Paddy Crop, नई दिल्ली: धान उत्पादक किसानों के लिए एक जरूरी खबर सामने आई है. किसान कड़ी मेहनत से फसल को उगाता है, लेकिन कई बार सही प्रबंधन नहीं होने के चलते फसलों में कीट और रोगों का संक्रमण बढ़ जाता है. ऐसी स्थिति में उत्पादन प्रभावित होने से किसानों को आर्थिक नुकसान झेलना पड़ता है. यदि सही समय पर किसान फसलों में लगने वाले रोग और कीटों पर नियंत्रण कर लेते हैं, तो नुकसान से बचा जा सकता हैं.
जिंक की कमी से फैलता है रोग
पौधा संरक्षण पर्यवेक्षक बसंत नारायण सिंह ने एक न्यूज चैनल से बातचीत करते हुए बताया कि इस समय धान की बुआई लगभग पूरी हो चुकी है और रोपाई के महज 10 से 15 दिनों में धान के फसलों में जिंक की कमी से होने वाला रोग फैल जाता है. इसके साथ ही, तना छेदक कीट का भी संक्रमण होता है, जिससें फसलों में बाहरी नुकसान भी होता है.
इन सभी के दुष्प्रभाव से धान के उत्पादन पर प्रभाव पड़ता है, जिससे किसानों को भारी आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ता है. यदि सही समय पर दवाओं का छिड़काव किया जाए, तो इस पर नियंत्रण पाया जा सकता है. उन्होंने बताया कि जिंक की कमी से धान की फसल में इस रोग का प्रभाव देखने को मिलता है.
रोग की पहचान
इसकी पहचान के लिए किसान को धान के तने को बारीकी से देखना होता है. इस रोग में धान के तने के ऊपर वाला भाग सूखना शुरू हो जाता है और सुनहले रंग का होना शुरू हो जाता है और धीरे- धीरे यह पूरे पौधे में होने लगता है. इसके अलावा, तना रोग का भी संक्रमण होता है. इसमें कीट तने का कोमल भाग खा जाता है और पौधा मर जाता है.
इन दवाओं का करें इस्तेमाल
इस रोग के निदान के लिए 0.5% जिंक सल्फेट और 0.2% बुझा हुआ चूना पानी में घोलकर रोगग्रस्त खेतों में हर 10 दिन में तीन बार फसल पर छिड़काव या स्प्रे करना चाहिए. किसान चाहें तो बुझे हुये चूने की जगह 2% यूरिया का भी प्रयोग कर सकते हैं. वहीं, कीट अधिक होने पर हाइड्रोक्लोराइड 4G या फेफ्रेनिल 0.3 ग्राम 4 किलोग्राम प्रति एकड़ प्रयोग करें या फिर क्लोरोपीरीफोसि या हाइड्रोक्लोराइड 50 ग्राम एक मिलीलीटर दवा प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें. इससे तना छेदक बीमारियों से छुटकारा मिल सकता है.