- आंदोलन करने के बाद भारत रत्न नन्दा ने श्रमिकों के पक्ष में पारित करवाए थे औद्योगिक बिल-1926 और पंच कानून।
- श्रद्धांजली देते वक्त प्रादेशिक सरकारों को करना होगा श्रमिकों के लिए विशेष योजनाओं और पुरस्कारों की करनी होगी घोषणाः चेयरमैन- गुलजारी लाल नन्दा फाऊंडेशन।
Aaj Samaj, (आज समाज),Bharat Ratna Gulzari Lal Nanda,अखिलेश बंसल, बरनाला: स्वाधीन भारत को श्रमिक दमन अत्याचार शोषण से मुक्त कराने व श्रमिकों के लिए काम के 8 घंटे निर्धारित कराने, बोनस तथा श्रमिकों के लिए पीएफ जैसी नीतियां श्रम कानून में दर्ज कराने जैसे महान कार्य तत्कालीन श्रम मंत्री श्री गुलजारीलाल नंदा जी का अहम योगदान रहा है। जिन्हें गांधीवादी श्रमिक राजनीति के जनक की संज्ञा से निवाजा गया और उन्हें भारत रत्न से पुरस्कृत किया गया था। हैरानी इस बात की है कि इस पुण्यात्मा जिसने श्रमिकों को उनके अधिकार दिलाने में पूरी जिंदगी लगा दी और मृत्यु होने तक श्रमिकों के लिए समर्पित रहे उन्हें आज देश ने भुला दिया है।
जो इतिहास में है दर्ज
भारतरत्न नंदा जी इंट जैसी श्रमिक संस्था के निर्माता रहे। उन्होंने 1916 में कानून की डिग्री का काला कोट आगरा से ही पहना था। साल 1921 में नन्दा जी अर्थ शास्त्र के प्रोफेसर के रूप में श्रमिक शोध के लिए गांधी जी के नजदीक आये थे। अंग्रेजों की नौकरी छोड़ गांधी जी के शिष्य बन गए। गांधी जी ने युवा नन्दा की तेज रफ्तार कार्यप्रणाली को देखते एक वर्ष बीतते ही 1922 में मजदूर महाजन संघ का सचिव मनोनीत कर दिया। जिसके बाद युवा नन्दा श्रमिकों के मार्गदर्शक बन गए।
आंदोलन कर श्रमिकों व उद्योग के लिए पारित करवाए बिल
नन्दा जी ने दबे कुचले मजदूर वर्ग के लिए अहमदाबाद, मुंबई, इंदौर में दमन के खिलाफ आवाज उठाई। वे अहमदाबाद नगर परिषद 1926 में इतने लोक प्रिय हुए कि पार्षद भी चयनित हुए और स्टैंडिंग कमेटी के अध्यक्ष भी बन गए। तत्कालीन इंदौर होलकर राज्य में मजदूर दमन की आग झुलस रहा था। बे-हिसाब काम कोई समय सीमा नही थी, ना छुट्टी, ना कोई बोनस था। नन्दा जी ने होलकर राज्य के समक्ष पंच कानून प्रस्ताव रखा। काम की समय सीमा 8 घंटे निश्चित करने और मजदूरी बढ़ाने पर होलकर राज्य इंदौर टस से मस नही हुआ। फिर अनिश्चितकालीन आंदोलन में नन्दा की योजना कारगर हुई, पंच कानून का प्रस्ताव पारित हुआ, काम की सीमा तय हुई और देश मे औद्योगिक बिल-1926 बना। गौरतलब है कि इस आंदोलन में होलकर राज्य के पीएम को त्यागपत्र तक देना पड़ा था।
श्रमिक आंदोलन को आजड़ो की लड़ाई में अस्त्र बनाने वाले नन्दा जी ने श्रमिकों को आजादी की लड़ाई का सिपाही बना दिया। अंग्रेजों की सरकार में समझौता हुआ प्रांतीय संयुक्त सरकारें बनीं, जिसमें नन्दा जी एक्साइज एवं श्रम मंत्री बने। वर्ष 1946 की शुरुआत होने के साथ ही नंदा जी मुंबई शाशन में श्रम आवास उद्योग मंत्री बने। नन्दा जी ने औद्योगिक विवाद बिल पास करवाया। गुमास्ता कानून दिया। यह कानून आगे चलकर कई देशों के लिए यह कानून प्ररेणास्तंभ बना।
सपना जो है अधूरा
देश आजाद हुआ तो नंदा जी को नेहरू मंत्री मंडल में योजना आयोग का उपाध्यक्ष बना दिया गया। श्रम मंत्री के रुप में उन्होंने श्रमिक हक में कई नीतियां बनायी। वह 3 बार भारत के ग्रह मंत्री रहे, 3 बार योजना आयोग के उपाध्यक्ष रहे। उन्होंने ही लोकपाल के लिए लोकायुक्त स्थापना द्वारा रास्ता बनाया। देश के इतिहास में पहले ग्रहमंत्री थे। दो दर्जन से ज्यादा संस्थाओं के निर्माता एवं केंद्रीय मंत्री, 2 बार अंतरिम प्रधानमंत्री रहे उसके बावजूद नन्दा जी आजीवन किराए के मकान में रहे। अपने लिए एक मकान तक जोड़ नहीं पाने वाले सदाचार की ध्वजा नन्दा जी को नैतिक युग पुरुष कहा जाता है। राष्ट्रपति भवन उनके नाम का नैतिक पुरुस्कार गुलजारीलाल नन्दा फाउंडेशन मंच से देता है। नंदा जी ने भ्रष्टाचार मुक्त भारत की घोषणा 1963 में लोक सभा में की थी। दुख की बात है कि उनके अंतिम सांस लेने के बाद देश की सत्ता पर काबिज हुए नेताओं ने भ्रष्टाचार मुक्त भारत के सपने को साकार नहीं होने दिया।
श्रमिकों को वोटबैंक बनाने की जगह करना होगा कुछः जीएनएफ
विश्वस्तर पर भारतरत्न श्री गुलजारी लाल नंदा जी के नाम पर स्थापित संस्था गुलजारी लाल नन्दा फाऊंडेशन (जीएनएफ) के चेयरमैन कृष्ण राज अरुण जो कि वरिष्ठ पत्रकार भी हैं उन्होंने पंजाब सरकार के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान सहित देशभर की प्रादेशिक सरकारों के मुख्यमंत्रियों से अपील की है कि अगर वे श्रमिकों के लिए कुछ करना ही चाहते हैं तो श्रमिकों के लिए भारतरत्न श्री गुलजारी लाल नंदा के नाम पर विशेष योजनाओं और पुरस्कारों की घोषणा करनी होगी। नंदा जी के अधूरे सपनों को पूरा करना होगा। पाठ्य पुस्तकों में उनके लेख शामिल करने होंगे। उन्होंने देशभर के राजनेताओं से भी अपील की है कि वे श्रमिकों को वोटबैंक नहीं बनाएं और वोटबैंक जुटाने के लिए उन्हें नशे व नोटों का लालच नहीं दे।
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