दो दिन पहले एक तस्वीर सामने आई, जिसमें एक व्यक्ति साइकिल में अपनी पत्नी की लाश लटकाये चला जा रहा है। यह तस्वीर हमसे देखी न गई। फिर वही सवाल कि क्या देश की हालत इतनी खराब है कि हम डिजिटल वर्ल्ड में होने का दावा करें और हमारे पास अपने नागरिकों के लिए कुछ नहीं है। हमने एक मीडियाकर्मी के बारे में पता किया कि वह कई दिनों से नहीं दिख रहा, तो पता चला कि वह आजकल मनरेगा के तहत मजदूरी करने जाता है क्योंकि अखबार में कई महीने से वेतन नहीं मिला। घर में बच्चे भूख से बिलख रहे थे। छोटे उद्योगों में कम वेतन पर काम करने वाले मजदूरों और फुटपाथी मोटर मैकेनिकों का दर्द भी देखने को मिला। इनमें से कई ऐसे हैं, जो अच्छे मैकेनिक होने के कारण सम्मान पाते थे, उनमें से कुछ को झाड़ू लगाते देखा। पता चला कि लॉकडाउन के कारण काम नहीं मिल पा रहा, जिससे वह मजबूर हैं। कोरोनाग्रस्त इलाकों में सरकारी सफाईकर्मी जाने से कतरा रहे हैं, तो उन्होंने अपनी जगह पर ऐसे मजबूर लोगों को लगा रखा है। यही नहीं जो मीडिया कर्मी कोरोना प्रतिबंधों से जूझते और अपनी जान जोखिम में डालकर काम करने को सड़कों पर थे, आज उनकी नौकरियां छिन रही हैं। हमने पिछले एक सप्ताह में देखा कि कई अस्पतालों में अपनी जान पर खेलकर लोगों की जान बचाने में जुटे डॉक्टरों, नर्सों और सहयोगी कर्मियों को वेतन नहीं मिल पा रहा। उनके वेतन से कटौती की जा रही है। इस वक्त जब अस्पतालों का संकट खड़ा है, तब हम देखते हैं कि तुक्ष्य सियासी सोच के कारण एक दशक पूर्व स्वीकृत हुए नये क्षेत्रीय एम्स बनाने की प्रक्रिया लटकी हुई है। इसके बावजूद विकास का ढिंढोरा पीटने वाली सरकार मौन है।
कल हमें पत्नी ने बताया कि कोरोना के कारण चीनी और राशन के साथ ही कुकिंग गैस सिलेंडर की कीमत बढ़ गई है। पेट्रोल और डीजल का भी दाम बढ़ गया है। हमने पता किया तो जानकारी मिली कि इस वक्त विश्व के किसी भी देश की तुलना में हमारी सरकार सबसे अधिक टैक्स वसूल रही है। यह तब है जबकि हमारे देश के नागरिकों के लिए न कोई सामाजिक सुरक्षा है और न ही अन्य कोई मदद करने की व्यवस्था। जब देश के नागरिकों को सरकार से मदद की दरकार थी, तब उसने मदद करने के बजाय कमाई के कारपोरेट बिजनेस मॉडल को अपनाया। देश में कोरोना गंभीर रूप से फैल रहा है। देश के अस्पतालों में बेड कम पड़ रहे हैं। इसके चलते अन्य रोगियों का इलाज बंद है मगर सरकार की कोई प्रभावी कार्ययोजना नहीं दिख रही है। इस बारे में जब कोई सवाल उठाता है. तो उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज कर दिया जाता है। वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ हों या वीआरएस लेने वाले वरिष्ठ आईएएस अधिकारी सूर्य प्रताप सिंह, दोनों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली जाती है। वास्तविकता यही है कि अब तक देश की आबादी का एक फीसदी कोविड टेस्ट भी नहीं हुआ है। राज्यों को आर्थिक मदद देने के नाम पर “पिक एंड चूज” की नीति को अपनाया जा रहा है। इससे गैर भाजपा शासित राज्यों के नागरिकों को वाजिब मदद नहीं मिल पा रही। इन हालात में जब सभी को मिलकर लड़ना चाहिए, तब दिल्ली में भाजपा नेताओं ने स्थानीय सरकार पर आरोप लगाने के सिवाय कुछ नहीं किया। उन्होंने यह नहीं बताया कि दिल्ली के आधे से अधिक अस्पताल केंद्र सरकार या एमसीडी के अधीन हैं, और उन्होंने क्या योगदान दिया है?
एक खबर आई कि नेपाल पुलिस ने अपने नये मानचित्र पर काबिज होने के लिए सीतामढ़ी जिले की सीमा पर अंधाधुंध फायरिंग कर दी, जिसमें एक युवक मारा गया और कई घायल हो गये। साफ है कि नेपाल जैसा देश जिसे हम पालते रहे हैं, भी हम पर आंख तरेरने लगा है। हमारे पीएम नरेंद्र मोदी वहां दो बार गये और ढिंढोरा पीटा गया कि पहला भारतीय प्रधानमंत्री नेपाल की यात्रा पर गया है। यह जरूर सत्य है कि नेपाल ने पहली बार हमारी सीमा पर फायरिंग की है। पिछले सप्ताह चीन ने भारत की सीमा में फिंगर चार तक भूमि कब्जा ली है। अरुणाचल प्रदेश के डोकलाम में वह पहले भी ऐसा ही कर चुका है। हमारे सैन्य अधिकारियों की जब उनसे चर्चा हुई, तो बात चंद कदम पीछे हटने तक ही सीमित रही। नतीजतन चीन ने हमारी 60 वर्ग किमी भूमि पर कब्जा जमा लिया है। इसी बीच पता चला कि भारत सरकार ने चीनी टिकटॉक पर अपना खाता खोल लिया है, शायद अब उस पर जवाब दिया जाएगा। भारत सरकार के मंत्री अपने नागरिकों को जवाब देने के बजाय विपक्ष से सवाल करते हैं, वह भूल जाते हैं कि छह साल से सत्ता में वही हैं। इन बदतर हालात में सबसे शर्मनाक स्थिति भारतीय मीडिया की है, जो देश, देश वासियों के हितों पर चर्चा के बाजय पाकिस्तान की बरबादी और चीन झुका, हिंदू-मुस्लिम पर कार्यक्रम बनाने में व्यस्त हैं। वह सवाल सरकार से नहीं विपक्ष और कांग्रेसी नेता राहुल गांधी से करते हैं।
देश इस वक्त न सिर्फ कोरोना संकट से जूझ रहा है बल्कि सीमाओं और विदेश के साथ कूटनीतिक असफलता से भी जूझ रहा है। बदहाल आर्थिक दशा उसका बोनस है। इन सभी मुद्दों पर सरकार के मंत्री और प्रधानमंत्री मौन साधे हुए हैं। वाजिब सवाल करने पर विपक्ष को गद्दार बता दिया जाता है। ऐसे में भी सत्तानशीनों को शर्म नहीं आती कि जनहित के साथ ही राष्ट्रहित भी संक्रमित हो रहा है। क्या इन सियासी नेताओं की अंतरात्मा उससे सवाल नहीं करती कि वो इतने बेगैरत क्यों हैं कि न सच बोल सकते हैं और न सकारात्मक आलोचना को बर्दास्त कर सकते हैं। जरा सोचिये।
जयहिंद!
ajay.shukla@itvnetwork.com
(लेखक आईटीवी नेटवर्क के प्रधान संपादक हैं)