कांग्रेस और बसपा में जमकर जुबानी तीर चले और एक दूसरे पर हमले हुए। कांग्रेस के बसें देने के प्रस्ताव पर मायावती के विरोध और मजदूरों की दुर्दशा के लिए उसे ही जिम्मेदार बताने पर पीएल पुनिया ने जवाब दिया। याद रहे ये वही पुनिया हैं जो मायावती के दो सरकारों में उनके सबसे विश्वस्त अफसर रहे हैं। माया जब पहली बार यूपी की सीएम बनीं तो पुनिया उनके प्रमुख सचिव थे और अब कांग्रेस के शीर्ष दलित नेताओं में शुमार है। मजदूरों की दुर्दशा पर कांग्रेस को जिम्मेदार बताने पर पुनिया ने कहा कि मायावती भी इतने दिनों तक मुख्यमंत्री रहीं उन्होंने मजदूरों के लिए क्या किया। मायावती ने मजदूरों की दुर्दशा के कांग्रेस को जिम्मेदार बताते हुए बसें देने को नौटंकी करार दिया था।
पुनिया कहते हैं कि प्रदेश में दलितों-वंचितों के खिलाफ हो रहे उत्पीड़न पर मायावती जी क्यों नहीं बोलती हैं? बहन जी और भाजपा के अंदरखाने समझौता हो गया है और मायावती जी भाजपा की अघोषित प्रवक्ता हैं। कांग्रेस नेताओं के आरोपों के जवाब में मायावती ने कहा कि हमारी आवाज पर बसों की व्यवस्था हुई जबकि मजदूरों की बदहाली के लिए कांग्रेस-भाजपा दोनों बराबर की जिम्मेदार हैं। उन्होंने कांग्रेस के आरोपों का खंडन किया। बसपा सुप्रीमों कहती हैं कि जब प्रवासी मजदूरों की आड़ में बीजेपी और कांग्रेस ने एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाकर घिनौनी राजनीति शुरू कि तब मुझे बोलना पड़ा कि आज पूरे देश में प्रवासी श्रमिकों की जो दुर्दशा है उसके लिए जितनी बीजेपी जिम्मेदार है उससे कहीं ज्यादा कांग्रेस जिम्मेदार है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस अपनी कमजोरियों को छुपाने के लिए बसपा के बारे में ये तक कहने लगी है कि वो भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने वाली है। मायावती ने कहा इसमें जरा भी सच्चाई नहीं है। हमारी पार्टी कांग्रेस और भाजपा के साथ मिलकर कोई भी चुनाव नहीं लड़ने वाली है। इससे पहले दो दिन लगातार ट्वीट कर मजदूरों को ढोने के लिए बसें देने के प्रस्ताव पर मायावती ने कांग्रेस पर जमकर हमला बोला था। मायावती का कहना था कि यह सब नौटंकी के सिवा कुछ नही है। इन सब घटनाक्रमों के बीच बड़ा सवाल तो यही है कि आखिर कांग्रेस द्वारा श्रमिकों की इस मदद से मायावती क्या दिक्कत है? जब वह इन श्रमिकों के बीच से पूरी तरह से गायब हैं तब कांग्रस के खिलाफ इस बयानबाजी का क्या मतलब निकाला जाए ? उत्तर भारत का दलित समुदाय सबसे ज्यादा असंगठित क्षेत्र में ही काम करता है। इस अचानक उपजे लॉक डाउन के कारण उस पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है। उसके पास जिंदगी जीने की आवश्यक वस्तुएं नहीं रह गयी हैं। ऐसी स्थिति में इस समुदाय का नेता होने का दावा करने वाली मायावती को जहां इस तबके की परेशानियों को देखते हुए जमीन पर आकर सरकार से सवाल पूछते हुए इस समुदाय की भरपूर मदद करना चाहिए था, वहीं ठीक इसके उलटे वह कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोलकर संघ और भाजपा की मदद कर रही हैं। उनके कई बयान यह साबित करते हैं कि उन्हें इस देश-प्रदेश के दलितों के हित से ज्यादा मोदी सरकार की चिंता है। वह नहीं चाहती हैं कि नरेन्द्र मोदी सरकार के इस दलित-पिछड़े और मजदूर विरोधी चरित्र पर कोई सवाल उठाया जाए। आखिर ऐसा क्यों है?
