Atiq Ahmed and Ashraf Murder Case : सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार से अतीक अहमद और अशरफ की हत्या मामले की जांच की प्रगति रिपोर्ट मांगी

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अतीक अहमद और अशरफ
अतीक अहमद और अशरफ

Aaj Samaj, (आज समाज), Atiq Ahmed and Ashraf Murder Case,दिल्ली :

1. सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार से अतीक अहमद और अशरफ की हत्या मामले की जांच की प्रगति रिपोर्ट मांगी

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार से शुक्रवार को अतीक अहमद और अशरफ की हत्या मामले की जांच की प्रगति रिपोर्ट मांगी है। मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार से यह भी पूछा कि विकास दुबे एनकाउंटर के बाद पुलिस कामकाज को लेकर जस्टिस बी एस चौहान की रिपोर्ट पर क्या कार्रवाई की गई है?  सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार से पूछा हमने ये घटना टीवी पर देखी है, दोनों को अस्पताल में सीधे एंबूलेंस से क्यों नहीं ले जाया गया। उनकी परेड क्यों कराई जा रही थी? सुप्रीम कोर्ट ने तीन हफ्ते बाद मामले की सुनवाई करेगा। उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से मुकुल रोहतगी अदालत में पेश हुए, रोहतगी ने कहा हमने जांच के लिए दो-दो पूर्व चीफ जस्टिस का आयोग बनाया है। इस मामले में यूपी सरकार ने तेजी से काम किया है।

वकील विशाल तिवारी ने जनहित याचिका दाखिल कर पूर्व जज की निगरानी में अतीक और अशरफ की हत्या की जांच की मांग की है। इतना ही नही याचिका में उत्तर प्रदेश में 2017 के बाद हुए सभी 183 एनकाउंटरों की जांच की मांग की भी गई है।

वकील विशाल तिवारी ने अपनी याचीका में मांग की है कि अतीक और उसके भाई अशरफ की हत्या की जांच के लिए एक स्वतंत्र समिति का गठन किया जाए। याचिका में आरोप लगाया गया है कि पुलिस मुठभेड़ लोकतंत्र के लिए खतरा बनने के साथ ही कानून के राज के लिए भी खतरनाक हैं।

दरसअल अतीक अहमद की शनिवार को प्रयागराज में गोली मारकर हत्या कर दी गई थीं। याचिका में 2020 विकास दूबे मुठभेड़ मामले की सीबीआई से जांच की मांग की गई है। इससे पहले माफिया अतीक अहमद की सुरक्षा को लेकर सवाल खड़ा करती एक याचिका को सुनने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया था।

2. प.बंगाल टीचर रिक्रूटमेंट स्कैम केस जस्टिस अजय गंगोपाध्याय से छीना गया, अन्य कोई जज करेंगे सुनवाई*

उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कलकत्ता उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश से कहा कि ‘टीचर रिक्रूटमेंट स्कैम मामले की सुनवाई स अभिजीत गंगोपाध्याय के अलावा किसी अन्य न्यायाधीश को सौंपा जाए।
दरअसल ऐसा कहा जा रहा है कि न्यायमूर्ति अजय गंगोपाध्याय ने इस मामले की सुनवाई के दौरान एक टीवी चैनल को इंटरव्यू दिया और उसमें केस की जानकारियों को साझा किया।

टीएमसी नेता अभिषेक बनर्जी की याचिका पर सुनवाई करते हुए प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा की पीठ ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल की रिपोर्ट का संज्ञान लिया और कहा कि मामले को किसी अन्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ को सौंपा जाना चाहिए।

“हम कलकत्ता उच्च न्यायालय के माननीय कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश को लंबित कार्यवाही को कलकत्ता उच्च न्यायालय के किसी अन्य न्यायाधीश को सौंपने का निर्देश देते हैं। इस संबंध में, “पीठ ने अपने आदेश में कहा। जिस न्यायाधीश को कार्यवाही सौंपी जाती है, वह सभी आवेदनों को लेने के लिए स्वतंत्र होगा।

3. SCBA ने BCI के समलैंगिक विवाह के विरोध में प्रेस विज्ञप्ति जारी करने का विरोध किया

सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया के समलैंगिक विवाह के विरोध में 23 अप्रैल को खुली चिट्ठी लिखने और इसकी प्रेस विज्ञप्ति जारी करने का विरोध किया है। सुप्रीम कोर्ट बार की कार्यकारिणी समिति ने बहुमत  से पारित प्रस्ताव में कहा है कि कोई भी मामला सुप्रीम कोर्ट तक आता है तो ये कोर्ट का न्यायिक क्षेत्राधिकार है कि वो उसे सुने और मेरिट के आधार पर उसका समुचित निपटारा करे या निर्णय दे। कोर्ट तय करे कि मामला कोर्ट से निर्णित होगा या संसद से। उसमें किसी अन्य पक्ष को दखल देने या देने का प्रयास नहीं करना चाहिए।
लिहाजा सुप्रियो बनाम भारत सरकार मामले में बार काउंसिल यानी भारतीय विधिज्ञ परिषद का दखल अनुचित और गैर जरूरी है।

