(Bhiwani News) भिवानी। वर्ष 1971 के युद्ध में पाकिस्तान के खिलाफ भारत को मिली ऐतिहासिक जीत की याद में हर वर्ष 16 दिसंबर को खानसामा विजय दिवस मनाया जाता है। इसी कड़ी में 21 राजपूत के पूर्व सैनिकों द्वारा स्थानीय हुडा पार्क के समीप एक निजी रेस्तरां में खानसामा विजय दिवस मनाया तथा भारतीय जवानों की बहादुरी के किस्से सुनाएं। इस मौके पर 1971 के भारत-पाक खानसामा युद्ध के चश्मदीद सूबेदार जगदीश सिंह पाली ने बताया कि यह युद्ध तीन दिसंबर 1971 से लेकर 15 दिसंबर 1971 तक चला था।
भारत-पाक युद्ध के बाद 1972 में भेजे गए रिजर्व जवानों को भी बराबर पेंशन दे सरकार : चौहान
उन्होंने बताया कि 11 दिनों तक चले इस युद्ध में 13 दिसंबर का दिन महत्वपूर्ण था। उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी सेना ने खानसामा में एक पक्का डिफेंस बनाकर भारतीय जवानों को खानसामा से पहले रोक दिया था। उस समय 21 राजपूत को आदेश मिला था कि वे खानसामा पर कब्जा करे। उन्होंने बताया कि ये हमला 13 दिसंबर की रात में होना था, लेकिन 21 राजपूत के जवानों ने रात की बजाए दिन में हमला करने का निर्णय लिया तथा रात से पहले ही खानसामा को अपने कब्जे में ले लिया।
उन्होंने बताया कि इसके बाद पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया था। सूबेदार जगदीश सिंह पाली ने बताया कि इस युद्ध का परिणाम ने पाकिस्तान का विभाजन और पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) की स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त किया।
इस मौके पर 21 राजपूत के पूर्व सैनिक महेश चौहान ने कहा कि यह युद्ध ना केवल सैन्य शक्ति के प्रदर्शन का उदाहरण था, बल्कि मानवीय हस्तक्षेप की आवश्यकता और अंतरराष्ट्रीय राजनीति में उसके प्रभाव को भी दर्शाता है। महेश चौहान ने कहा कि भारत-पाक युद्ध के बाद 1972 में भेजे गए रिजर्व जवानों को अभी तक भी केवल 10 हजार रूपये मासिक पेंशन दी जाती है, जो कि बहुत कम है। ऐसे में वे सरकार से मांग करते है कि भारत-पाक युद्ध के बाद 1972 में भेजे गए रिजर्व जवानों को भी बराबर पेंशन देकर मान सम्मान दिया जाए।
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