दरअसल इस सवाल को समझने के लिए बसपा की पूरी राजनैतिक प्रैक्टिस और कांशीराम की राजनीति को देखा जाना चाहिए। कहा जाता है कि अपने मूल में बसपा की स्थापना संघ परिवार के उस प्रोजेक्ट का हिस्सा थी जिसमें उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के स्थायी वोटर यानी दलितों को कांग्रेस से दूर करके उन्हें सांप्रदायिक बनाते हुए संघ के राजनैतिक उद्देश्यों के लिए तैयार करना था। बसपा फिलहाल यही काम करते हुए दिख रही है। बसपा की पूरी पॉलिटिकल लाइन में उसके दो ही शत्रु थे पहला कांग्रेस और दूसरा कम्युनिस्ट पॉर्टियां। राजनैतिक जानकारों का मानना है कि आज जब बसपा इन दलित श्रमिकों के बीच कांग्रेस की मदद पर सवाल उठा रही है तब वह अपने संस्थापक कांशीराम के पगचिन्हों पर ही आगे बढ़ रही है। बसपा यह जान रही है कि कांग्रेस द्वारा दलितों-श्रमिकों की मदद जिस पैमाने पर की जा रही है उससे यह समुदाय कांग्रेस के साथ फिर वापस जा सकता है। इस स्थिति में भाजपा अपने ‘हिंदूराष्ट्र’ के मिशन में कमजोर हो जाएगी। वह चाहती हैं कि दलित या तो भाजपा के साथ रहे या फिर बसपा के साथ रहे और ऐसा हो भी रहा है । 2014 के लोकसभा चुनाव और उसके बाद 2017 के विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में दलितों का एक अच्छा खासा वोट बैंक क्रमश: भारतीय जनता पार्टी को चाहता दिखा है । उत्तर प्रदेश के अल्पसंख्यक मतों पर अपनी निगाह लगाए मायावती को अपने इस बेसरिपैर कांग्रेस विरोध का खामियाजा हर हाल में भुगतना पड़ सकता है। अल्पसंख्यक मतदाता पहले से ही माया के सपा से गठबंधन तोड़ने की वजह से नाराज है और कांग्रेस की बढ़ती सक्रियता उसे फिर से पुरानी पार्टी की ओर जाने के रास्ते पर ढकेल सकती है।
बेहतरी की आस! इधर उत्तर प्रदेश में शुरूआती उहापोह के बाद कामगारों और श्रमिकों की मदद के लिए योगी सरकार ने माइग्रेशन कमीशन सहित कई महत्पवूर्ण कदमों का ऐलान किया है। अब तक 16 लाख कामगारों व श्रमिकों की स्किल मैपिंग का काम पूरा हो गया है। कामगारों व श्रमिकों को रोजगार और नौकरी के लिए सस्ते दर पर दुकानें व आशियाना देने पर सरकार बिजली, पानी, सीवर समेत सारी सहूलियतें देने के साथ ही नक्शे में एफएआर में भी मिलेगी छूट देने जा रही है। स्किलिंग के जरिए जनपद स्तर पर ही सेवायोजन कार्यालय के माध्यम से रोजगार और नौकरी दिलाने की होगी सरकार की प्राथमिकता के फैसले से मुलुक वापस लौटे लोगों की उम्मीदें जागी हैं ।
(लेखक उत्तर प्रदेश पे्रस मान्यता समिति के अध्यक्ष हैं।) यह इनके निजी विचार हैं।