(Bhiwani News) लोहारू। राष्ट्रीय एकता व सांप्रदायिक सद्भावना का प्रतीक राजस्थान में गोगाजी की समाधि स्थल पर लगने वाला राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त मेला अबकी बार 27 अगस्त को लग रहा है। देखा जाए तो यह मेला देशभर के लाखों लोगों की धार्मिक आस्था का केंद्र रहा है तथा पूरे भादव माह में लगने वाले इस मेले को लेकर हरियाणा, यूपी, राजस्थान, बिहार, दिल्ली, पंजाब सहित देश के हर कोने में उत्साह रहता है। मध्यकालीन महापुरूष गोगाजी हिंदू, मुस्लिम, सिख संप्रदायों की सहानुभूति व श्रद्धा अर्जित कर एक धर्मनिरपेक्ष लोकदेवता के नाम से पीर के रूप में प्रसिद्ध हुए। गोगाजी का जन्म राजस्थान के ददरेवा चूरू में चौहान वंश के राजपूत शासक जैबर की पत्नी बाछल के गर्भ से गुरु गोरखनाथ के वरदान से भादवा सुदी नवमी को हुआ था। एक किवदंती के अनुसार गोगाजी का मां बाछल देवी नि:संतान थी। संतान प्राप्ति के सभी यत्न करने के बाद भी जब संतान सुख नहीं मिला तो संयोग से गुरु गोरखनाथ गोगामेडी के टीले पर तपस्या कर रहे थे। बाछल देवी उनकी शरण मे गई तथा गुरु गोरखनाथ ने उन्हे पुत्र प्राप्ति के वरदान दे दिया और कहा कि वे अपनी तपस्या पूरी होने पर ददरेवा आकर प्रसाद देंगे जिसे ग्रहण करने पर उन्हे संतान की प्राप्ति होगी। तपस्या पूरी होने पर गुरु गोरखनाथ बाछल देवी के महल पहुंचे। उन दिनों बाछल देवी की सगी बहन काछल देवी अपनी बहन के पास आई हुई थी।
गोगाजी का राज्य सतलुज से हांसी (हरियाणा) तक था
गुरु गोरखनाथ से काछल देवी ने प्रसाद ग्रहण कर लिया और दो दाने अनभिज्ञता से प्रसाद के रूप में खा गई, परिणामस्वरूप काछल देवी गर्भवती हो गई। बाछल देवी को जब यह पता चला तो वह पुन: गोरखनाथ की शरण में गई। गुरु बोले, देवी! मेरा आशीर्वाद खाली नहीं जाएगा तुम्हे पुत्ररत्न की प्राप्ति अवश्य होगी। गुरु गोरखनाथ ने चमत्कार से एक गुगल नामक फल प्रसाद के रूप में दिया। प्रसाद खाकर बाछल देवी भी गर्भवती हो गई। भादो माह की नवमी को इस प्रकार से गोगाजी का जन्म हुआ। गुगल फल के नाम से उनका नाम गोगाजी पडा। चौहान वंश में राजा पृथ्वीराज के बाद गोगाजी वीर और ख्याति प्राप्त राजा थे। गोगाजी का राज्य सतलुज से हांसी (हरियाणा) तक था। गोगामेडी में गोगाजी का मंदिर एक ऊंचे टीले पर मस्जिद नुमा बना हुआ है, इसकी मीनारें मुस्लिम स्थापत्य कला का बोध कराती है। मुख्य द्वार पर बिस्मिला अंकित है। मंदिर के मध्य में गोगाजी का मजार (कब्र) है। गोगाजी के मंदिर का निर्माण बादशाह फिरोजशाह तुगलक ने कराया था।
संवत 362 में फिरोजशाह तुगलक हिसार होते हुए सिंध प्रदेश को विजयी करने जाते समय गोगामेडी में ठहरा था। रात के समय बादशाह तुगलक व उसकी सेना ने एक चमत्कारी दृश्य देखा कि मशालें लिए घोड़ों पर सेना आ रही है। तुगलक की सेना में हाहाकार मच गया। तुगलक की सेना के साथ आए धार्मिक विद्वानों ने बताया कि यहां कोई महान हस्ती सोई हुई है, वो प्रकट होना चाहती है। फिरोज तुगलक ने लड़ाई के बाद लौटते समय गोगामेडी में मस्जिद नुमा मंदिर का निर्माण करवाया और पक्की मजार बन गई। तत्पश्चात मंदिर का जीर्णोद्धार बीकानेर के महाराज काल में 1887 व 1943 में करवाया गया। गोगाजी का यह मंदिर आज हिन्दू, मुस्लिम, सिख व ईसाईयों में समान रूप से श्रद्धा का केंद्र है। सभी धर्मों के भक्तगण यहां गोगा मजार के दर्शनों हेतु भादव मास में उमड़ पडते है। राजस्थान का यह गोगामेडी नाम का छोटा सा गांव भादव मास में एक नगर का रूप ले लेता है और लोगों का अथाह समुद्र बन जाता है। गोगा भक्त पीले वस्त्र धारण करके अनेक प्रदेशों से यहां आते है। सर्वाधिक संख्या उत्तर प्रदेश व बिहार के भक्तों की होती है। नर-नारियां व बच्चे पीले वस्त्र धारण करके विभिन्न साधनों से गोगामेड़ी पहुंचते है। स्थानीय भाषा में इन्हें पूरवीया कहते है। भक्तजन अपने-अपने निशान गोगा छड़ी लेकर नाचते-गाते ढ़प व डमरू के साथ एक सांप लिए आते है। गोगा को साँपों के देवता के रूप में भी माना जाता है। हर धर्म व वर्ग के लोग गोगाजी की छाया चढ़ाकर नृत्य की मुद्रा में सांकल खाते व पदयात्रा करते तथा गोरखनाथ टीले से लेटते हुए गोगाजी के समाधि स्थल तक पहुंचते है। गोगामेड़ी साम्प्रदायिक सद्भाव व राष्ट्र की अनेकता में एकता की अनूठी मिशाल है।