बरनाला (अखिलेश बंसल) भारत रत्न नंदा को समझने के लिए श्रीमद भगवत गीता के 10वें अध्याय का अध्ययन करना होगा, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी विभूतियों का वर्णन करते हुए पांडवानां धनंजय अर्थात पांडवों में अर्जुन हूं कहा है। अत: एक विश्लेषक, पत्रकार और नंदा अनुयायी के शब्दों में महात्मा गांधी यदि अपनी विभूतियों का स्पष्टीकरण करते तो निश्चय ही कहते मनुष्यों में वह गुलजारी लाल नंदा हैं। रोमा रोला के ये शब्द यदि चेहरा सुन्दर है तो दर्पण में उसका प्रतिबिम्ब भी सुन्दर होगा। इसी प्रकार यदि आत्मा शुद्ध है तो उसके बाहर जो कुछ होगा वह भी निर्विकार होगा। नन्दा जी के प्रसंग में यह शब्द उतने ही सही प्रतीत होते है जितने की गांधी जी के प्रसंग में उनकी सार्थकता है।
नंदा जी थे महात्मा
भारतरत्न श्री नन्दा जी सच्चे महात्मा थे, गांधी गंगा से अधिकाधिक जल लेने के लिये आजीवन अधिकाधिक पात्रता प्राप्त करने की साधना की, गांधीवाद को सामाजिक परिवर्तन का सबसे बड़ा हथियार मानते रहे। जसको लेकर कोटिल्य ने श्री नंदा को महात्मा का दर्जा देते उनके गुण धर्म का विवेचन करते हुए लिखा कि मनस्येकं वचस्येकं कर्मण्येकं महात्मना अर्थात जिनके मन, वचन और कर्म तीनों में एक ही भाव रहता है वह महात्मा है। इन अर्थो में गांधी जी के विचारों में ही उन्हें मानवता की मुक्ति का मार्ग दिखाई दिया।
खो दी संघर्ष और त्याग युग की कड़ी
15 जनवरी 1998 को जब नंदा जी की अहमदाबाद में मृत्यु हुई तब तत्कालीन राष्ट्रपति श्री के.आर. नारायणन ने कहा कि ह्यह्यनंदा जी के निधन से भारत देश ने संघर्ष तथा त्याग के गांधीवादी युग की कड़ी खो दी, जिसकी भरपाई संभव ही नहीं है। दो बार देश के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली तथा वर्षों तक केंद्रीय मंत्री रहे गुलजारीलाल नंदा जी की सात्विक जिज्ञासा ने अहंकार को कभी अपने जीवन के निकट नहीं आने दिया। उन्हें अहमदाबाद, इंदौर, मुंबई में आजादी के बाद उन्हें कुरुक्षेत्र सबसे प्रिय था क्योंकि यहीं श्रीकृष्ण ने अर्जुन को निष्काम कर्म का उपदेश दिया था।
उपलब्धियां जो बन गई इतिहास
भारत रत्न नंदा ने हरियाणा कैथल कुरुक्षेत्र से दो बार निर्वाचित होकर लोकसभा में अपने गौरन्वित निवार्चन क्षेत्र के विकास की आवाज में खुद को कर्मयोगी साबित किया, परिणाम स्वरूप उनके द्वारा बनाया गया ऐतिहासिक स्वरूप का ब्रह्मसरोवर दुनिया के एशिया में कहीं और दिखाई नहीं देता। नन्दा जी ने 1962 में बेहतर खाद्यान्न पर कई कार्य किये वे तीन पंचवर्षीय योजनाओं के उपाध्यक्ष रहे। तीन बार भारत के गृह मंत्री रूप में उन्होंने लोकपाल का मार्ग स्वस्थ करने के लिए लोकायुक्तों की स्थापना की। श्रमिक राजनीति के जनक के रूप में इंटक जैसी संस्था देश को दी। उद्योग व मजदूर पक्ष में कई नीतियां (काम का निर्धारित समय, बोनस वेतन आयोग की सिफारिश, गुमास्ता कानून, औद्योगिक बिल इत्यादि) देश के लिए इतिहास हैं।