Banarasi Pan Langda Mango GI Tag: उत्तर प्रदेश में गंगा नदी के तट पर बसे वाराणसी के देसी पान और यहां के मशहूर लंगड़ा आम का स्वाद अब दुनिया चख सकेगी। दरअसल बनारस और काशी के नाम से मशहूर शिवनगरी वाराणसी के उक्त दो उत्पादों के अलावा रामनगर के भंटा (सफेद बड़ा गोल बैंगन) और आमदचीनी चावल को ज्योग्राफिकल इंडिकेशन टैग (जीआई) मिल गया है। बता दें कि प्रदेश के 11 प्रोडक्ट को इस साल जीआई टैग मिला है। इसी के साथ काशी क्षेत्र में कुल 22 जबकि समूचे यूपी में 45 जीआई प्रोडक्ट हो गए हैं।
- काशी में कुल 22, समूचे यूपी में 45 जीआई प्रोडक्ट
- प्रदेश के 11 प्रोडक्ट को इस साल मिला जीआई टैग
उपलब्धि में नाबार्ड यूपी और राज्य सरकार के सहयोग
जीआई विशेषज्ञ, पद्मश्री डॉक्टर रजनीकांत ने बताया कि नाबार्ड यूपी और राज्य सरकार के सहयोग से इस वर्ष राज्य के 11 उत्पादों को जीआई टैग मिला है। इनमें से सात उत्पाद ओडीओपी में शामिल हैं और चार उत्पाद कृषि और बागवानी से संबंधित हैं। उन्होंने बताया कि बनारसी लंगड़ा आम को जीआई टैग मिलने के बाद इसे विश्व बाजार में उतारने की तैयारी है। बता दें कि सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ स्थानीय उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए प्रयास करते रहे हैं।
काशी के नौ और उत्पादों को जल्द जीआई टैग
डॉक्टर रजनीकांत ने बताया कि नाबार्ड यूपी के सहयोग से कोविड के कठिन समय में राज्य के 20 उत्पादों के लिए जीआई आवेदन किए गए, जिसमें लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद 11 जीआई टैग प्राप्त हुए। उन्होंने बताया कि अगले महीने के अंत तक देश की बौद्धिक संपदा में चिरईगांव आंवले के साथ बनारस लाल पेड़ा, तिरंगी बर्फी, बनारसी ठंडाई और बनारस लाल भरवा मिर्च समेत बाकी नौ उत्पाद भी शामिल हो जाएंगे।
जानिए क्या होता है जीआई टैग
किसी भी क्षेत्रीय उत्पाद की उस क्षेत्र में विशेष पहचान होती है। उस क्षेत्र में विशेष पहचान होती है। देश व विश्वभर में जब वह प्रोडक्ट मशहूर हो जाता है तो उसे प्रमाणित करने के लिए एक प्रकिया होती है जिसे जीआई टैग कहते हैं। हिन्दी में इस प्रक्रिया को भौगोलिक संकेतक के नाम से जाना जाता है।
संसद ने 1999 में बनाया अधिनियम
संसद ने उत्पाद के पंजीकरण और संरक्षण को लेकर 1999 में एक अधिनियम पारित किया है जिसे अंग्रेजी में ज्योग्राफिकल इंडिकेशन आफ गुड्स कहा जाता है। वर्ष 2003 में इस अधिनियम को लागू किया गया। इस एक्ट के तहत भारत में पाए जाने वाले प्रोडक्टर के लिए जीआई टैग देने का सिलसिला शुरू हुआ।
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