Chandigarh News (आज समाज) चंडीगढ़: हरियाणा में भाजपा भले ही 10 साल की एंटी इनकंबेंसी से जूझ रही हो लेकिन कांग्रेस के लिए भी रास्ता आसान नहीं है। इसके संकेत मई महीने में हुए 10 लोकसभा सीट पर चुनाव के वोट परसेंट से मिलता है। जिसके बारे में कांग्रेस और भाजपा की टिकट बांटने की मीटिंगों में भी हो रहा है। जिसमें वोट परसेंट को लेकर भी पार्टियां चुनावी रणनीति से जोड़कर चल रही हैं। कांग्रेस में हाईकमान ने टिकट बंटवारे की कमान अपने हाथ में ले चुका है। 90 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस हाईकमान ने अपनी कमेटियां भेज दी हैं। वहीं भाजपा ने भी सीट टू सीट मार्किंग से चुनाव जीतने की प्लानिंग कर ली है।
2019 में भाजपा ने हरियाणा में सभी 10 लोकसभा सीटें जीतीं। 2024 में भाजपा सिर्फ 5 ही जीत सकी। हालांकि भाजपा को 46.11% वोट मिले। इसके उलट कांग्रेस ने भी 5 ही सीटें जीतीं। मगर उन्हें 43.67% वोट मिले।
10 लोकसभा सीटों के नतीजे को विधानसभा वाइज देखें तो 90 में से 44 सीटों पर भाजपा को बढ़त रही। कांग्रेस को 42 सीटों पर बढ़त मिली। 4 सीटों पर आम आदमी पार्टी (अअढ) आगे रही। लोकसभा में अअढ-कांग्रेस साथ थी। विधानसभा में दोनों पार्टियां अलग-अलग लड़ रही हैं।
लोकसभा के नतीजे को अगर 2019 के हिसाब से देखें तो वोटरों का रुझान कांग्रेस की तरफ हुआ है। 2019 में कांग्रेस सभी 10 सीटें हारी और वोट परसेंट 28.51% रहा। 2024 में यह बढ़कर 43.67% हो गया। इसके उलट भाजपा का वोट परसेंट 2019 में 58.21% से घटकर 46.11% हो गया।
लोकसभा रिजल्ट के लिहाज से देखें तो 10 साल सरकार चलाने के बावजूद भाजपा मुकाबले से बाहर नहीं है। भाजपा का वोट परसेंट कांग्रेस से ज्यादा है। विधानसभा वाइज भी कांग्रेस से 2 सीटें ज्यादा जीतीं। हालांकि भाजपा को 10 साल की एंटी इनकंबेंसी से जूझना पड़ेगा।
लोकसभा रिजल्ट के लिहाज से वोटरों का रुझान कांग्रेस के पक्ष में नजर आता है। इसकी वजह ये है कि 2019 के मुकाबले 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 15.16% वोट ज्यादा मिले। हालांकि गुटबाजी कांग्रेस की बड़ी चिंता है। अपने समर्थक ज्यादा विधायक जिता सरकार बनने की सूरत में सीएम कुर्सी पर मजबूत दावे के लिए पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा, सिरसा सांसद कुमारी सैलजा और रणदीप सुरजेवाला की लड़ाई किसी से छिपी नहीं है।
भाजपा अमूमन किसी एक चेहरे पर चुनाव लड़ती है। हरियाणा में इस बार ऐसा नहीं है। इसके उलट भाजपा सीट टू सीट मार्किंग कर रही है। किस सीट का जातीय गणित क्या है। वहां का डिसाइडिंग फैक्टर क्या है?। कौन नाराज है?। उसे कैसे मना सकते हैं?। कौन उम्मीदवार यहां जिताऊ होगा। इन सब पर प्रदेश चुनाव समिति की मीटिंग में मंथन किया।
भाजपा इस बार किसी एक बड़े वोट बैंक पर फोकस नहीं कर रही। जाट, पंजाबी और ओबीसी के अलावा बचे छोटे वोट बैंक पर पार्टी की नजर है। उन्हें कैसे खुश कर अपने पक्ष में ला सकते हैं, इसको लेकर रणनीति बना उस पर काम किया जा रहा है। खासकर, उन सीटों पर जहां वे हार-जीत में प्रभावी साबित हो सकते हैं।
लोकसभा में भाजपा ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से दूरी बनाई। विधानसभा में फरर अहम भूमिका में है। फरर के ग्राउंड लेवल सर्वे के फीडबैक को टिकट बांटने पूरी तरजीह दी जा रही है। वोटिंग के लिए भी फरर के ग्राउंड वर्कर भाजपा की मदद करेंगे।
भाजपा टिकट बंटवारे में बहुत सधी हुई चाल चल रही है। इसके लिए मंत्रियों-विधायकों के भी टिकट कटेंगे। गुरुग्राम में हुई चुनाव समिति की मीटिंग में 41 में से 20 से ज्यादा विधायक और आधे से ज्यादा मंत्रियों की टिकट काटने पर चर्चा हुई। यहां नए चेहरे उतारे जाएंगे।
