कुम्भ राशिफल 04 मई 2022

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कुम्भ राशिफल 04 मई 2022

***|| जय श्री राधे ||***

*** महर्षि पाराशर पंचांग ***
*** अथ पंचांगम् ***
****ll जय श्री राधे ll****
*** *** *** *** *** ***

दिनाँक:-04/05/2022, बुधवार
तृतीया, शुक्ल पक्ष
वैशाख
“””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””(समाप्ति काल)

***  दैनिक राशिफल ***

देशे ग्रामे गृहे युद्धे सेवायां व्यवहारके।
नामराशेः प्रधानत्वं जन्मराशिं न चिन्तयेत्।।
विवाहे सर्वमाङ्गल्ये यात्रायां ग्रहगोचरे।
जन्मराशेः प्रधानत्वं नामराशिं न चिन्तयेत ।।

कुंभ

आज आपको अपने मन पर पूरा नियंत्रण रखना होगा,तभी आप किसी कार्य को कर पाएंगे,नहीं तो आपका मना चंचलता से इधर-उधर रहेगा और आपका ध्यान भटकेगा। अध्यात्म में रुचि रहेगी। किसी धार्मिक आयोजन में भाग लेने का मौका हाथ आएगा। सुख-शांति बने रहेंगे। कारोबार मनोनुकूल चलेगा। मित्रों का सहयोग लाभ में वृद्धि करेगा। लंबित कार्य पूर्ण होंगे। निवेश शुभ रहेगा। प्रसन्नता का वातावरण रहेगा। जोखिम व जमानत के कार्य टालें। प्रमाद न करें। यदि आस पड़ोस में कोई वाद-विवाद हो, तो आपको उसमें बचने की कोशिश करनी होगी,नहीं तो वह कानूनी हो सकता है। आप घर की साफ,सफाई,रखरखाव आदि की ओर भी कुछ ध्यान लगाएंगे और दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कुछ खरीदारी भी कर सकते हैं।

 

तिथि———– तृतीया 07:32:28 तक
पक्ष———————— शुक्ल
नक्षत्र——— मृगशिरा 30:15:18
योग———- अतिगंड 17:05:05
करण————–गर 07:32:28
करण———– वणिज 20:45:19
वार————————बुधवार
माह———————– वैशाख
चन्द्र राशि——- वृषभ 16:44:43
चन्द्र राशि—————— मिथुन
सूर्य राशि——————– मेष
रितु———————— वसंत
सायन———————- ग्रीष्म
आयन—————— उत्तरायण
संवत्सर———————–नल
संवत्सर (उत्तर)—————– राक्षस
विक्रम संवत—————- 2079
विक्रम संवत (कर्तक)——— 2078
शाका संवत—————- 1944

वृन्दावन
सूर्योदय————— 05:39:05
सूर्यास्त—————- 18:53:15
दिन काल————- 13:14:09
रात्री काल————- 10:45:04
चंद्रोदय—————- 07:48:17
चंद्रास्त—————- 22:15:11

लग्न—- मेष 19°22′ , 19°22′

सूर्य नक्षत्र—————— भरणी
चन्द्र नक्षत्र—————–मृगशिरा
नक्षत्र पाया——————- लोहा

*** पद, चरण ***

वे—- मृगशिरा 10:00:18

वो—- मृगशिरा 16:44:43

का—- मृगशिरा 23:29:46

*** ग्रह गोचर ***

ग्रह =राशी , अंश ,नक्षत्र, पद
*** *** *** *** *** *** *** ***
सूर्य=मेष 19:12 भरणी , 2 लू
चन्द्र =वृषभ 24°23 , मृगशिरा, 1 वे
बुध =वृषभ 08 ° 07′ कृतिका ‘ 4 ए
शुक्र=कुम्भ 07 °05, उo भा o ‘ 2 थ
मंगल=कुम्भ 19°30 ‘ पूoभाo’ 1 से
गुरु=मीन 03°30 ‘ ऊ o भा o, 1 दू
शनि=कुम्भ 00°33 ‘ धनिष्ठा ‘ 3 गु
राहू=(व) मेष 28°55’ कृतिका , 1 अ
केतु=(व) तुला 28°55 विशाखा , 3 ते

