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Assembly Elections: महाराष्ट्र-झारखंड चुनाव राहुल की भविष्य की राजनीति के लिए अहम, हारे तो बढ़ेंगी मुश्किलें

Maharashtra & Jharkhand Elections 2024, अजीत मेंदोला, (आज समाज), नई दिल्ली: महाराष्ट्र और झारखंड का चुनाव इस बार कांग्रेस और इंडिया गठबंधन का राजनीतिक भविष्य तय करेगा। खास तौर पर राहुल गांधी की राजनीति के लिए अहम होने जा रहे हैं। अगर एक भी राज्य खास तौर पर महाराष्ट्र में कांग्रेस की अगुवाई वाला गठबंधन चुनाव नहीं जीत पाता है तो फिर विपक्ष के लिए बड़ी चुनौतियां खड़ी हो जाएंगी।

कांग्रेस के सर्वोच्च नेता राहुल गांधी के लिए गठबंधन को बचा पाना मुश्किल हो जायेगा।यही नहीं पार्टी में भी सवाल खड़े हो सकते हैं ।यह सवाल ठीक उसी तरह के होंगे जैसे कि 2022 में राज्यों में लगातार हुई हार के बाद उठने लगे थे।तब कांग्रेस उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में चुनाव हार गई थी।उस समय नाराज नेताओं का ग्रुप 23 था जो बाद में बिखर गया।उसमें पार्टी के कई दिग्गज नेता शामिल थे जिन्होंने राहुल की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए थे।राहुल पर सवाल उठने के बाद उस समय चिंतन के लिए राजस्थान के उदयपुर में नव संकल्प सम्मेलन बुलाया गया था।

जिसमें कहने के लिए तमाम संकल्प लिए गए थे जो आज तक अमल में नहीं लाए गए थे।लेकिन असल में यह सम्मेलन केवल और केवल इसलिए बुलाया गया था कि कांग्रेस के अंदर कोई भी गांधी परिवार के खिलाफ सवाल उठाने की हिम्मत न करे।पूरी पार्टी गांधी परिवार के साथ है और उनके नेता राहुल गांधी हैं। उनका नेतृत्व ही सबको स्वीकारना होगा।इसमें तब सबसे अहम भूमिका राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने निभाई थी।

गहलोत ने सम्मेलन कराने की पूरी जिम्मेदारी ली थी और यही संदेश देने की कोशिश की थी कि गांधी परिवार को पार्टी में कोई चुनौती नहीं दे सकता है। 15 मई 2022 में यह सम्मेलन हुआ था।इस सम्मेलन को इस साल 15 नवंबर को ढाई साल पूरे हो गए हैं।इन ढाई साल में कांग्रेस राजस्थान समेत जैसे कई महत्व पूर्ण राज्यों में चुनाव हार गई।राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में जैसे तैसे चुनाव करवा मल्लिकार्जुन खरगे को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया।लेकिन पार्टी का कोई सिस्टम नहीं बदला।

हालांकि इन ढाई साल में दिल्ली में बहती यमुना नदी में बाढ़ भी आई।दिल्ली पानी पानी भी हुआ।मतलब बहुत पानी बह गया।लेकिन जैसे कांग्रेस में कुछ नहीं बदला वैसे ही यमुना नदी में भी कुछ नहीं बदला।आज भी यमुना नदी को अपनी सफाई का इंतजार है जिससे वह जीवनदायनी के रूप में बच सके।यही कांग्रेस के हालात हैं।अगर उदयपुर के नव संकल्प सम्मेलन के आधे संकल्पों पर भी पार्टी ने अमल किया होता तो देश भर में पार्टी का मजबूत ढांचा खड़ा हो गया होता।वेणुगोपाल एंड कंपनी से शायद पार्टी को मुक्ति मिल गई होती।

सफाई से नई कांग्रेस दिखती,लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।साफ था कि उदयपुर संकल्प तो पार्टी को ताकत देने के लिए नहीं बल्कि गांधी परिवार को मजबूती देने के लिए बुलाया गया था। वही हुआ भी ग्रुप 23 के कुछ नेता पार्टी छोड़ कर चले गए जो बचे हाशिए पर लगा दिए गए। राहुल गांधी अपनी ईमानदारी की ऐसी राजनीति की राह पर चल पड़े कि उन्होंने पार्टी संगठन पर ध्यान देने के बजाए वेणुगोपाल कंपनी और अगल बगल के नेताओं ने जो समझाया उस पर चल पड़े।इन्हीं नेताओं ने इंडिया गठबंधन बनवाया।

इन नेताओं को लग रहा था कि राजग सरकार दस साल बाद सत्ता में नहीं आएगी।इसलिए देश भर में जो दल मिला सबको साथ ले गठबन्धन बनवा राहुल गांधी को पिछड़ों की राजनीति में झोंक दिया।लोकसभा में बीजेपी बहुमत के आंकड़े से चूक गई और कांग्रेस की 99 सीट आ गई।इसे ही उपलब्धि मान विपक्ष बीजेपी पर हमलावर हो गया और राहुल गांधी विपक्ष के नेता बन गए।लेकिन हार पर मंथन नहीं किया।यहीं पर चूक हो गई।

लोकसभा चुनाव के चार माह बाद कांग्रेस का हरियाणा में जब बीजेपी से सीधा मुकाबला हुआ तो चुनाव हार गए।लोकसभा का जश्न 4 महीने में ही खत्म हो गया।हरियाणा की हार से राहुल गांधी के नेतृत्व और इंडिया गठबंधन के भविष्य पर सवाल खड़े हो गए।गठबंधन तो राज्यों में एक तरह से बिखर ही गया।अब जब महाराष्ट्र और झारखंड में चुनाव अंतिम दौर पर है।एक हफ्ते बाद परिणाम आ जाएंगे।तमाम तरह की कयास बाजी शुरू हो गई है।

कोई अगर मगर नहीं है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का ग्राफ दोनों राज्यों के परिणाम आने से पहले ही ऊपर चढ़ चुका।मतलब लोकसभा चुनाव के परिणामों के समय जो ग्राफ नीचे गिरा था फिर ऊपर आ गया।बीजेपी और संघ ने पूरी ताकत से मिल झारखंड और महाराष्ट्र फंसा दिया है।मतलब दोनों राज्यों में बीजेपी खेला करती दिख रही है।

अगर वाकई महाराष्ट्र में कांग्रेस हार गई तो इंडिया गठबंधन कितने दिन चलेगा कह पाना मुश्किल है।सबसे अहम राहुल गांधी के नेतृत्व पर सवाल उठ सकते हैं।राहुल गांधी को हर हाल में कड़े फैसले करने होंगे जिससे पार्टी को वेणुगोपाल एंड कंपनी और चौकड़ी से बचाया जा सके।क्योंकि चुनाव थमने वाले नहीं है।लगातार हर साल राज्यों में चुनाव हैं।2029 आम चुनाव कब आया पता ही नहीं चलेगा।अब तो बहन प्रियंका ने भी चुनावी राजनीति में एंट्री मार ली।कांग्रेसी कब क्या नारेबाजी कर दें उन्हें रोक पाना मुश्किल है।

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Vir Singh

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