जैसा कि अधिकांश सर्वेक्षण कह रह थे जो बिडेन अमरीका का राष्ट्रपति चुनाव जीत चुके हैं। और इसके साथ ही डॉनल्ड ट्रम्प जॉर्ज एच.डब्ल्यू. बुश (1989 से 1993) के बाद दोबारा से चुनाव लड़कर हारने वाले पहले अमेरिकी राष्ट्रपति बन गए हैं। लेकिन इसके साथ ही एक ऐसासवाल खड़ा हो गया है जिसका जवाब हर भारतीय जानना चाहता है। यह सवाल है कि- क्या बिडेन भारत के लिए अच्छे होंगे? उनका रुख हमें उनके पिछले रिकॉर्ड और बयानों से पता चल सकता है।
बराक ओबामा के समय अमरीका के उपराष्ट्रपति बनने से बहुत पहले ही बिडेन ने भारत के साथ मजबूत संबंधों की वकालत की थी। बिडेन ने सीनेट की विदेश संबंध समिति के अध्यक्ष और बाद में अमरीका के उपराष्ट्रपति के रूप में, भारत के साथ रणनीतिक जुड़ाव को गहरा बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 2006 में अमेरिका के उपराष्ट्रपति बनने से तीन साल पहले, बिडेन ने अमेरिका-भारत संबंधों के भविष्य को लेकर अपना दृष्टिकोण साफ कर दिया था, उन्होंने कहा था कि- ह्लमेरा सपना है कि 2020 में, दुनिया के दो निकटतम राष्ट्र भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका होंगे। उस वक्त तक सीनेटर ओबामा भारत-अमरीका परमाणु समझौते का समर्थन करने में संकोच कर रहे थे, तब बिडेन ने ही डेमोक्रेट और रिपब्लिकन दोनों को 2008 में अमेरिकी कांग्रेस में परमाणु समझौते को मंजूरी देने के लिए राजी किया था। उस वक्त भी बिडेन भारत-अमरीका साझेदारी को मजबूत करने के प्रमुख पैरोकारों में से एक थे।
यह एक ऐसा समय था जब भारत और अमरीका के संबंधों में लगातार सुधार हो रहा था। उस वक्त अमरीका ने आधिकारिक तौर पर एक सुधारित और विस्तारित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की सदस्यता के लिए अपने समर्थन की घोषणा की थी। यह उससे पहले की सभी भारतीय सरकारों की एक प्रमुख मांग थी, जिसे वाशिंगटन ने बिडेन के उपराष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान पूरा किया था।
ओबामा-बिडेन प्रशासन ने भारत को मेजर डिफेंस पार्टनर नाम दिया था जिसे अमरीकी कांग्रेस द्वारा अनुमोदित किया गया था। इसने भारत के लिए रक्षा संबंधों को मजबूत करने के लिए उन्नत और महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकी को साझा करना आसान बना दिया। यह पहली बार था कि किसी भी देश को अमरीका के पारंपरिक गठबंधन प्रणाली के बाहर यह दर्जा दिया गया था। 2016 के अगस्त महीने में ओबामा प्रशासन के अंतिम दिनों में दोनों पक्षों ने सैन्य सहयोग के लिए लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम आॅफ एग्रीमेंट (एलईएमओए) पर हस्ताक्षर किए।
यह भारत-अमरीका के बीच हुए तीन फाउंडेशनल पैक्ट्स में से पहला समझौता था। एलईएमओए समझौता अमरीका और भारत की सेनाओं को एक-दूसरे के ठिकानों, और एक-दूसरे की भूमि सुविधाओं, हवाई अड्डों, और बंदरगाहों से पहुंच, स्पेयर पार्ट्स और सेवाओं तक पहुंच प्रदान करने की अनुमति देता है। भारतीयों के लिए दूसरी प्रमुख चिंता एच1बी वीजा की है। बात करें अगर डेमोक्रेटस की तो वो प्रवासी कानूनों पर अधिक उदार दिखाई देते हैं, बिडेन उन भारतीयों के प्रति नरम रुख अपना सकते हैं जो अमेरिका जाते हैं, अध्ययन करते हैं, काम करते हैं और वहां रहते हैं, और बेहतर जीवन की आकांक्षा रखते हैं।
बिडेन ने परिवार आधारित प्रवास का समर्थन करने, स्थायी और काम आधारित आप्रवास के लिए दिए जाने वाले वीजा की संख्या बढ़ाने, उच्च कौशल वाली विशेष नौकरियों के लिए अस्थायी वीजा प्रणाली में सुधार करने और रोजगार आधारित ग्रीन कार्ड की सीमाओं को खत्म करने का वादा किया है। उन्होंने ग्रीन कार्ड धारकों के लिए प्राकृतिककरण प्रक्रिया को बहाल करने का भी वादा किया है। लेकिन ट्रम्प प्रशासन ने नियमों को काफी कड़ा कर दिया था, पिछले चार वर्षों में अपनाए गए कुछ दृष्टिकोणों को उलट देना बिडेन के लिए आसान नहीं होगा।
कुल मिलाकर भारत और अमरीका के रिश्ते वाजपेयी सरकार के वक्त से ही सुधरने लगे थे। डॉ सिंह के प्रधानमंत्री रहते वक्त तो भारत अमरीका के रिश्तों ने एक अलग मुकाम हासिल कर लिया था। पिछले 20 वर्षों में बिल क्लिंटन, जॉर्ज डब्ल्यू बुश से लेकर ओबामा और ट्रम्प के बीच कई मुद्दों पर मतभेद थे, लेकिन अगर कोई एक सामान्य विषय था जिस पर सभी सहमत थे तो वह था: भारत के साथ एक मजबूत संबंध। डॉ सिंह के समय भारत-अमरीका के रिश्तों में कैसी गर्माहट आई इसे जानने के लिए आपको भारत के पूर्व विदेश सचिव श्याम सरन कि (हाउ इंडिया सीज द वर्ल्ड) और पूर्व एनएसए शिवशंकर मेनन कि किताब (चोइसेस) जरूर पढ़नी चाहिए।
बिडेन के कार्यकाल में भारत और अमरीका के कैसे रिश्ते होते हैं यह अभी से कहना शायद जल्दबाजी होगी। यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह इनके निजी विचार हैं।)
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