Ambedkar and the movement: अंबेडकर और आंदोलन

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पिछले कुछ महीनों से देश के कई हिस्सों में तरह-तरह के विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। विरोध प्रदर्शनों की मुख्य वजह नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 है। कई जगह यह प्रदर्शन शांतिपूर्ण ढंग से किए जा रहे हैं और ऐसी जगहों पर लोगों की सुविधाओं का भी ध्यान रखा जा रहा है। ऐसी स्थिति में जहां लोगों को समस्या ना हो रही हो, ऐसे में आंदोलन करने में कोई दिक्कत नही है। पर सड़कों को जाम करना और हिंसा फैलाना आंदोलनों का मकसद नही होना चाहिए। यह निंदनीय है, जिस तरह से आम लोगों को सड़के जाम होने की वजह से और हिंसा की वजह से मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। पिछले हफ्ते राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में हुई हिंसा दिल दहला देने वाली है। इस हिंसा के बाद शांतिपूर्ण आंदोलन का दावा कर रहे आंदोलनकारियों और शाशन-प्रशाशन को भी काफी आत्मनिरीक्षण की जरूरत है।
आंदोलनों को देख हमें डॉ. राम मनोहर लोहिया के वो शब्द याद आते हैं, जब उन्होंने कहा था कि यदि सड़कें खामोश हो गईं, तो संसद आवारा हो जाएगी। लेकिन लोगों ने इस कथन का कुछ और ही मतलब निकाल लिया और वे हिंसा पर उतर आए। लोहिया शायद आंदोलनों की ऐसी स्थिति देखकर काफी दुखी होते। आंदोलन यदि शांतिपूर्ण ढंग से किए जाते हैं और लोगों की सुविधाओं को ध्यान में रख के किए जाते हैं, तो उनमें कोई बुराई नही है। बल्कि शांतिपूर्ण आंदोलन लोकतंत्र को मजबूत करते हैं। लेकिन किसी भी लोकतंत्र में हिंसा करने वालों को सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए। शायद आंदोलन के वक्त हिंसा करने वाले लोग यह भूल जाते हैं कि उनकी उस हिंसा से लोगों को कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। सबसे ज्यादा चौकाने वाली बात तो यह है कि ऐसी हिंसा कर रहे लोग, हिंसा के सबसे बड़े विरोधी और दुनिया में अहिंसा के सबसे बड़े पैरोकार महात्मा गांधी के नाम का प्रचार जोरों-शोरों से करते हैं। शायद वे नही जानते कि गांधी के देश में हिंसा का कोई स्थान नही होना चाहिए और उन्हें ये भी समझना चाहिए कि वे गांधी के आदर्शों को बचा नही रहे हैं बल्कि उनका गला घोट रहे हैं। इन सबके बीच, कुछ लोग ऐसे भी हैं जो मामले की गंभीरता और पुरे तथ्यों को जाने बिना मामले पर एक अनुचित और एक-पक्षीय प्रतिक्रिया दे देते हैं। वो अनजाने में ही सही लेकिन चल रहे हालातों को खराब करने में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ऐसे लोगों को यह समझना चाहिए कि उनकी वह प्रतिक्रिया मामले को सुलझाने की जगह उलझा देती है। इसके अलावा एक वर्ग ऐसा भी है जो हिंसा के वक्त में भी अपनी राजनीति चमकाने की कोशिश कर रहा है। कुछ संगठन अपने आपको भारतीय संविधान के जनक कहे जाने वाले बी.आर. अंबेडकर के सिद्धांतों को जीवित रखने वाला संगठन बताते हैं। उन संगठनों को अंबेडकर के बारे में थोड़ा पढ़ना और समझना चाहिए। उन्हें ये भी पता होना चाहिए कि अंबेडकर के सिद्धांत अमर हैं, वे अंबेडकर की वजह से सदैव याद रखे जाएंगे, उनके नाम पर राजनीति कर रहे संगठनों की वजह से नही। इन संगठनों को इस तथ्य को मानना चाहिए कि ये संगठन अंबेडकर के नाम से अस्तित्व में हैं नाकि अंबेडकर इन संगठनों की वजह से।