दरसअल केंद्र सरकार के बाद अब बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने भी समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का विरोध किया है।इसी सोमवार को बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने विरोध करते हुए एक प्रस्ताव भी पारित किया है। बीसीआई ने अपने प्रस्ताव में कहा है, इस तरह के संवेदनशील विषय पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला भविष्य की पीढ़ियों के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है और इसे विधायिका के लिए छोड़ दिया जाना चाहिए।

प्रस्ताव में यह भी कहा गया है कि ,‘‘भारत विभिन्न मान्यताओं को संजो कर रखने वाले विश्व के सर्वाधिक सामाजिक-धार्मिक विविधता वाले देशों में से एक है। इसलिए, बैठक में आम सहमति से यह विचार प्रकट किया गया कि सामाजिक-धार्मिक और धार्मिक मान्यताओं पर दूरगामी प्रभाव डालने वाला कोई भी विषय सिर्फ विधायी प्रक्रिया से होकर आना चाहिए।” सभी राज्य बार काउंसिल के प्रतिनिधियों की भागीदारी वाली संयुक्त बैठक में यह प्रस्ताव पारित किया गया।

दरसअल देश में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यों की संविधान पीठ कर रही है। 3 मई इस मामले में आखिरी बहस अदालत में शुरू होगी।

4. पिता ने बच्चे की कस्टडी के लिए दायर की हैबियस कॉर्पस, कोर्ट ने मां के खिलाफ जारी कर दिए नॉन बेलेवुल वारंट

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक महिला के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया और पुलिस आयुक्त, बेंगलुरु को आदेश दिया कि अदालत के निर्देशानुसार अपने नाबालिग बच्चे की हिरासत उसके पिता को न सौंपने के आरोप में उसे गिरफ्तार को अदालत में पेश किया जाए।

पिता द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई करते हुए, न्यायमूर्ति एस सुनील दत्त यादव और न्यायमूर्ति सीएम पूनाचा की अवकाश पीठ ने कहा, “यह एक ऐसा मामला है जिस पर मां व्यवहार पर गंभीर ध्यान देने की आवश्यकता है। कोर्ट ने इस केस की अगली सुनवाई 9 मई, 2023 को निर्धारित है।

फ़ैमिली कोर्ट ने दिनांक 03.03.2022 को याचिकाकर्ता डॉ. राजीव गिरी की संरक्षकता याचिका को मंज़ूरी दे दी और प्रतिवादी-माँ को एक महीने के तक बच्चे की देखभाल करने का आदेश दिया। इसके बावजूद, यह आदेश का पालन एक वर्ष तक नहीं किया गया।

महिला ने फैमिली कोर्ट के आदेश को हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी, जिसने 31 जनवरी, 2023 के एक फैसले में अपील को खारिज कर दिया और हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ विशेष अनुमति याचिका भी खारिज कर दी गई।

उच्च न्यायालय ने  यह देखने के बाद कि वह अपने बच्चे की भलाई के बजाय अपने काम और अवैध संबंधों के लिए अधिक चिंतित है, यह आदेश दिया कि वो बच्चे को पिता की संरक्षा में सौंप दे।

लोक अभियोजक वी.एस. हेगड़े ने अदालत को बताया कि पुलिस के प्रयासों के बावजूद, वे मां का पता नहीं लगा पाए हैं और उसके दिल्ली में होने का संदेह करने के कई कारण हैं। पुलिस द्वारा दर्ज की गई स्थिति रिपोर्ट के अनुसार, उसे नोटिस देने के प्रयास विफल रहे क्योंकि उसने अपना आवास स्थानांतरित कर लिया था और अब वह अपने कार्यालय में उपलब्ध नहीं है। अदालत को बताया गया, “विदेशी क्षेत्रीय पंजीकरण कार्यालयों (एफआरआरओ) को सूचित कर दिया गया है और एक लुक आउट नोटिस भी जारी किया गया है।”

नतीजतन, अदालत ने आदेश दिया कि गैर-जमानती वारंट को निष्पादित करते समय, यदि प्रतिवादी संख्या 3 यानी मांं कर्नाटक के अलावा किसी अन्य अधिकार क्षेत्र में है, तो सक्षम पुलिस अधिकारियों को प्रतिवादी मां के खिलाफ को जारी किए गए गैर-जमानती वारंट के प्रति के साथ सहयोग करने का आदेश दिया जाता है।

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