Because speaking the truth is not allowed! क्योंकि सच बोलना मना है!

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वो पैदल चले जा रहे थे। पांव में छाले थे, खून भी निकल आया था। महिलाएं कभी पल्लू संभालतीं तो कभी अपने बच्चे और सिर पर लदी गठरी को। पसीना बहता और सूख जाता था। चेहरा तपकर लाल से काला हो रहा था। तभी पुलिसवाला उन पर डंडा चलाने लगा। महिला अपने बच्चे के साथ हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाने लगी। हमसे यह देखा नहीं गया, पुलिस वाले से उलझ पड़ा। उसने कहा कि आपने कैमरा ऒन किया तो हमें डंडा चलाना पड़ा। अगर योगी जी देखेंगे तो हम पर कार्रवाई न हो जाये कि हम पैदल चलने वालों को रोक नहीं रहे। हमने उससे कहा कि इन्हें जाने दो, हम शो नहीं करेंगे। उसने उन मजदूरों को जाने दिया। वहां खड़े सिपाहियों ने जो बताया, वह सुनकर हमारी आंखें भीग गईं। हम डेढ़ सौ किमी से वापस दिल्ली लौट आये। आगरा में हमारे एक मित्र ने लंच बनवाया था मगर उस दिन शायद न नाश्ता नसीब था और न ही लंच। सोचता रहा कि जो सरकारी आंकड़े और दावे किये जा रहे हैं, असल में उसका कितने लोगों को लाभ मिल रहा है। मजदूरों को घर भेजने के नाम पर हजारों सिफारशी लोग फायदा उठा रहे हैं। हमने अपने साथी संपादक राणा यशवंत से कहा कि आज का शो इन मजदूरों के दर्द पर होना चाहिए। सरकार की नींद टूटे, उन्होंने कहा कि आप भी लाइव हो जाओ, हमारी हिम्मत नहीं पड़ी, आंखों देखा दर्द बयां करने की। बस यही बोला कि ईश्वर न करे, किसी के साथ ऐसा हो। देश में गरीब-मजदूर के प्रति सरकार और उसके नेता संवेदनहीन हैं, शायद तभी प्रधानमंत्री चुनावी राज्य बंगाल के तूफान में मरे 80 लोगों के प्रति दुख व्यक्त करते हैं मगर सड़कों पर मरते मजदूरों के प्रति कोई प्रतिक्रिया नहीं।

कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने कौन सा अपराध किया था, जब उन्होंने कहा था कि वह सड़कों पर तड़पते मजदूरों को उनके घरों तक सुरक्षित पहुंचाने के लिए बसें चलाना चाहती हैं। उन्होंने एक हजार बसों को यूपी सीमा से मजदूरों के घरों तक चलाने की अनुमति मांगी थी। दो दिनों तक सोशल मीडिया पर आग्रह करने के बाद मुख्यमंत्री अजय सिंह विष्ट उर्फ योगी आदित्यनाथ जागे, अनुमति देने की बात कही। देर रात प्रियंका को चिट्ठी भेजी गई कि सुबह 10 बजे तक एक हजार गाड़ियों की लिस्ट सहित उन्हें लखनऊ भेजें। उन्हें पता था कि यह संभव नहीं है मगर प्रियंका ने सबसे रात भर संपर्क किया और लिस्ट भिजवाई। जो लिस्ट भेजी गई उसमें 879 बसें फिटनेस के मानक पूरे कर रही थीं, शेष बसों का ब्यौरा गलत बताया गया। सरकार को तत्काल उन 879 बसों की सेवाएं लेनी चाहिए थी क्योंकि बगैर लागत यह सेवा मिल रही थी मगर योगी ने सियासी गोट खेलनी शुरू कर दी। कांग्रेस ने तत्काल 300 अन्य बसों का इंतजाम करके करीब 1200 बसें दिल्ली और राजस्थान सीमा पर खड़ी करवा दीं मगर योगी सरकार ने अनुमति नहीं दी। विरोध पर यूपी कांग्रेस अध्यक्ष सहित कई नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। प्रियंका के निजी सचिव के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज कर दी गई। दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष को अपनी कारों से मजदूरों को यूपी पहुंचने में मदद के आरोप में गिरफ्तार किया गया। सीएम योगी की हरकतों पर हरियाणा के कांग्रेस नेता पंकज पुनिया ने ट्वीटर पर टिप्पणीं की, तो उन्हें एफआईआर दर्ज कर गिरफ्तार कर लिया गया। हम भी एडवोकेट हैं मगर समझ नहीं सका कि किस कानून में मुख्यमंत्री पर टिप्पणी करना धार्मिक भावनाओं को आहत करना होता है। शायद अब सच बोलना, अपराध है।

