बजरंग ने छठा ब्रॉन्ज दिलाकर बढ़ाया देश का मान 

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Bajrang
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आज समाज डिजिटल
नई दिल्ली।  जापान की राजधानी टोक्यो में खेले जा रहे ओलंपिक खेलों में बजरंग पूनिया ने भारत क झोली में एक और ब्रॉन्ज मेडल डाल दिया है। भारतीय पहलवान ने 65 क्रिगा फ्रीस्टाइल वर्ग में ब्रॉन्ज के लिए खेले गए मुकाबले में कजाखस्तान के दौलेत नियाजबेकोव को एकतरफा मुकाबले में हराकर भारत को छठा मेडल दिलाया। इससे पहले बजरंग को अपने सेमीफाइनल मैच में तीन बार के विश्व चैंपियन हाजी अलीएव के हाथों 5-12 से हार झेलनी पड़ी थी। बजरंग ने कुश्ती में भारत को दूसरा मेडल दिलाया है, उनसे पहले रवि दहिया ने फाइनल तक का सफर तय करते हुए सिल्वर मेडल अपने नाम किया था। बजरंग दौलत पर मैच की शुरूआत से ही हावी नजर आए और उनको वापसी करने का कोई मौका नहीं दिया। भारतीय पहलवान ने दौलत को पूरे मैच में एक भी प्वॉइंट हासिल नहीं करने दिया और मुकाबले को 8-0 से अपने नाम किया। बजरंग पूनिया भारत के उन खिलाड़ियों में से एक थे जिनसे देश को ओलंपिक खेलों में गोल्ड मेडल की उम्मीद थी। भारतीय रेसलर ने टोक्यो ओलंपिक में धमाकेदार आगाज किया था और अपने क्वार्टर फाइनल मुकाबले में ईरान के दमदार पहलवान मुर्तजा गियासी को पटखनी देकर सेमीफाइनल में अपनी जगह पक्की की थी। हालांकि, सेमीफाइनल में बजरंग की लेग- डिफेंस कमजोरी का भरपूर फायदा हाजी अलीएव ने उठाया और मैच को एकतरफा कर दिया था। टोक्यो ओलंपिक में यह भारत का चौथा ब्रॉन्ज मेडल है।
सच साबित हुआ पिता का दावा 
क्वार्टर फाइनल में शानदार शुरूआत करने के बाद बजरंग सेमीफाइनल मुकाबला हार गए थे। बजरंग के पिता ने कहा था कि बेटा आज तक कभी खाली हाथ नहीं लौटा है, वह ब्रॉन्ज जरूर लाएगा। पूरे देश की दुआएं उसके साथ हैं। एक महीना पहले उसके घुटने में चोट लग गई थी, फिर भी वह सेमीफाइनल तक पहुंचा। बजरंग ने पिता की बात को सच कर दिखाया है।
कुश्ती में भारत के नाम अब तक 6 ओलिंपिक मेडल
पहलवान सुशील ने भारत के लिए ओलिंपिक में लगातार दो मेडल जीतने का रिकॉर्ड बनाया था। सुशील ने 2008 बीजिंग ओलिंपिक में ब्रॉन्ज और 2012 लंदन ओलिंपिक में सिल्वर मेडल जीता था। रवि को मिलाकर भारत ने कुश्ती में 6 मेडल जीते हैं। रवि और सुशील के अलावा योगेश्वर दत्त ने 2012 में ब्रॉन्ज, साक्षी मलिक ने 2016 रियो ओलिंपिक में ब्रॉन्ज जीता था। केडी जाधव भारत के लिए ओलिंपिक रेसलिंग में मेडल जीतने वाले पहले रेसलर थे। उन्होंने 1952 हेलसिंकी ओलिंपिक में यह कारनामा किया था।