- बाबा के दर्शनों के लिए प्रतिदिन गुजर रहे है श्याम प्रेमियों के पैदल जत्थे
(Bhiwani News) लोहारू। राजस्थान के सीकर जिले में देश के लाखों करोड़ों लोगों की आस्था के प्रतीक बाबा खाटू श्याम के धाम पर फाल्गुन मेला 28 फरवरी से शुरू हो चुका है तथा मेले में शिरकत करने के लिए श्याम भक्तों के पैदल जत्थे लोहारू से होकर गुजर रहे है। राजस्थान की सीमा से सटा होने के कारण प्रदेशभर के विभिन्न स्थानों से रवाना होने वाले पैदल जत्थे लोहारू के रास्ते बाबा श्याम की नगरी के लिए प्रस्थान कर रहे है जिससे यहां का माहौल भी श्याममय होने लगा है।
आराम व जलपान की व्यवस्था के साथ मेडिकल सुविधा भी निशुल्क उपलब्ध करवाई जा रही
11 मार्च तक खाटू में लगने वाले वार्षिक फाल्गुनी लक्खी मेले का लेकर लोहारू व आसपास क्षेत्र के गांवों के श्रद्धालुओं में भी खासा उत्साह देखने को मिल रहा है। क्षेत्र में सड़क मार्गो पर पैदल जत्था के लिए श्याम प्रेमियों द्वारा शिविर लगाकर उनके आराम व जलपान की व्यवस्था के साथ मेडिकल सुविधा भी निशुल्क उपलब्ध करवाई जा रही है। लोहारू के उजाडिय़ा मंदिर में श्याम सेवा समिति द्वारा भंडारा भी लगाया गया है।
प्रतिदिन दर्जनों की संख्या में पैदल जत्थे लोहारू के रास्ते बाबा श्याम के दरबार में हाजिरी लगाने के लिए गुजर रहे है तथा इस दौरान बाबा श्याम के जयकारों से पूरा माहौल श्याम के रंग में रंगता जा रहा है। इस पवित्र धाम की आभा तथा चमक की छटा इस क्षेत्र विशेष में ही नही अपितु सारे देश के कोने-कोने में फैली हुई है।
उल्लेखनीय है कि राजस्थान के खाटू धाम पर हर माह की सुदी एकादशी को छोटे-छोटे मेले लगते रहते हैं मगर वर्ष में दो बार फाल्गुन और कार्तिक माह में लगने वाले मेले राजस्थान में ही नही देश के अन्य राज्यों में भी विशाल माने जाते हैं। यहां पर लगने वाले इन भव्य मेलों में देश के कोने कोने से लाखों श्रद्धालु शिरकत करते हैं। अब की बार भी 28 फरवरी से शुरू हुआ मेला 11 मार्च तक चलेगा तथा इस मेले में शिरकत करने के लिए श्रद्धालुओं के पैदल जत्थे जाने प्रारंभ हो गए है।
ऐसे पड़ा बर्बरीक का नाम श्याम:-
बाबा श्री श्याम के बारे में बुजुर्गों का मत है कि श्री श्याम का असली नाम बर्बरीक था जो कि महाभारत में पांडव पुत्र भीम के पौत्र थे। उनका नाम श्री श्याम क्यों पड़ा? इसके बारे में प्रचलित है कि जब हरियाणा के कुरुक्षेत्र स्थान पर कौरवों और पांडवों के बीच महाभारत का युद्ध चल रहा था तो बर्बरीक तीन बाण और धनुष लेकर रणभूमि में पहुंचा तब श्री कृष्ण ने पूछा कि आप कौन हैं तथा तीन बाण लेकर रणभूमि में क्या करने आए हैं।
इस पर बर्बरीक ने उत्तर देते हुए कहा कि मैं भीम पुत्र घटोत्कच का बेटा बर्बरीक हूं तथा अपने तीन बाणों से सारे संसार को पराजित कर सकता हूं और केवल एक बाण से ही मैं दोनों सेनाओं का संहार कर सकता हंू। यदि आपको विश्वास ना हो तो आप परीक्षा लेकर देख सकते हैं। जहां उन दोनो का वार्तालाप हो रहा था वहां पीपल का एक पेड़ था। श्री कृष्ण ने उसकी परीक्षा लेते हुए कहा कि तुम एक बाण से इस पीपल के सारे पत्ते बींधकर दिखाओ। इतना कहकर श्रीकृष्ण ने पीपल के एक पत्ते को अपने पैरों तले दबा लिया।
श्रीकृष्ण की बात सुनकर बर्बरीक ने बाण चलाया जो पीपल के सभी पत्तों को बींधता हुआ श्रीकृष्ण के पैरों की तरफ आया तो बर्बरीक ने श्रीकृष्ण से कहा कि आप अपने पैर को हटा लीजिए वर्ना पत्ते के साथ आपके पैर में भी छेद हो जाएगा। यह सब देखकर श्रीकृष्ण को उसकी वीरता पर विश्वास हो गया तथा उन्होंने बर्बरीक से पूछा कि वे किसकी तरफ से युद्ध में हिस्सा लेंगे। बर्बरीक ने कहा कि वेे उनकी तरफ से लड़ेंगे जिसका पलड़ा कमजोर होगा।
यह सुनकर श्रीकृष्ण को गहरा आघात लगा तथा उन्हें यह युद्ध कभी ना समाप्त होने वाला युद्ध लगा। तब श्री कृष्ण ने कूटनीति का सहारा लेते हुए कहा कि तुम्हारी वीरता तो साबित हो गई मगर तुम्हारे अंदर दान वीरता का कोई गुण दिखाई नहीं दिया। तब बर्बरीक ने कहा कि आप मुझसे कुछ मांगकर देखिए तब आपको मेरी दान शीलता का पता चलेगा। तब श्री कृष्ण ने कहा कि युद्ध के लिए मुझे एक सच्चे बहादुर का शीश चाहिए, अगर तुम यह कार्य कर सके तो तुम्हारे दानीपन का पता चल जाएगा इतना सुनकर बर्बरीक ने शीश दान करना स्वीकार कर लिया तथा महाभारत का युद्ध देखने की इच्छा प्रकट की।
बर्बरीक की बहादुरी तथा दान शीलता से खुश होकर श्री कृष्ण ने उसे आशीर्वाद दिया
तब कृष्ण ने उसके शीश को ऊंचे पर्वत पर रखवा दिया तथा बर्बरीक के शीश ने सारा युद्ध देखा। बर्बरीक की बहादुरी तथा दान शीलता से खुश होकर श्री कृष्ण ने उसे आशीर्वाद दिया कि तुम कलयुग में मेरे नाम से पूजे जाओगे। इतना कहकर श्री कृष्ण ने शीश को नदी में बहा दिया जो वहां से बहकर खाटू पहुंचा
। तभी से वहां पर श्याम बाबा के भव्य मेले लगते हैं। आज भी लोग उसे शीश के दानी के रूप में जानते हैं। बाबा श्याम के भक्तों की अपार मान्यता व आस्था के चलते श्याम बाबा का मंदिर परिसर भी छोटा दिखाई देता है।
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