डॉ. महेंद्र ठाकुर :
9 अगस्त 2022 अंग्रेजी न्यूज़ पोर्टल दी टेलीग्राफ ऑनलाइन में एक स्टोरी प्रकाशित हुई थी, जिसका शीर्षक था,Quit India Movement anniversary: Sonia Gandhi slams RSS ऐसी ही एक स्टोरी ‘दी प्रिंट’ में भी छपी थी, जिसका शीर्षक था Quit India anniv: Sonia exhorts people to defend freedom with ‘all might Cong alleges RSS supported British amid Brutal Repression.
दोनों जगह स्टोरी पढ़ने पर पता चला कि सोनिया गाँधी ने 9 अगस्त को संदेश दिया है जिसकी एक फोटो कांग्रेस के आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर भी पोस्ट की गई है। सोनिया का संदेश जो ट्विटर पर पोस्ट किया गया है और उपरोक्त दोनों पोटर्ल्स ने यथावत प्रकाशित किया है। उसी दिन कांग्रेस के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से एक ट्वीट और हुआ था, जिसमें लिखा गया था ;जब देश, कांग्रेस के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ निर्णायक संघर्ष कर रहा था, उस दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने आंदोलन का ना सिर्फ बहिष्कार किया, बल्कि अंग्रेजों का सक्रिय रुप से सहयोग भी किया।
उसी दिन प्रियंका वाड्रा और जयराम रमेश ने भी आरएसएस पर हमला बोला था। जिसके बारे में दी टेलीग्राफ और दी प्रिंट ने लिखा है। प्रियंका वाड्रा के हवाले से दोनों पोर्टल्स ने लिखा है। कांग्रेस द्वारा आरएसएस पर हमला करना कोई नई बात नहीं है। संघ की स्थापना के समय से ही यह ऐसे हमलों का प्रतिकार करता आया है। कांग्रेस के अनेक हमलों का प्रतिकार करते हुए आरएसएस 2025 में संघ अपनी शताब्दी मनाने जा रहा है। कांग्रेस के अपने अस्तित्व को बचाने के लिए आरएसएस पर ऐसे हमले करना बड़ी आसानी से समझ आता है। खैर! यह इस लेख का विषय नहीं है, यह लेख कांग्रेस और उनके नेताओं को इतिहास का सही पाठ पढ़ाने के लिए है।
9 अगस्त के संदेश में सोनिया गाँधी ने महान क्रांतिकारी अरुणा आसफ़ अली का नाम लिया है। अरुणा आसिफ अली को बयालीस की बिजली के नाम से जाना जाता है। वहीं प्रियंका वाड्रा ने भी अरुणा आसफ़ अली का नाम लेकर आरएसएस हमला किया। लेकिन, शायद कांग्रेस और इसके नेताओं को इतिहास की अधूरी जानकारी है। इन्हें सुप्रसिद्ध लेखकों रतन शारदा की अंग्रेजी भाषा में लिखी पुस्तक स्वयंसेवक संघ ’ और नरेन्द्र सहगल की हिंदी भाषा में लिखी पुस्तक ‘भारतवर्ष की सर्वांग स्वतंत्रता’ पढनी चाहिए। ये दोनों पुस्तके कांग्रेसी नेताओं का ज्ञानवर्धन करेंगी और सही इतिहास का बोध करायेंगी।
बयालीस की बिजली कहलाने वाली जिन अरुणा आसफ़ अली के नाम से ये लोग आरएसएस पर हमला कर रहे हैं और आरएसएस को अंग्रेजों का एजेंट बता रहे हैं, उन्ही अरुणा आसफ़ अली को आरएसएस के कार्यकर्ताओं ने आंदोलन के दौरान अपने घर में शरण दी थी। ये बात स्वयं अरुणा आसफ़ अली ने एक भेंट- वार्ता में कही थी। अरुणा आसफ़ अली ने सन 1967 में ‘साप्ताहिक हिंदुस्तान’ के संपादक के साथ हुई अपनी एक महत्त्वपूर्ण भेंट-वार्ता में कहा था-“बयालीस के आंदोलन में जब मैं भूमिगत थी, तब दिल्ली के संघचालक लाला हंसराज ने अपने घर पर दस-पंद्रह दिन आश्रय देकर सुरक्षा का पूरा प्रबंध किया था।
अपने यहाँ मेरे निवास का पता उन्होंने किसी को नहीं चलने दिया था। अंत में भूमिगत कार्यकर्ताओं को इतने दिन एक ही स्थान पर नहीं रहना चाहिए, अत: उनके घर से पटीवाला घाघरा और चुनरी ओढ़कर पास से गुजरने वाली एक बारात में भांगड़ा करते हुए वहाँ से निकल आई। मुझे यह पोशाक लालाजी की पत्नी ने दी थी। कुछ समय पश्चात जब मैं उन्हें उसे वापस करने पहुंची, तो उन्होंने यह कहते हुए उसे लेने से मना कर दिया की मैं उसे उनकी शुभकामनाओं के साथ उपहार के रूप में रख लूँ”।
‘दी टेलीग्राफ’ और ‘दी प्रिंट’ की स्टोरी के अनुसार प्रियंका वाड्रा ने कहा कि Gandhi . Nehru, Sardar Patel and Maulana Azad were arrested as soon as the movement was announced. Then, Aruna Asaf Ali hoisted the tricolor at the Azad Kranti Maidan (Gowalia Tank Maidan) to keep the flame of the movement burning.
