समालखा कस्बे से पांच किलोमीटर दूर चुलकाना गांव अब सिर्फ गांव न रहकर. चुलकाना धाम के नाम से प्रसिद्ध

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समालखा कस्बे से पांच किलोमीटर दूर चुलकाना गांव अब सिर्फ गांव न रहकर. चुलकाना धाम के नाम से प्रसिद्ध
समालखा कस्बे से पांच किलोमीटर दूर चुलकाना गांव अब सिर्फ गांव न रहकर. चुलकाना धाम के नाम से प्रसिद्ध
आज समाज डिजिटल, पानीपत:
पानीपत। “जहां दिया शीश का दान वह भूमि है चुलकाना धाम।। जहां प्रकट हुए बाबा श्याम वह भूमि है खाटू धाम।।”
चुलकाना धाम की वह पावन धरा जहां बाबा श्याम जी ने अपने शीश का दान दिया। यह वही पावन धरा है जहां श्री कृष्ण भगवान जी ने महाबली दानी वीर बर्बरीक जी को विराट स्वरूप के दर्शन दिखलाए। समालखा कस्बे से पांच किलोमीटर दूर चुलकाना गांव अब सिर्फ गांव न रहकर, चुलकाना धाम के नाम से प्रसिद्ध है। श्री श्याम खाटू वाले का प्राचीन ऐतिहासिक मंदिर चुलकाना गांव में है। जैसे ही गांव में मंदिर की स्थापना हुई और खाटू नरेश चुलकाना नरेश भी बन गए। चुलकाना धाम को कलिकाल का सर्वोत्तम तीर्थ माना गया है।

 

समालखा कस्बे से पांच किलोमीटर दूर चुलकाना गांव अब सिर्फ गांव न रहकर. चुलकाना धाम के नाम से प्रसिद्ध
समालखा कस्बे से पांच किलोमीटर दूर चुलकाना गांव अब सिर्फ गांव न रहकर. चुलकाना धाम के नाम से प्रसिद्ध

महाभारत काल से है संबंध

चुलकाना धाम का संबंध महाभारत से जुड़ा है। पांडव पुत्र भीम के पुत्र घटोत्कच का विवाह नामक दैत्य की पुत्री कामकन्टकटा के साथ हुआ। इनका पुत्र बर्बरीक था। बर्बरीक को महादेव एवं विजया नामक देवी का आशीर्वाद प्राप्त था। उनकी आराधना से बर्बरीक को तीन बाण प्राप्त हुए, जिनसे वह सृष्टि तक का संहार कर सकते थे। बर्बरीक की माता को संदेह था कि पांडव महाभारत युद्ध में जीत नहीं सकते। पुत्र की वीरता को देख माता ने बर्बरीक से वचन मांगा कि तुम युद्ध तो देखने जाओ, लेकिन अगर युद्ध करना पड़ जाए तो तुम्हें हारने वाले का साथ देना है। मातृभक्त पुत्र ने माता के वचन को स्वीकार किया, इसलिए उनको हारे का सहारा भी कहा जाता है। माता की आज्ञा लेकर बर्बरीक युद्ध देखने के लिए घोड़े पर सवार होकर चल पड़े। उनके घोड़े का नाम लीला था, जिससे लीला का असवार भी कहा जाता है। युद्ध में पहुंचते ही उनका विशाल रूप देखकर सैनिक डर गए।

शीश को धड़ से अलग कर श्री कृष्ण को शीश दान कर दिया

श्री कृष्ण ने उनका परिचय जानने के बाद ही पांडवों को आने के लिए कहा। श्री कृष्ण लीला रच एक ब्राह्मण का वेश धारण कर बर्बरीक के पास पंहुचे। बर्बरीक उस समय पूजा में लील थे। पूजा खत्म होने के बर्बरीक ने ब्राह्मण रूप में श्री कृष्ण को कहा कि मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं? श्री कृष्ण ने कहा कि जो मांगू क्या आप उसे देंगे। बर्बरीक ने कहा कि मरे पास देने के लिए कुछ नहीं है, फिर भी आपकी दृष्टि में कुछ है तो मैं देने के लिए तैयार हूं। श्री कृष्ण ने शीश का दान मांगा।

