद्धगुरु” श्री सिद्धेश्वर ब्रह्मर्षि गुरुवर के दिव्य सान्निध्य में विभिन्न आध्यात्मिक अनुष्ठानों एवं धार्मिक क्रियाकलापों का आयोजन किया गया।

महाशिवरात्रि महोत्सव की शुरुआत सुबह भव्य कांवड़ यात्रा के साथ हुई, जिसमें हजारों की संख्या में महिला और पुरुष श्रद्धालु शामिल हुए। कांवड़ियों ने गंगाजल लेकर भगवान शिव के अभिषेक के लिए आश्रम का भ्रमण किया। श्रद्धालुओं ने “बोल बम”, “हर-हर महादेव”, “ओम नमः शिवाय” जैसे जयघोषों से सम्पूर्ण वातावरण को भक्तिमय कर दिया। इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य शिव भक्ति का प्रसार करना और शिवरात्रि के पावन पर्व पर भगवान शिव का जलाभिषेक करना था।

महाशिवरात्रि महोत्सव के दौरान भक्तों के विशेष आग्रह पर गुरुदेव का पाद प्रक्षालन (चरण धोने का अनुष्ठान) किया गया। भक्तों का मानना था कि महाकुंभ और महाशिवरात्रि का यह दिव्य संगम अत्यंत दुर्लभ संयोग है और इस अवसर पर गुरुदेव के चरणों का प्रक्षालन करना उनके लिए परम सौभाग्य की बात है।

महाशिवरात्रि केवल व्रत और पूजन का पर्व नहीं, बल्कि यह आत्मशुद्धि, साधना और मोक्ष प्राप्ति का द्वार

कार्यक्रम के दौरान “सिद्धगुरु” श्री सिद्धेश्वर ब्रह्मर्षि गुरुवर ने अपने आध्यात्मिक प्रवचनों से भक्तों को शिवरात्रि के महत्व से परिचित कराया। उन्होंने कहा कि महाशिवरात्रि केवल व्रत और पूजन का पर्व नहीं, बल्कि यह आत्मशुद्धि, साधना और मोक्ष प्राप्ति का द्वार है। यह वही रात है जब भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था, और इसी कारण इसे ‘शिव-शक्ति मिलन’ का पावन दिन माना जाता है।

श्री सिद्धेश्वर ब्रह्मर्षि गुरुवर जी ने यह भी बताया कि महाशिवरात्रि की रात्रि को शिव का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है, क्योंकि यह उनकी कृपा प्राप्त करने का सर्वोत्तम अवसर होता है। इस दौरान किए गए जाप, ध्यान और अनुष्ठान भक्तों को आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करते हैं।

भक्ति, श्रद्धा और समर्पण ही सच्ची साधना

गुरुदेव ने अपने कृपा-संदेश में कहा कि भक्ति, श्रद्धा और समर्पण ही सच्ची साधना है। जब मनुष्य अपने अहंकार को त्यागकर गुरु के चरणों में समर्पित हो जाता है, तभी वास्तविक ज्ञान और मुक्ति की प्राप्ति होती है। श्री महाशिवरात्रि महोत्सव के अंतर्गत प्रातः कालसर्प दोष निवारण पूजन से हुई, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया। कालसर्प दोष से पीड़ित व्यक्तियों के लिए यह विशेष पूजन किया गया, जिससे वे अपने कष्टों से मुक्ति प्राप्त कर सकें।

सायं 6 बजे से महा रुद्राभिषेक का आयोजन किया गया, जिसमें चारों प्रहर में महारुद्राभिषेक आश्रम आचार्य पंडित श्रीनिवास श्रीमाली एवं उनके विद्वान पंडितों द्वारा विधिवत् श्रद्धालुओं को कराया। तीनों पहरों में रुद्राभिषेक के साथ-साथ शिव भजनों और शास्त्रीय संगीत की मधुर प्रस्तुति भी दी गई, जिससे वातावरण शिवमय हो गया।

इस भव्य महोत्सव में हजारों की संख्या में गुरु भक्त और श्रद्धालु पहुंचे। भक्तों ने अपनी असीम श्रद्धा के साथ भगवान शिव का जलाभिषेक किया और रात्रि जागरण कर भजन-कीर्तन में लीन रहे। भक्तों के उत्साह और भक्ति ने संपूर्ण आश्रम परिसर को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर दिया।

आश्रम के पंडितों ने इस अवसर पर महाशिवरात्रि से जुड़े विभिन्न धार्मिक प्रसंगों को विस्तार से बताया, जिससे भक्तों को इस पर्व की गहरी आध्यात्मिक समझ प्राप्त हुई। रात्रि के दौरान विशेष भजन संध्या का आयोजन किया गया, जिसमें भक्तों ने भगवान शिव की भक्ति में लीन होकर मनमोहक भजनों का आनंद लिया। भजन संध्या के बाद विशेष आरती का आयोजन हुआ, जिसमें श्रद्धालुओं ने दीप जलाकर भगवान शिव को समर्पित किया।

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