*** मुहूर्त प्रकरण ***

राहू काल 12:16 – 13:55 अशुभ
यम घंटा 07:18 – 08:58 अशुभ
गुली काल 10:37 – 12: 16अशुभ
अभिजित 11:50 -12:43 अशुभ
दूर मुहूर्त 11:50 – 12:43 अशुभ

चोघडिया, दिन
लाभ 05:39 – 07:18 शुभ
अमृत 07:18 – 08:58 शुभ
काल 08:58 – 10:37 अशुभ
शुभ 10:37 – 12:16 शुभ
रोग 12:16 – 13:55 अशुभ
उद्वेग 13:55 – 15:35 अशुभ
चर 15:35 – 17:14 शुभ
लाभ 17:14 – 18:53 शुभ

चोघडिया, रात
उद्वेग 18:53 – 20:14 अशुभ
शुभ 20:14 – 21:35 शुभ
अमृत 21:35 – 22:55 शुभ
चर 22:55 – 24:16* शुभ
रोग 24:16* – 25:36* अशुभ
काल 25:36* – 26:57* अशुभ
लाभ 26:57* – 28:18* शुभ
उद्वेग 28:18* – 29:38* अशुभ

होरा, दिन
बुध 05:39 – 06:45
चन्द्र 06:45 – 07:51
शनि 07:51 – 08:58
बृहस्पति 08:58 – 10:04
मंगल 10:04 – 11:10
सूर्य 11:10 – 12:16
शुक्र 12:16 – 13:22
बुध 13:22 – 14:29
चन्द्र 14:29 – 15:35
शनि 15:35 – 16:41
बृहस्पति 16:41 – 17:47
मंगल 17:47 – 18:53

होरा, रात
सूर्य 18:53 – 19:47
शुक्र 19:47 – 20:41
बुध 20:41 – 21:35
चन्द्र 21:35 – 22:28
शनि 22:28 – 23:22
बृहस्पति 23:22 – 24:16
मंगल 24:16* – 25:10
सूर्य 25:10* – 26:03
शुक्र 26:03* – 26:57
बुध 26:57* – 27:51
चन्द्र 27:51* – 28:45
शनि 28:45* – 29:38

*** उदयलग्न प्रवेशकाल ***

मेष > 03:54 से 05:44 तक
वृषभ > 05:44 से 07:34 तक
मिथुन > 07:34 से 09:49 तक
कर्क > 09:49 से 12:06 तक
सिंह > 12:06 से 14:19 तक
कन्या > 14:19 से 06:30 तक
तुला > 06:30 से 06:45 तक
वृश्चिक > 06:45 से 08:59 तक
धनु > 08:59 से 23:00 तक
मकर > 23:00 से 00:52 तक
कुम्भ > 00:52 से 02:20 तक
मीन > 02:20 से 03:54 तक

विभिन्न शहरों का रेखांतर (समय)संस्कार

(लगभग-वास्तविक समय के समीप)
दिल्ली +10मिनट——— जोधपुर -6 मिनट
जयपुर +5 मिनट—— अहमदाबाद-8 मिनट
कोटा +5 मिनट———— मुंबई-7 मिनट
लखनऊ +25 मिनट——–बीकानेर-5 मिनट
कोलकाता +54—–जैसलमेर -15 मिनट

नोट– दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है।
प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है।
चर में चक्र चलाइये , उद्वेगे थलगार ।
शुभ में स्त्री श्रृंगार करे,लाभ में करो व्यापार ॥
रोग में रोगी स्नान करे ,काल करो भण्डार ।
अमृत में काम सभी करो , सहाय करो कर्तार ॥
अर्थात- चर में वाहन,मशीन आदि कार्य करें ।
उद्वेग में भूमि सम्बंधित एवं स्थायी कार्य करें ।
शुभ में स्त्री श्रृंगार ,सगाई व चूड़ा पहनना आदि कार्य करें ।
लाभ में व्यापार करें ।
रोग में जब रोगी रोग मुक्त हो जाय तो स्नान करें ।
काल में धन संग्रह करने पर धन वृद्धि होती है ।
अमृत में सभी शुभ कार्य करें ।

