- 71 दिन तक अवरूद्व रहा था रेवाड़ी-सादुलपुर रेलमार्ग
(Bhiwani News) सतनाली। प्रदेश में बिजली समस्या को लेकर समय-समय पर विभिन्न सरकारों के कार्यकाल में अनेक आंदोलन हो चुके है। बिजली समस्या को लेकर सतनाली खंड के गांव मंढिय़ाली में भी इस तरह का एक आंदोलन पूर्व मुख्यमंत्री चौ. बंसीलाल की सरकार में हो चुका है। यह आंदोलन आज भी मंढिय़ाली कांड के नाम से जाना जाता है। इस आंदोलन में क्षेत्र के अनेक गांवों के किसान बिजली समस्या को लेकर आंदोलन कर रहे थे। उस समय सरकार ने किसानों की मांग को अनसुना कर किसानों पर गोलियां बरसवा दी थी जिसमें पांच किसान अमरचंद नंबरदार, महेंद्र सिंह, वेदप्रकाश बारड़ा, धर्मबीर गोपालवास व मनीराम मंढिय़ाली शहीद हो गए।
इस गोलीकांड से किसानों का आंदोलन तो प्रभावित नहीं हुआ लेकिन मंढिय़ाली कांड की गूंज दिल्ली के गलियारों तक सुनाई दी थी ओर इस कांड ने उस समय की सरकार का तख्ता पलट कर रख दिया था। गौरतलब है कि वर्ष 1997 में तत्कालीन मुख्यमंत्री चौ. बंसीलाल की सरकार में सतनाली क्षेत्र के गांव नावां, सोहड़ी, बासड़ी, श्यामपुरा, सतनाली, सुरेहती पिलानिया, ड़ालनवास, सुरेहती मोडिय़ाना, माधोगढ़, गादड़वास, डिगरोता, सतनाली बास, सुरेहती जाखल, ढ़ाणा समेत दो दर्जन से अधिक गांवों के किसानों ने सरकार से बिजली, पानी सहित किसानों के जले हुए ट्रांसफार्मर बिना बिजली के बिल भरे बदले जाने की मांग की थी। सरकार ने यहां के किसानों की मांगों को नजर अंदाज कर दिया था। इससे यहां के किसानों ने धीरे-धीरे धरने, प्रदर्शन करने आरंभ कर दिए।
सरकार व अधिकारियों ने किसानों की मांग व प्रदर्शनों पर कोई ध्यान नही दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि किसानों ने एक रणनीति तैयार कर मंढिय़ाली कांड को जन्म दिया। मंढिय़ाली कांड के दौरान यहां के किसानों ने रेवाड़ी-सादुलपुर रेल मार्ग को 71 दिनों तक अवरुद्ध रखा और इस कांड में पुलिस की गोलियों से पांच किसान शहीद हो गए थे। इस कांड के बाद तत्कालीन बंसीलाल सरकार का तख्तापलट हो गया था तथा इसकी गूंज दिल्ली की संसद तक सुनाई दी थी। प्रतिवर्ष इस गोलीकांड के शहीदों की स्मृति में बारड़ा स्थित शहीद स्मारक पर श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया जाता है तथा विभिन्न प्रकार की खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है।
किसान संगठनों द्वारा शहीद किसान परिवारों का भी सम्मान किया जाता है, लेकिन बड़े खेद की बात है कि हर वर्ष किसान संगठनों व सरकार द्वारा शहीद किसानों की बरसी पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित तो की जाती है लेकिन उनके परिवारों की सरकार व प्रशासन द्वारा कभी सुध नहीं ली जाती। हालांकि राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि भी श्रद्धांजलि सभा में पहुंचते है तथा चुनावी माहौल में इस कांड को विभिन्न दलों के नेता चुनावी मुद्दे के रूप में भी खूब भुनाने का प्रयास करते है लेकिन सत्ता में आने के बाद फिर से किसानों की मांगों की अनदेखी की जाती है चाहे वह किसी भी दल के हो।
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