Aaj Samaj (आज समाज), Bahubali Anand Mohan,पटना: डीएम जी कृष्णैया की हत्या के मामले में जेल में बंद बिहार के बाहुबली नेता आनंद मोहन गुरुवार को रिहा हो गए। आनंद मोहन की रिहाई के आदेश के बाद से ही बिहार में वार-पलटवार की राजनीति चरम पर है। कुछ पार्टियां रिहाई को गलत बता रही हैं तो राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी बीजेपी के कुछ नेता रिहाई का समर्थन कर रहे हैं।
रेमिशन पॉलिसी के तहत सजा माफ
आनंद मोहन जैसे दोषियों की सजा रेमिशन पॉलिसी के तहत माफ की गई है। अपराधी की सजा को लेकर बनाई गई ये पॉलिसी उसकी सजा में छूट प्रदान करती है। इसके तहत किसी की भी सजा को राज्य सरकार कम कर सकती है, लेकिन इसको लेकर काफी विचार विमर्श किया जाता है और कैदियों के व्यवहार का आंकलन भी किया जाता है। यहां बता दें कि जेल राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों के अंतर्गत आते हैं। हर जेल का एक जेल मैन्युअल होता है, जिसके तहत कोर्ट द्वारा किसी भी दोषी को दी गई सजा कम या माफ की जा सकती है।
पॉलिसी के तहत हर राज्य का कानून अलग
बता दें कि रेमिशन पॉलिसी के तहत हर राज्य का अलग कानून होता है। दुष्कर्म व जघन्य अपराध करने वालों को कई राज्यों में सजा में कोई छूट नहीं दी जाती है। बिहार में सरकारी ड्यूटी पर तैनात कर्मचारी की हत्या के दोषी को सजा में कोई छूट नहीं दी जाती है। बिहार सरकार ने इसी कानूनी पेंच को हटाकर आनंद मोहन और 26 अन्य दोषियों की रिहाई का रास्ता साफ किया।
केंद्र सरकार कोई कदम नहीं उठा सकती
कानून के जानकारों की माने तो इन दोषियों की रिहाई और सजा में कमी को लेकर केंद्र सरकार कोई कदम नहीं उठा सकती है। ऐसा इसलिए, क्योंकि राज्य ही जेल मैन्युअल बनाती है। जानकारों का कहना है कि केंद्र सिर्फ रिहाई पर रोक की सलाह दे सकता है।
रिहाई के खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दायर
आनंद मोहन की रिहाई के खिलाफ इस बीच पटना हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका डाली गई है। याचिका में कहा गया है कि बिहार सरकार द्वारा कानून में संशोधन गैरकानूनी है और इससे लोक सेवकों की जान को खतरा भी महसूस हो सकता है।
1994 में गोपालगंज के डीएम की हत्या
आनंद मोहन का 1994 में गोपालगंज के डीएम जी कृष्णैय्या की हत्या मामले में नाम सामने आया था। 2007 में उन्हें फांसी की सजा मिली थी। हालांकि, बाद में आनंद की सजा उम्रकैद में बदल दी गई। आनंद मोहन को अपने इलाके का दबंग राजपूत नेता माना जाता है। यहां तक की उनका असर कई लोकसभा सीटों पर भी माना जाता है, यही कारण है कि उनकी रिहाई का कोई जमकर विरोध नहीं कर रहा है। वह जनता दल और एनडीए का हिस्सा भी रह चुके हैं।
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