दिशा शूल ज्ञान————-उत्तर
परिहार-: आवश्यकतानुसार यदि यात्रा करनी हो तो पान अथवा पिस्ता खाके यात्रा कर सकते है l
इस मंत्र का उच्चारण करें-:
शीघ्र गौतम गच्छत्वं ग्रामेषु नगरेषु च l
भोजनं वसनं यानं मार्गं मे परिकल्पय: ll

अग्नि वास ज्ञान -:
यात्रा विवाह व्रत गोचरेषु,
चोलोपनिताद्यखिलव्रतेषु ।
दुर्गाविधानेषु सुत प्रसूतौ,
नैवाग्नि चक्रं परिचिन्तनियं ।। महारुद्र व्रतेSमायां ग्रसतेन्द्वर्कास्त राहुणाम्
नित्यनैमित्यके कार्ये अग्निचक्रं न दर्शायेत् ।।

3 + 4 + 1 = 8 ÷ 4 = 0 शेष
मृत्यु लोक पर अग्नि वास हवन के लिए शुभ कारक है l

*** ग्रह मुख आहुति ज्ञान ***

सूर्य नक्षत्र से अगले 3 नक्षत्र गणना के आधार पर क्रमानुसार सूर्य , बुध , शुक्र , शनि , चन्द्र , मंगल , गुरु , राहु केतु आहुति जानें । शुभ ग्रह की आहुति हवनादि कृत्य शुभपद होता है

बुध ग्रह मुखहुति

शिव वास एवं फल -:

3 + 3 + 5 = 11 ÷ 7 = 4 शेष

सभायां = संताप कारक

भद्रा वास एवं फल -:

स्वर्गे भद्रा धनं धान्यं ,पाताले च धनागम:।
मृत्युलोके यदा भद्रा सर्वकार्य विनाशिनी।।

रात्रि 20:46 से प्रारम्भ

स्वर्ग लोक = शुभ कारक

*** विशेष जानकारी ***

*तृतीया तिथि वृद्धि

* विनायक चतुर्थी व्रत

*सर्वार्थ सिद्धि योग अहोरात्र

* कोयला श्रमक दिवस

*** शुभ विचार ***

तैलाभ्यड्गे चिताधूमे मैथुने क्षौरकर्मणि ।
तावद् भवति चाण्डालो यावत्स्नानं न चाचरेत् ।।
।। चा o नी o।।

शरीर पर मालिश करने के बाद, स्मशान में चिता का धुआ शरीर पर आने के बाद, सम्भोग करने के बाद, दाढ़ी बनाने के बाद जब तक आदमी नहा ना ले वह चांडाल रहता है.

*** सुभाषितानि ***

गीता -: पुरुषोत्तमयोग अo-15

अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रितः ।,
प्राणापानसमायुक्तः पचाम्यन्नं चतुर्विधम्‌ ॥,

मैं ही सब प्राणियों के शरीर में स्थित रहने वाला प्राण और अपान से संयुक्त वैश्वानर अग्नि रूप होकर चार (भक्ष्य, भोज्य, लेह्य और चोष्य, ऐसे चार प्रकार के अन्न होते हैं, उनमें जो चबाकर खाया जाता है, वह ‘भक्ष्य’ है- जैसे रोटी आदि।, जो निगला जाता है, वह ‘भोज्य’ है- जैसे दूध आदि तथा जो चाटा जाता है, वह ‘लेह्य’ है- जैसे चटनी आदि और जो चूसा जाता है, वह ‘चोष्य’ है- जैसे ईख आदि) प्रकार के अन्न को पचाता हूँ॥,14॥,

*** आपका दिन मंगलमय हो *** 
*** *** *** *** *** *** *** 
आचार्य नीरज पाराशर (वृन्दावन)
(व्याकरण,ज्योतिष,एवं पुराणाचार्य)

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