हरियाणा में भाजपा गैर जाट पॉलिटिक्स करती है। 10 साल में पहले पंजाबी और फिर डइउ सीएम बनाया। हालांकि पूर्व सीएम बंसीलाल की बहू किरण चौधरी को पार्टी में शामिल कर 2 महीने में ही राज्यसभा भेज जाटों को रिझाया है।
किसान आंदोलन झेल रही भाजपा ने छोटे किसानों पर फोकस किया है। नेताओं से दूरी बना भाजपा ने प्रदेश में 24 फसलों पर टरढ की घोषणा की। अब 2019 की मेनिफेस्टो की थीम ‘हम सबका ख्याल रखते हैं, हम योजनाओं को लटकाते, भटकाते, अटकाते नहीं हैं।’ को बदलकर किसानों पर केंद्रित किया जा रहा है।
भाजपा परिवारवाद पर खुल कांग्रेस की आलोचना करती है। मगर, हरियाणा चुनाव के लिए यह रणनीति बदली गई है। यहां जिताऊ चेहरों को टिकट देने में इस परिवारवाद से परहेज नहीं किया जाएगा। इसके लिए पहली बार फरर ने भी भाजपा को खुली छूट दे दी है। इससे पहले संघ इसका सबसे बड़ा विरोधी रहा है।
भाजपा बड़े चेहरों पर दांव खेलेगी। लोकसभा चुनाव हारे अशोक तंवर, पूर्व सांसद सुनीता दुग्गल समेत दिग्गज चेहरों को टिकट दी जा सकती है। भाजपा इनके रसूख को हरियाणा में सरकार की हैट्रिक के लिए इस्तेमाल करना चाहती है।
गुटबाजी से हरियाणा कांग्रेस भी अछूती नहीं है। हाईकमान कितना कह ले लेकिन सीएम कुर्सी की चाह का असर सीधे टिकट की सिफारिशों पर दिखा। इसीलिए कांग्रेस हाईकमान ने टिकट बंटवारे की कमान अपने हाथ में ले ली। स्क्रीनिंग कमेटी के चेयरमैन अजय माकन को सभी 90 विधानसभा सीटों में अपनी कमेटी भेजने को कहा। जिसकी रिपोर्ट सीधे राहुल गांधी और राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को जाएगी। इस बार यह पहले लिया फैसला है। लोकसभा में सब कमेटी तक के फेल होने के बाद अधिकार हाईकमान को सौंपे गए थे।
गुटबाजी कांग्रेस की हार की बड़ी वजह रही है। इसे कांग्रेस हाईकमान भी जानता है। इसके लिए स्क्रीनिंग कमेटी की मीटिंग में हुड्डा और सैलजा-सुरजेवाला को एक साथ बिठाया गया। अब भी राहुल गांधी ने उन्हें प्रदेश में एकजुट नजर आने को कहा है। आने वाले दिनों में प्रदेश के सभी कांग्रेसी दिग्गज एक मंच पर नजर आ सकते हैं।
कांग्रेस उन्हीं मुद्दों को आगे बढ़ा रही है, जिनसे 10 साल में लोगों की परेशानी सामने आई। इनमें सबसे बड़ा मुद्दा हर सरकारी सेवा के लिए पोर्टल बनाने का है। दूसरा हर सरकारी फायदे के लिए परिवार पहचान पत्र को लागू करना है। जिनमें गलतियां होने पर ठीक कराने के लिए लोगों को चक्कर काटने पड़े।
कांग्रेस के लिए बड़ी चिंता सभी 90 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ रही आम आदमी पार्टी है। लोकसभा में कांग्रेस ने 9 और आप ने एक सीट पर गठबंधन में चुनाव लड़ा। कांग्रेस 5 जीत गई लेकिन आप कुरूक्षेत्र सीट हार गई। हालांकि लोकसभा रिजल्ट को विधानसभा वाइज देखें तो 42 में कांग्रेस और 4 आप जीती थी। दोनों मिलकर लड़ते तो यह आंकड़ा 45 के बहुमत से 1 सीट ज्यादा 46 है। ऐसे में कांग्रेस के लिए यह चिंता बनी हुई है।
हरियाणा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस समेत 5 पार्टियां मुकाबले में हैं। जिनमें जजपा, इनेलो-बसपा गठबंधन और आप शामिल है। इसके अलावा निर्दलीय भी चुनाव जीतते आ रहे हैं। अगर भाजपा अपने लोकसभा के वोट परसेंट को भी जकड़कर रख पाई तो कांग्रेस के लिए मुसीबत हो सकती है। खासकर, जाट और एससी वोट बैंक कांग्रेस के अलावा जजपा और इनेलो-बसपा में बंट सकता है। कांग्रेस के लिए अच्छी बात ये है कि लोकसभा में यह बिखराव नहीं हुआ था।
कांग्रेस नेताओं को पूरी उम्मीद है कि इस बार उनकी सरकार बनेगी। यही वजह है कि 90 सीटों पर कांग्रेस के 2,556 नेताओं ने टिकट के लिए आवेदन किया हुआ है। ऐसे में जब टिकट बंटवारा होगा तो पार्टी में भगदड़ और बगावत तय है। यह चुनाव का अंतिम वक्त होगा, ऐसे में कांग्रेस को इसे संभालने का मौका नहीं मिलेगा।
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