इसी बात को अपनी भेंट-वार्ता में अरुणा आसफ़ अली ने कहा था। सभी बड़े-बड़े नेता तो जेल में जाकर बैठ गए। बाहर हम सब का मार्गदर्शन करने वाला कोई नहीं था। जिसके मन में जो भी आया, उसने वैसा ही किया। मैं नहीं मानती की सन 1942 के आंदोलन के कारण अपने देश को स्वाधीनता मिली।” सोनिया जी और प्रियंका जी अरुणा आसफ़ अली ने कहा था,मैं नहीं मानती की सन 1942 के आंदोलन के कारण अपने देश को स्वाधीनता मिली।” तो आप उन अरुणा आसिफ अली का नाम अपनी राजनीति के लिए उपयोग मत करिये। देश की जनता अब जागरूक हो गई है।
भारत छोडो आंदोलन के समय कांग्रेस ने नारा दिया था, करो या मरो तब संघ के सरसंघचालक गुरूजी ने पूछा था करो या मरो‘ वाले आह्वान में ‘मरो का अर्थ तो स्पष्ट है, किन्तु ‘करो ‘ यानी क्या करो? इसके आदेश क्या कांग्रेस कार्यकारणी ने दिए हैं? उनको इस प्रश्न का उत्तर नहीं दिया गया। दूसरी बात कांग्रेस और उसके नेताओं को उस समय की सीआईडी रिपोर्ट निकालकर पढ़नी चाहिए जो राष्ट्रीय अभिलेखागार में उपलब्ध होंगी।
गुप्तचर विभाग की उन रिपोर्ट्स में संघ के अनेक स्वयंसेवकों के नाम लिखे हुए है। संघ उन दिनों देश की स्वतंत्रता के लिए क्या कर रहा था उसकी जानकारी भी मिल जायेगी। इसी फाईल में संघ के अनेक कार्यकर्ताओं के नाम भी मिलते हैं, जो सन 1942 के आंदोलन में भागीदारी करने के कारण विभिन्न स्थानों पर हिरासत में लिये गए और जेलों में सजा भुगतते रहे। सोनिया जी प्रिंयंका जी क्या अपने चिमूर आष्ठी कांड के बारे में सुना है? क्या आपके लोगों ने आपको इस कांड के बारे में बताया है? निश्चित रूप से उत्तर होगा-नहीं। कांग्रेस और उनके नेताओं के लिए संकेत करता हूँ कि गुप्तचर विभाग की रिपोर्टों से यह भी पता चलता है कि विदर्भ के चिमूर आष्ठी नामक स्थान पर तो संघ के कार्यकर्ताओं ने स्वतंत्र सरकार की स्थापना भी कर ली थी।
गुप्तचर विभाग की रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि 20 सितंबर, 1943 को नागपुर में हुई संघ की गुप्त बैठक में जापान की सहायता से ‘आजाद हिंद फौज’ के भारत की ओर होने वाले कूच के समय संघ की संभावित योजना पर भी विचार हुआ था। संघ के स्वयंसेवकों ने जब आन्दोलन में भाग लेकर जेलों में जाना शुरू किया तब गुरूजी ने स्पष्ट कहा था,” जो स्वयंसेवक कारावास में नही जा सकते वे बाहर रहकर इस आंदोलन में भाग लेने वाले बन्धुओं एवं उनके परिवारों की सब प्रकार से सहायता करें ।” इस प्रकार संघ के स्वयंसेवकों ने आन्दोलन का संचालन कर रहे भूमिगत नेताओं को न केवल अपने घरों में शरण दी बल्कि उनके परिवारों की भी हर प्रकार से देखभाल की ।
