Kurukshetra News : चुनावी शोर में अन्नदाता गायब

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चुनावी शोर में अन्नदाता गायब
Kurukshetra News: चुनावी शोर में अन्नदाता गायब

सरकारी खरीद शुरू न होने के कारण मंडियों में लगे धान के ढेर
विधानसभा चुनाव में भाजपा को झेलनी पड़ सकती है किसानों की नाराजगी
(आज समाज) कुरुक्षेत्र: हरियाणा में विधानसभा चुनाव प्रचार पूरे जोर-शोर के साथ चल रहा है। उधर प्रदेश में धान कटाई का सीजन भी रफ्तार पड़ चुका है। मंडियां धान से भर चुकी है। लेकिन धान की सरकारी खरीद शुरू होने के नाम पर किसानों को बस मिल रही है तारीख पे तारीख, तारीख पे तारीख। आज के हालात में दामिनी मूवी का यह डायलॉग आज हरियाणा के किसानों पर फीट बढ़ता है। प्रदेश में पिछले 15 दिन से धान कटाई का सीजन चल रहा है। लेकिन आज तक किसानों के धान का एक भी दाना सरकार खरीद नहीं पाई। सरकार ने पहले धान खरीद की तारीख 23 सितंबर तय की। किसानों में इस बात की खुशी थी कि चलो चुनाव के कारण की सही पर उनके हित में सरकार ने एक सप्ताह पहले धान की खरीद करने का निर्णय तो लिया।

लेकिन सरकार ने इस तारीख को धान की खरीद न कर किसानों को एक नई तारीख दे दी 27 सितंबर। कारणवश धान खरीद 27 को भी शुरू नहीं हो पाई। सरकार के नुमाइंदे धान खरीदने के लिए मंडियों में गए लेकिन आढ़ती और मिलर्स ने अपनी मांगों को लेकर खरीद में सहयोग करने से मना कर दिया। सरकारी बाबुओं का दस्ता बैरंग लौट आया। किसानों को भ्रम था कि खरीद 1 अक्टूबर से शुरू हो जाएगी पर यह भ्रम भी जल्द ही टूट गया। अपनी मांगों पर अड़े मिलर्स ने साफ शब्दों में कहा कि मांगे पूरी नहीं होने तक धान खरीद में किसी भी तरह का सहयोग नहीं करेंगे। अधिकारियों और राइस मिलर्स एसो. के बीच बैठकों का दौर चला। लेकिन मांगों पर सहमति न बनने के कारण बठकें बेनतीजा रही। अब हालात यह है कि मंडियों में पैर रखने की भी जगह नहीं है। किसान हाइवे किनारे धान के ढेÞर लगाए बैठे है।

नेता प्रचार में व्यस्त

हरियाणा में विधानसभा चुनाव प्रचार पूरे उफान पर है। रैलियों में किसानों के मुद्दे पर लंबे-लंबे भाषण तो दिए जाते है। लेकिन किसानों की समस्याओं को हल करने का प्रयास कोई नहीं करता। पहले खेत में किसानों को फसल की रखवाली करनी पड़ रही थी। अब जब फसल पक कर तैयार हो चुकी है तो किसान उसे कटवाकर मंडियों में या फिर सड़क किनारे ढेर लगाए दिन-रात बैठा है। ऐसा प्रतीत होता है राजनीतिक दलों के चुनाव प्रचार के शोर में कहीं न कहीं अन्नदाता भी गायाब हो चुका है। सभी का पहला मकसद सिर्फ और सिर्फ चुनाव जीतना है।

सत्ता पक्ष भी मौन, विपक्ष सत्ता हासिल करने के रास्ते की तलाश में

केंद्र में भाजपा की सरकार है। प्रदेश में इस समय भाजपा की ही कार्यवाहक सरकार है। लेकिन किसानों की आमदनी दोगुनी करने की बात कहने वाली भाजपा सरकार किसानों के धान खरीदने में कोई रूचि नहीं दी रही। केंद्र सरकार के बड़े-बडेÞ नेता रैली करने हरियाणा आते है। एक लंबा सा भाषण देकर चले जाते है। किसानों की सुध लेने वाला कोई भी है। वहीं विपक्ष के नेताओं को भी किसानों के मुद्दों से कुछ लेना-देना नहीं है। वह खुद सत्ता के रास्ते की तलाश में व्यस्त है। उनका मकसद भी सिर्फ प्रदेश की बागडोर अपने हाथ में लेना ही है।

किसानों की नाराजगी पड़ सकती है भारी

अभी कुछ माह पहले हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा किसानों को अनदेखा करने का परिणाम भुगत चुकी है। 2019 में प्रदेश की 10 की 10 लोकसभा सीट जीतने वाली भाजपा 2024 में मात्र 5 ही सीटें जीत पाई। भाजपा प्रत्याशी को ग्रामीण इलाकों में भारी विरोध का सामना करना पड़ा। अगर इस समय भी धान खरीद के इस मुद्दें का जल्द समाधान नहीं हुआ तो भाजपा को किसानों की नाराजगी के कारण भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।

राइस मिलर्स की मुख्य मांगे

धान की हाइब्रिड वैरायटी बाजार में आ चुकी है। यह फसल जल्दी तैयार हो जाती है, लेकिन इसमें प्रति क्विंटल धान से औसतन 60 से 62 किलोग्राम चावल ही निकलता है। जबकि सरकार 67 किलोग्राम ले रही है। सरकार की शर्त के अनुसार मिल मालिक से मिलने वाले चावल में टुकड़े की मात्रा 25 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए। जबकि हाइब्रिड धान से 35 से 40 प्रतिशत टुकड़ा निकलता है। टूटे चावलों की मात्रा बढ़ाई जाए। सरकारी गोदामों में चावल रखने की जगह नहीं है। अब धान की जो कुटाई होगी उसका चावल कहां रखा जाए, इसकी कोई स्पष्टता नहीं है। सरकार की तरफ से 10 रुपये प्रति क्विंटल मीलिंग चार्ज दिया जाता है। जबकि मिलर्स का खर्चा 120 रुपये आता है, जोकि छत्तीसगढ़ में लागू भी है।

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