बर्बरीक ने देवी देवताओं का वंदन किया

बर्बरीक ने कहा कि मैं शीश दान दूंगा, लेकिन एक ब्राह्मण कभी शीश दान नहीं मांगता। आप सच बताएं कौन हो? श्री कृष्ण अपने वास्तविक रूप में प्रकट हुए तो उन्होंने पूछा कि आपने ऐसा क्यों किया? तब श्री कृष्ण ने कहा कि इस युद्ध की सफलता के लिए किसी महाबली की बली चाहिए। धरती पर तीन वीर महाबली हैं मैं, अर्जुन और तीसरे तुम हो, क्योंकि तुम पांडव कुल से हो। रक्षा के लिए तुम्हारा बलिदान सदैव याद रखा जाएगा। बर्बरीक ने देवी देवताओं का वंदन किया और माता को नमन कर एक ही वार में शीश को धड़ से अलग कर श्री कृष्ण को शीश दान कर दिया। श्री कृष्ण ने शीश को अपने हाथ में ले अमृत से सींचकर अमर करते हुए एक टीले पर रखवा दिया।

चुलकाना धाम दूर दूर तक प्रसिद्ध

मंदिर पुजारी मोहित शास्त्री जी ने बताया कि चुलकाना धाम दूर दूर तक प्रसिद्ध हो गया है। श्याम बाबा के दर्शन के लिए हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली समेत अन्य राज्यों से भक्त आते हैं। मंदिर में श्याम बाबा के अलावा हनुमान, कृष्ण बलराम, शिव परिवार सहित अन्य देवी देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं। बताया कि फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी व द्वाद्वशी को श्याम बाबा पर विशाल मेले को आयोजन किया जाता है। दूर दराज से लाखों की तादाद में भक्त मंदिर में आकर कर सुख समृद्धि की कामना करते हैं।

बाबा यहां अपनी शक्ति के चमत्कार दिखाता रहता है

उसी महाभारत काल से यहां श्री श्याम बाबा की पूजा अर्चना हो रही है। समय समय पर बाबा यहां अपनी शक्ति के चमत्कार दिखाता रहता है। वीर बर्बरीक संव्य श्री श्याम रूप में यहां साक्षात विराजमान है। यही वो धरती है जहां श्याम ने बर्बरीक को श्याम के नाम से पुकारा था और अपनी कलां अपना नाम अपना रूप वीर बर्बरीक को आशीर्वाद के रूप में दे दिया था। आज भी श्री श्याम बाबा मन्दिर में एक तरफ श्री ठाकुरजी और बलराम जी विराजमान है।

पिपल के पत्तों में आज भी छेद

पीपल का पेड़ है। पीपल के पेड़ के पत्तों में आज भी छेद हैं, जिसे मध्ययुग में महाभारत के समय में वीर बर्बरीक ने अपने बाणों से बेधा था। इसी पावन धरा पर श्री कृष्ण भगवान जी ने ब्राह्मण स्वरूप लेकर वीर बर्बरीक जी की परीक्षा ली आज भी वह पीपल का वृक्ष चुलकाना धाम मंदिर के प्रांगण में स्थित है जिसके प्रत्येक पत्ते में छेद दिखाई देते हैं।
फाल्गुन के महीने में चुलकाना धाम में श्याम बाबा भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। यह महीना बाबा श्याम का पवित्र महीना है, क्योंकि इस महीने में शुक्ल पक्ष की द्वादशी को वीर बर्बरीक ने अपने शीश का दान भगवान श्रीकृष्ण को इसी तपोभूमि पर दिया था। बताने योग्य है कि चुलकाना धाम में श्री श्याम बाबा का बहुत ही प्राचीन धाम है। जहां पर प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु दर्शन करने के लिए आते हैं और फाल्गुन के महीने में श्रद्धालुओं की संख्या लाखों में होती है।