संत राजिन्दर सिंह जी महाराज
हम लोग जीवन में प्रभु के बारे में केवल तब सोचते हैं जब हम प्रभु से कुछ चाहते हैं। जब तक हम लोग मुश्किल में न हो तब तक हम प्रभु को याद नहीं करते। जब हमें कोई बीमारी हो जाती है या किसी दुर्घटना का सामना करते हैं, तब हम प्रभु को मदद के लिए पुकारते हैं। जब आर्थिक तंगी या नौकरी छूट जाए, तब हम प्रभु के आगे प्रार्थना की बौछार कर देते हैं। ज्यादातर इस प्रकार की परिस्थितियों में ही हम प्रभु को याद करते हैं।
प्रार्थना करते समय हम प्रभु के साथ सौदेबाजी भी करते हैं। हम कहते हैं, हे प्रभु! अगर आप मेरी प्रार्थनाओं को पूरी करेंगे तो मैं आपके लिए यह करूंगा। या अगर आप मुझे वह दे दो जो मैं चाहता हूँ तो मैं आपके लिए ऐसा करूंगा। क्या परमात्मा को वास्तव में हमसे कुछ चाहिए? प्रभु से अपनी प्रार्थनाओं को पूरा करवाने के लिए हम उनसे सौदेबाजी न करें क्योंकि प्रभु हमसे इस भौतिक दुनिया का कुछ नहीं चाहते। प्रभु हमसे केवल प्रेम चाहते हैं। वे चाहते हैं कि हम उनसे प्रेम करें, हमारे अंदर उन्हें जानने और पाने की तड़प व कशिश उत्पन्न हो।
इसलिए सबसे पहले हमें अपने अंदर ह्वप्रभु को पाने के प्रति सच्ची लगन और तड़प जागृत करनी हैह्ल। अगर हम इसको अपने जीवन में धारण कर लें तो हम प्रभु की खुशी को ग्रहण कर पाएंगे। प्रभु को प्रसन्न करने का यही सर्वश्रेष्ठ तरीका हैं। प्रभु हमारे माता-पिता, हमारे वास्तविक प्रीतम एवं हमारे सच्चे मित्र हैं। माता-पिता, प्रीतम और मित्र के प्रति हमारे प्रेम का इज़हार किसी भौतिक उपहार का मोहताज़ नहीं होता। वे केवल हमारा सच्चा प्रेम ही पाकर खुश होते हैं। प्रेम ही केवल ऐसी एकमात्र भाषा है जो हमारे दिल से दूसरे के दिलों तक बहुत जल्दी पहुँचती है। इसी तरह प्रभु को भी हमसे हमारे प्रेम के अतिरिक्त और कुछ नहीं चाहिए।
हम किस प्रकार प्रभु को अपना प्रेम दर्शा सकते हैं? ध्यान-अभ्यास हमारी आत्मा को प्रेम के साथ फिर से जोड़ने में मदद करता है। ध्यान-अभ्यास में बैठना एक संकेत है कि हम प्रभु से प्रेम करते हैं और प्रभु से मिलना चाहते हैं किंतु ध्यान-अभ्यास में सिर्फ पाँच मिनट बैठना और वह भी सप्ताह में एक-आध बार यह पर्याप्त नहीं है। जब हम रोज़ाना लगन और उत्साह से प्रभु को पाने के लिए ध्यान-अभ्यास में बैठते हैं, तब प्रभु देखते हैं कि हम हमसे मिलना चाहते हैं। संत-महापुरुष प्रतिदिन ढाई घंटे, दिन का दसवां हिस्सा हमें ध्यान-अभ्यास में देने की हिदायत देते हैं ताकि हम प्रभु को पा सकें। जब हम सच्ची लगन और तड़प के साथ ध्यान-अभ्यास में बैठते हैं, तब हमें प्रभु की दया और मदद अवश्य मिलती है ताकि हम अपने लक्ष्य तक बड़ी तेजी से पहुँच सकें।
प्रभु के प्रति प्रेम दर्शाने का दूसरा तरीका है निष्काम सेवा। सारी सृष्टि प्रभु की संतान है। जब हम निःस्वार्थ भाव से दूसरों की सेवा करते हैं, तो हम प्रभु की सेवा करते हैं। माता-पिता खुश होते हैं, जब लोग उनके बच्चों की मदद करते हैं। इसी प्रकार जब हम किसी भी प्रकार से प्रभु के बच्चों की मदद करते हैं तो प्रभु हमेशा प्रसन्न होते हैं। एक सबसे बड़ी चीज़ जो मनुष्य कर सकता है, वह दूसरों की सेवा करना क्योंकि प्रभु हमसे यही चाहते हैं।
अगर हम अपने जीवन में इन गुणों को धारण करेंगे तो हम देखेंगे कि ऐसा करने से न सिर्फ हमारे जीवन में खुशियाँ आएंगी बल्कि इससे औरों का जीवन भी सुख व शांति से भरपूर होगा और सबसे ज्यादा खुशी हमें इस बात की होगी कि हम वह कर रहे हैं जो प्रभु हमसे चाहते हैं।
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