नयी दिल्ली। बलात्कार एक स्त्री के लिए केवल शारीरिक ही नहीं बल्कि मानसिक प्रताड़ना भी होती है। बलात्कार से गुजरने वाली महिला या लड़की इसकी चोट का अहसास अपनी आत्मातक पर करती है। इसे केवल शारीरिक शोषण ही नहीं कहा जा सकता है। इस हालात से गुजरने वाली महिला के लिए मेडिकल चेकअप में डाक्टरों द्वारा किया जाने वाला टू फिंगर टेस्ट भी भयानक होता था। उच्चतम न्यायालय ने 2013 में बलात्कार की पुष्टि करने के लिए इस्तेमाल होने वाले ‘दो उंगली परीक्षण पर पाबंदी लगा दी थी। अब बलात्कार की करीब 1500 पीड़िताओं और उनके परिजनों ने शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय को एक पत्र लिखकर उन डॉक्टरों के लाइसेंस रद्द करने की मांग की जो शीर्ष अदालत की पाबंदी के बावजूद ”शर्मिंदगीपूर्ण दो उंगलियों वाला परीक्षण करते हैं। यौन हिंसा की 12 हजार से अधिक पीड़िताओं और उनके परिजनों के मंच ‘राष्ट्रीय गरिमा अभियान ने यह पत्र सौंपा।पत्र में कहा गया, ”परीक्षण को इसलिए प्रतिबंधित किया गया क्योंकि यह न केवल पीड़िता के निजता के अधिकार का उल्लंघन करता है बल्कि यह अवैज्ञानिक है और इसे पीड़िता के पिछले यौन संबंधों के इतिहास को लेकर उसे शर्मसार करने के लिए अदालत में साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। समूह ने डॉक्टरों द्वारा इस तरह के उल्लंघन के 57 से अधिक मामले एकत्र किये हैं। समूह ने अपने पत्र में बच्चों के बलात्कार के बढते मामलों, आधारभूत ढांचे की कमी और इन मामलों में सुनवाई और जांच में देरी पर स्वत: संज्ञान वाली जनहित याचिका के लिए उच्चतम न्यायालय का धन्यवाद दिया।