Atal Bihari Vajpayee: 100वीं जयंती पर वाजपेयी को राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री सहित कई नेताओं ने दी श्रद्धांजलि

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Atal Bihari Vajpayee: 100वीं जयंती पर वाजपेयी को राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री सहित कई नेताओं ने दी श्रद्धांजलि
Atal Bihari Vajpayee: 100वीं जयंती पर वाजपेयी को राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री सहित कई नेताओं ने दी श्रद्धांजलि

100th birth anniversary Of Atal Bihari Vajpayee, (आज समाज), नई दिल्ली: पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की आज 100वीं जयंती है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली स्थित उनके स्मारक ‘सदैव अटल’ पर जाकर वाजपेयी को श्रद्धांजलि अर्पित की है। उनके साथ इस मौके पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, भाजपा के सहयोगी और आंध्र के सीएम चंद्रबाबू नायडू, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और कई अन्य सांसद और वरिष्ठ नेता मौजूद थे।

‘सुशासन दिवस’ के रूप में मनाई जाती है वाजपेयी की जयंती

गौरतलब है कि अटल जयंती के सम्मान में, आज के दिन को ‘सुशासन दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। पीएम मोदी ने सुशासन दिवस के अवसर पर वाजपेयी की विरासत का भी जिक्र किया। उन्होंने एक वीडियो संदेश में कहा, सुशासन का मतलब है जब केंद्र में सत्ता की भावना नहीं बल्कि सेवा की भावना हो।

दूर-दराज के क्षेत्रों को भी करीब लाई वाजपेयी सरकार

पीएम मोदी ने वाजपेयी की नीतियों और सकारात्मक राजनीति की सराहना करते हुए एक लेख भी लिखा। उन्होंने इसमें कहा, वाजपेयी सरकार ने न केवल आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया, बल्कि दूर-दराज के क्षेत्रों को भी यह सरकार करीब लाई। इसके अलावा वाजपेयी सरकार ने एकता व एकीकरण को बढ़ावा दिया।

सत्ता से चिपके रहने वाले व्यक्ति नहीं थे वाजपेयी : मोदी

पीएम मोदी ने लिखा, अटल बिहारी वाजपेयी अवसरवादी साधनों के माध्यम से सत्ता से चिपके रहने वाले व्यक्ति नहीं थे। उन्होंने खरीद-फरोख्त और गंदी राजनीति के रास्ते पर चलने के बजाय 1996 में पद से इस्तीफा देना पसंद किया। 1999 में, उनकी सरकार 1 वोट से हार गई। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, बहुत से लोगों ने वाजपेयी जी से कहा कि उस समय हो रही अनैतिक राजनीति को चुनौती दें, लेकिन उन्होंने नियमों के अनुसार चलना पसंद किया।

आपातकाल विरोधी आंदोलन के एक स्तंभ थे वाजपेयी

मोदी ने कहा, अटल बिजारी वाजपेयी संविधान और उसके आदर्शों के रक्षक के रूप में खड़े थे। वह आपातकाल विरोधी आंदोलन के एक स्तंभ थे। आपातकाल के बाद 1977 के चुनावों के दौरान, उन्होंने अपनी पार्टी (जनसंघ) का जनता पार्टी में विलय करने पर सहमति व्यक्त की। मुझे यकीन है कि यह एक दर्दनाक निर्णय होता, लेकिन वाजेपेयी और अन्य लोगों के लिए संविधान की रक्षा ही सबसे महत्वपूर्ण थी।

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