हमने 18 मार्च की रात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कोविड-19 से बगैर बड़े नुकसान के निपटने का सुझाव भेजा था। सुझाव में कहा था कि अभी देश में कोविड-19 के सिर्फ सौ केस हैं। हमको हॊफ सेलरी के साथ एक माह की राष्ट्रव्यापी कर्फ्यू छुट्टी कर देनी चाहिए। सभी इंटरनेशनल एयरपोर्ट और बंदरगाहों तथा देश की सीमाओं पर बगैर टेस्ट रिपोर्ट के प्रवेश रोक देना चाहिए। सभी एयरपोर्ट के भीतर और प्रभावित जिलों के खेल मैदानों में कैंप लगाकर कोरंटाइन सेंटर बनाने चाहिए। सेलरी से जो धन बचेगा, उससे हमारे लोगों के लिए जरूरी सुविधाएं दी जायें। स्वास्थ सेवाओं को दुरुस्त करने पर खर्च किया जाये। प्राइवेट सेक्टर तथा असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को मदद के लिए उनके खातों में 5 हजार रुपये एक माह के लिए अनुदान देना चाहिए। एक माह का खाद्यान सरकार मुफ्त में छह आदमी का परिवार मानते हुए सभी बीपीएल श्रेणी के लोगों को दे। बड़े और मध्यम उद्योगों को अपने मजदूरों के निवास एवं खानपान की व्यवस्था करके चलाने की अनुमति दें। कुटीर उद्योगों को घरों के भीतर से ही संचालति करने में मदद करें। आवश्यक वस्तुओं की होम डिलेवरी के लिए बड़ी कंपनियों की मदद से व्यवस्था करें। इससे राजस्व भी मिलेगा और कोई संकट भी नहीं होगा। अगर ऐसा करेंगे तो न तो कोरोना फैलेगा, न कोई भूखा मरेगा और न ही सरकारी खजाने पर बोझ पड़ेगा। अर्थव्यवस्था भी नहीं बिगड़ेगी मगर दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो सका। हमें अपने देश के ही केरल से सीखने की जरूरत है।

भारत का दुर्भाग्य है कि यहां पिछले तीन महीनों में अब तक एक फीसदी लोगों का भी कोविड-19 टेस्ट नहीं हो सका है। जब देश में कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या लाखों में पहुंच गई तब हमने उन संक्रमितों को उनके हाल में छोड़कर उनके गांवों में जाने की अनुमति दी। दो महीने से भूख प्यास और आर्थिक विपन्नता से जूझ रहे मजदूरों को सड़कों पर मरने को छोड़ दिया गया। विशेष रेलगाड़ियां भी हमने मुफ्त नहीं चलाईं, उनका भी बोझ दूसरों पर डाल दिया। सरकार ने मदद पैकेज के नाम पर कर्ज पैकेज उतार दिया। वेंटिलेटर खरीदने के नाम पर नकली माल खरीद लिया गया। अमेरिका से जो वेंटिलेटर मदद के नाम पर मिले, उनकी भी कीमत चुकानी पड़ी। यही नहीं, सरकार के स्तर पर अपने करीबियों को ठेके देकर लाभ पहुंचाया गया। अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के नाम पर कुछ कारपोरेट घरानों के मुताबिक व्यवस्था की गई। श्रमिकों के अधिकार खत्म कर दिये गये। कंपनियों ने अपने कामगारों की छंटनी शुरू कर दी। तमाम संस्थानों से भी लोग निकाले जाने लगे हैं। इसी बीच चीन ने हमारे यहां लद्दाख में पांच स्थानों पर घुसपैठ कर ली है। वहां चीन ने अपनी पेट्रोलिंग सड़क पहले ही बना ली है। उसने अपने दावे से अधिक भारतीय सीमा पर कब्जा कर लिया है। नेपाल ने भी भारत को आंखें दिखानी शुरू कर दी हैं। इन सब के बाद भी हम और हमारी सरकार खामोश है।

यह देश किसी एक सियासी दल या व्यक्ति का नहीं है। हमने इसे लाखों पूर्वजों की शहादत देकर अंग्रेजी हुकूमत से आजाद कराया था। इसे संभालकर रखना हमारी जिम्मेदारी है। ऐसे में गलत और सही को पहचानकर हमें इसे बचाने के लिए सामने आना चाहिए। वैचारिक और सियासी बातों से ऊपर उठकर देश और देशहित के लिए सोचना चाहिए। जरूरत अपने गरीब-मजलूम नागरिकों के प्रति संवेदनशील होने की है क्योंकि वह लोग अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं जबकि बाकी सभी अपनी सुविधाओं की। अगर अब भी हम नहीं चेते तो बेहद बुरे हालात होने वाले हैं। देश में बेरोजगारों की फौज जब अराजक होगी, तो न हम सुरक्षित रहेंगे और न देश। हमको सच बोलना ही होगा चाहे मुकदमें क्यों न झेलने पड़ें।

जयहिंद!

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(लेखक आईटीवी नेटवर्क के प्रधान संपादक हैं)