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Bahraich Violence : क्या सांप्रदायिक सद्भाव असंभव है ?

Bahraich Violence | राकेश शर्मा | तुष्टिकरण के नशे में मदमस्त अखिलेश यादव, इंडी गठबंधन और इनके प्रवक्ता बहराइच में दुर्गा विसर्जन के जलूस पर हुए पथराव और राम गोपाल मिश्रा की निर्मम और क्रूर हत्या को उत्तर प्रदेश के उपचुनाव से जोड़ रहे है। शर्म नहीं आती, चुल्लू भर पानी में डूबने को जगह भी नहीं मिलती ऐसे झूठे आख्यान बनाते है जो सिर्फ हास्यास्पद ही लगते हैं।

Rakesh Sharma

कुछ इंडी गठबंधन के प्रवक्ता तो कहते सुने गए कि 2014 में भाजपा की सरकार आने के बाद से ही यह सब हो रहा है। इन्हें या तो इन जिहादी आततायिओं का इतिहास और वर्तमान में हो रही घटनाएं ज्ञात नहीं या ना समझने का नाटक कर रहे प्रतीत होते हैं। कुछ चंद वोटों के खातिर एक वर्ग को खुश करने के लिए कुछ भी ऊटपटांग बयान देते रहते हैं।

देश के सौहार्द को बिगाड़ने वालों के साथ खड़े रहते हैं। इनसे कोई पूछे पूरे देश में हिंदुओं के धार्मिक त्योहारों, जलूसों, दुर्गा पूजा के पंडालों, रामनवमी के जलूसों, गणेश विसर्जन के जलूसों, गरबा पंडालों में लड़कियों को छेड़ने, पत्थरबाजी कर, मूर्तियां खंडित करने के कुकृत्यों को यह कौन सी श्रेणी में रखते है?

क्या पूरे देश में जहां जहां भी यह सब कुछ हो रहा है वहां हर जगह उपचुनाव है या सब जगह भाजपा की सरकारें हैं। यदि ऐसा नहीं है तो इस मानसिकता का विरोध ना करके क्या संदेश दे रहे हैं। इन्हें याद रखना चाहिए कि यह मानसिकता भाजपा के सत्ता में आने से बहुत पहले से सैकड़ों वर्षों से चल रही है और भारत में ही नहीं पूरे विश्व में जहां इन जेहादियों की जनसंख्या बढ़ती है यही करते हैं। विश्व का कोई देश भी इनकी हरकतों से बचा नहीं है।

इस्लाम को ना मानने वाले इनके लिए काफिर होते है और इनके अनुसार उन्हें शांति से रहने का कोई अधिकार नहीं है। वरना हजारों वर्ष पहले जब गजनी, औरंगजेब जैसे मुगल आक्रमणकारी लुटेरे भारत में आये हिंदुओं का जबरन धर्म परिवर्तन कराया, हिंदू महिलाओं से बलात्कार किया, हमारे मंदिर ध्वस्त किए।

तब कौन से उपचुनाव थे या कौनसी भाजपा सत्ता में थी? मुगलों के जाने के बाद भी आजादी से पहले और बाद में जितने हिंदू मुस्लिम दंगे हुए तब तो शायद मोदी/योगी जन्मे भी नहीं थे और शायद भाजपा अस्तित्व में भी नहीं थी। इसलिए मोदी/योगी और भाजपा को इन जेहादियों की गंदी मानसिकता की वजह बताना सच्चाई से मुंह छिपाना ही है।

यह मानसिकता गजवा-ए-हिंद की है जिसके तहत अखंड भारत को पहले ही कितनी बार खंडित कर सिकुड़कर वर्तमान भारत ही बचा है। जिसका बहुत बड़ा हिस्सा पाकिस्तान/बांग्लादेश में जा चुका है। अब जो भी हरकतें हो रही हैं बचे कूचे भारत को खंडित विखंडित करने को ही इंगित कर रही है।

जो अब भी मानने को तैयार नहीं हैं वह शतुरमुर्ग की तरह मिट्टी में सर घुसाये हुए दस्तक देते खतरे को नहीं पहचान रहे । अखिलेश यादव जो योगी राज में दंगों की बात कर रहे हैं उन्हें याद ना हो तो स्मरण करा दूं कि उनके राज के पहले 9 महीनों में ही 2013 में 93 छोटे-बड़े दंगे हो गये थे, बाहुबलियों का राज था, गुंडई चरम पर थी, अतिक, अशरफ, मुख़्तार अंसारी, अखिलेश की सरकार जेल से चलाते थे और अब जब गुंडों पर खबरदार हंटर चल रहा है तो कानून व्यवस्था खराब होने की बात कर रहे हैं।

खैर , कम याददाश्त वालों को कुछ दंगे जिसने हजारों लोग मारे गए उनकी याद भई दिला दूं : 1893 के मुंबई दंगे, 1946 के कलकत्ता के दंगे जिसमें दस हजार मारे गये, जबलपुर 1961 के दंगे, अहमदाबाद 1969 के दंगे जिसमें 100 मारे गये, 1979 के जमशेदपुर, अलीगढ़ के दंगे, 1980 के मुरादाबाद के दंगे, 1987 के मेरुत के दंगे जो दो महीने चले, भागलपुर 1989 के दंगे जिसमें 1000 मरे, 1992 के मुंबई दंगे जिसने 1798 मरे, अखिलेश राज में मुजफ़्फरनगर दंगे, 2002 में गोधरा में 58 अयोध्या से लौट रहे तीर्थयात्रियों को रेल को किसने जलाया था जिससे गुजरात में दंगे हुए।

इतना ही इतिहास काफी है यह बताने को की यह सब दंगे किसी उपचुनाव को जीतने को नहीं, भाजपा के शासन में नहीं हुए। इस गजवा-ए-हिन्द की मानसिकता को खत्म किए बिना कुछ नहीं होने वाला। केंद्र और राज्य सरकारों को ऐसे जेहादियों के विरुद्ध देशद्रोह का मुकदमा चलाकर कठोरतम सजा देनी ही होगी|

न्यायालय को भी इन देशद्रोहियों के प्रति कोई नरमी नहीं दिखानी होगी, तब शायद इन पर अंकुश लग सके। मुझे तो यह भी लगने लगा है कि बंटवारे के समय धर्म के आधार पर बंटवारा हुआ था और पाकिस्तान इस्लामिक राष्ट्र बन गया यदि भारत भी हिंदू राष्ट्र बन गया होता तो छद्म धर्मनिरपेक्ष भारत में यह सब नहीं देखना पड़ता।

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Harpreet Singh Ambala

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