मनोज वर्मा, कैथल :
वैश्विक आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर द्वारा संचालित संस्था आर्ट ऑफ लिविंग की कैथल इकाई के तत्वावधान में गुरु-ज्ञान, सेवा, साधना एवं सत्संग जैसे दिव्य रत्नों से सुसज्जित राष्ट्रव्यापी ऑनलाइन के साथ-साथ वेदविज्ञान महाविद्यापीठ कपिस्थल आश्रम, कैथल में सहज समाधि शिविर का समापन अंतरराष्ट्रीय आचार्या भानु नरसिम्हन एवं अल्पना मित्तल तथा प्रतिभागी साधकों द्वारा सम्पूर्ण विश्व-कल्याण हेतू मंगलकामना के पवित्र श्लोक ऊ सहनाववतु सहनौभुनक्तु सहवीर्यं करवावहै; तेजस्विना वधीतमस्तु मां विद्विषावहै। ऊ शान्ति: ऊ शान्ति: ऊ शान्ति: के मधुर गायन के साथ सम्पन्न हुआ। आचार्या अल्पना मित्तल ने बताया कि वेबकास्ट के माध्यम से आचार्या भानु नरसिम्हन के पावन सानिध्य में साधकों ने बौद्धिक एवं दार्शनिक वार्तालाप के अतिरिक्त गहरे ध्यान तथा विशिष्ट क्रियाओं प्रक्रियाओं के माध्यम से सहजता से ही समाधि की अवस्था को प्राप्त करने की सुपात्रता अर्जित की। आचार्या भानु नरसिम्हन ने बताया कि सहजता से ही गहनतम ध्यान की दिव्य अवस्था में गहरी विश्रांति से उपजी अलौकिक आनंद की सुखद अनुभूति ही सहज समाधि है।
समारोह में सभी योग साधक व गुरुजनों ने भाग लिया
सहज समाधि के नियमित अभ्यास से बुद्धि एवं भावनाओं के बीच सहजता से स्वयमेव ही सामंजस्य पैदा होने के फलस्वरूप न सिर्फ हमारे सहज बोध का क्रमबद्ध रुप से विकास होता है। अपितु सात्विक-तीक्ष्ण बुद्धि, विचारों में स्पष्टता, विश्रान्ति, संवेदनशीलता और संजीदगी जैसे नैसर्गिक गुण हमारे व्यक्तित्व का अभिन्न अंग बन जाते हैं। सहज समाधि का नियमित अभ्यास सूक्ष्मतम स्तर पर चेतना को सात्विक रुप में प्रभावित करने के साथ साथ आंतरिक शुद्धिकरण के लिए भी बेहद प्रभावशाली रहता है। प्रतिभागी साधिका मीनल सिंगला ने शिविर सम्बन्धी अपने अनुभव सांझा करते हुए बताया कि न सिर्फ स्वभाव में ठहराव आने से समाज एवं राष्ट्र के प्रति उत्तरदायित्व के एहसास में बढ़ोतरी हुई है, अपितु जीवन में चुनौतियों का सामना करने का दृढ़ संकल्प भी जागृत हुआ है। आचार्या भानु नरसिम्हन द्वारा त्रिगुणात्मक प्रकृति के भिन्न भिन्न आयामों की विद्वतापूर्ण विवेचना करना इस कार्यक्रम का प्रमुख आकर्षण रहा। देश की वर्तमान स्थिति के दृष्टिगत आचार्या भानु नरसिम्हन द्वारा साधकों को भोजन, संगति तथा वातावरण के मानव जीवन पर पडऩे वाले प्रभाव के बारे में गूढ़ एवं ज्ञानवर्धक ज्ञान प्रदान करते हुए समाजोपयोगी सार्थक जीवन जीने की प्रेरणा देना इस शिविर की दिव्य विशेषता रही।
समाज को सुगंधित करने का शुभ संकल्प धारण करे
आचार्या भानु नरसिम्हन ने न सिर्फ प्रतिभागियों की अध्यात्म से सम्बद्ध प्रश्नों के उत्तर देते हुए उनकी जिज्ञासा शान्त की, अपितु उन्हें यह भी समझाया कि किस प्रकार हम गुरु-ज्ञान की मदद से वैदिक-संस्कारों को अपने दुर्लभ मानव-जीवन में समाविष्ट कर, अपना अमूल्य जीवन उच्चतम धरातल पर जीते हुए सभी प्रकार के ऋणों से उऋण हो सकते हैं। सम्पूर्ण भारतवर्ष से प्रतिभागी साधकों द्वारा सेवा, साधना व सत्संग को अपने जीवन का अभिन्न अंग बना आध्यात्म की पवित्र खुशबू से सम्पूर्ण समाज को सुगन्धित करने का शुभ संकल्प धारण करना इस शिविर की अद्वितीय विशेषता रही। कार्यक्रम के अंतिम चरण में आचार्या भानु नरसिम्हन संग प्रतिभागी साधकों द्वारा पावन श्लोक ऊ सर्वे भवन्तु सुखिन:। सर्वे सन्तु निरामया:। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु। मा कश्चित् दु:ख भाग्भवेत्॥ ऊ शान्ति शान्ति शान्ति:॥ के मधुर गायन के माध्यम से प्रार्थना की गई कि, हे प्रभु ! हमें वर दीजिए कि सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी का जीवन मंगलमय बने और कोई भी दु:ख का भागी न बने ! इस दिव्य आयोजन से विभु मुरार, मीनल सिंगला, सुशील गाँधी, रामकुमार, अनमोल, दीपक चुघ, कृष्ण मिगलानी, संतोष चुघ तथा राजेश कुमार आदि साधक लाभान्वित हुए। इस सम्पूर्ण दिव्य आयोजन की सफलता तय करने में सभी स्वयंसेवकों ने सराहनीय योगदान प्रदान किया।
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