देश में चल रहे आंदोलनों में बार-बार अंबेडकर का नाम घसीटा जा रहा है, कुछ लोग कह रहे हैं कि वे अंबेडकर के सिद्धांतों और उनके बनाए संविधान की रक्षा करने के लिए सड़कों पर उतरे हैं। हालांकि आंदोलनों पर अंबेडकर विचार इससे बिलकुल विपरीत थे। अंबेडकर के आंदोलनों पर विचारों को समझने के लिए हमें उनके संविधान सभा के आखिरी भाषण को समझना होगा। अंबेडकर का वह भाषण लोकतंत्र के हर पैरोकार को पढ़ना और समझना चाहिए। 25 नवंबर, 1949 को जिसके अगले दिन संविधान सभा अपना काम खत्म करने जा रही थी, अंबेडकर ने एक भावपूर्ण भाषण दिया जिसमें उन्होंने सभा के कार्यों का समापन किया। उन्होंने ड्राफ्टिंग कमेटी के अन्य सदस्यों, अपने सहयोगियों-कर्मचारियों और उस पार्टी (कांग्रेस) को भी धन्यवाद दिया जिसके वह आजीवन विरोधी रहे थे। सदन के बाहर और सदन के भीतर कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के शांतिपूर्ण कार्यों के बगैर वह उस अराजक माहौल में निश्चित ही काम नहीं कर पते। अंबेडकर ने भविष्य के प्रति तीन चेतावनी देकर अपना भाषण खत्म किया। इन चेतावनियों में से एक में हमें अंबेडकर के आंदोलनों के प्रति विचारों का पता चलता है। उनकी पहली चेतावनी इस लोकतंत्र में लोकप्रिय जनविरोध से संबंधित थी। उनके विचार में निश्चित तौर पर अब रक्तरंजित क्रांति की कोई जगह नही बची थी लेकिन गांधीवादी तरीकों के लिए भी कोई जगह उपलब्ध नही थी। उनका कहना था कि हमें निश्चित तौर पर सविनय अवज्ञा, असहयोग और सत्याग्रह का रास्ता त्याग देना चाहिए। एक अधिनायकवादी सत्ता के अधीन उन सब उपायों के लिए जगह हो सकती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं हो सकता क्योंकि समस्या के समाधान के लिए संवैधानिक उपाय लागू कर दिए गए हैं। अंबेडकर ने कहा कि अब सत्याग्रह और इस तरह के दूसरे उपाय अराजकता के व्याकरण के सिवाय कुछ नही हैं, और जितनी जल्दी हम उन्हें त्याग दें, हमारे लिए उतना ही अच्छा है। अंबेडकर की अन्य दो चेतावनियों का जिक्र इस लेख में करने का कोई मतलब नही बनता। एक अंग्रेजी और गैर-लोकतांत्रिक हुकूमत के खिलाफ आंदोलन करने और एक लोतांत्रिक तरीके से जनता द्वारा चुनी गई सरकार के खिलाफ आंदोलन करने में जमीन-आसमान का फर्क है। हालांकि एक सत्य यह भी है कि समय-समय पर आंदोलनों के चलते देश में काफी सारे महत्वपूर्ण बदलाव आए और यह भी सत्य है कि इन आंदोलनों की वजह से ही आज हम एक आजाद और गर्वित लोकतंत्र हैं। लेकिन अंबेडकर का नाम लेकर आंदोलन करना और हिंसा फैलाना पूरी तरह से गलत है। ऐसे किसी भी उपाय के लिए हमारे देश में जगह नही है। जरूरी है कि अफवाहों से बचा जाए, ऐसे मुद्दों पर राजनीति ना हो और प्रशासन सही तरीके से अपना काम करे।
अक्षत मित्तल
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं, यह इनके निजी विचार हैं।)