भारत छोड़ों आन्दोलन के तहत संघ के स्वयंसेवकों ने अनेक तहसीलों और जिला परिषदों के भवनों पर तिरंगा झंडा फहराकर सत्याग्रह किया था । कई स्थानों पर स्वयंसेवकों द्वारा यूनियन जैक को जलाया गया तिरंगा झंडा फहराया गया। अरुणा आसफ़ अली स्वयं कहती है कि बड़े नेताओं के जेल में जाने के कारण जिसके मन जो आया उसने वही किया। इसका अर्थ है आंदोलनकारी दिशाविहीन और नेतृत्वहीन हो गए थे। जबकि संघ के स्वयंसेवक श्रीगुरुजी के दिशानिर्देशों के अनुसार व्यक्तिगत रूप ने अनुशासन में रहकर काम करते रहे। संघ के स्वयंसेवकों ने भूमिगत नेताओं को शरण देने का काम किया। अरुणा आसफ़ अली उनमें से एक थीं।
क्या सोनिया गाँधी और प्रियंका वाड्रा सोलापुर कांग्रेस समिति के सदस्य गणेश बापूजी शिणकर के बारे में जानती हैं। जिन्होंने भारत छोडो आंदोलन के छह वर्ष बाद सन 1948 में इस बात की पुष्टि की थी की भारत छोड़ों आंदोलन के समय संघ के स्वयंसेवकों ने भूमिगत नेताओं को शरण देने का काम किया था। गणेश बापूजी शिणकर ने संघ पर लगे प्रीतिबन्ध को हटाने के लिए सत्याग्रह में भाग लिया।
उन्होंने लोकतांत्रिक मूल्यों के आधार पर कांग्रेस से त्याग-पत्र दे दिया था और सत्याग्रह में शामिल हो गए थे। केवल अरुणा आसफ़ अली ही नही बल्कि स्वयं जयप्रकाश नारायण, प्रसिद्ध समाजवादी नेता अच्युत पटवर्धन, और प्रसिद्ध क्रांतिकारी नाना पाटिल जैसे लोग संघ के स्वयंसेवकों के घरों में शरण लेते थे। क्या सोनिया गाँधी और प्रियंका वाड्रा बताएंगी कि यदि संघ के स्वयंसेवक इस आंदोलन से बाहर थे या उन्होंने आंदोलन का बहिष्कार किया था तो फिर अंग्रेजो की गुप्तचर विभाग की रिपोर्टों में संघ और उसके स्वयंसेवकों का उल्लेख क्यों है?
क्यों कांग्रेस के तत्कालीन नेता संघ के स्वयंसेवकों और संघ की सराहना करते थे? और यहाँ तक कि उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा क्यों दिया। सोनिया प्रिंयंका ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटलीने भी स्वीकार किया था कि 1942 के भारत छोड़ों आंदोलन के कारण अंग्रेजों ने भारत नहीं छोड़ा था, बल्कि हमने भारत छोड़ा था नेताजी सुभाषचंद्र बोस के कारण।” नेताजी अपनी फौज के साथ बढ़ते-बढ़ते इम्फाल तक आ चुके थे, उसके तुरंत बाद नौसेना और वायुसेना में विद्रोह हो गया था। देश की स्वतंत्रता और भारत छोडो आंदोलन में संघ के स्वयंसेवकों की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। और कांग्रेस तथा इसके नेताओं द्वारा अज्ञानता के कारण ऐसे आरोप लगाना उनके मानसिक कमजोरी के लक्षण है। उन्हें इतिहास अच्छे से पढ़ने की जरूरत है।
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