Ambala News | SD College | अंबाला। सनातन धर्म महाविद्यालय अंबाला छावनी के प्राणी शास्त्र विभाग द्वारा पक्षियों के प्रति विद्यार्थियों को संवेदनशील एवं जागृत करने के उद्देश्य से बर्डस वाचिंग एंड आइडेंटीफिकेशन आॅफ कॉमन बर्डस नामक विषय पर एक कार्यशाला का आयोजन प्राणी शास्त्र विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ सोनिया बत्रा की देखरेख में किया गया।
यह कार्यक्रम प्राचार्य डॉ राजेंद्र सिंह की देख रेख एवं दिशानिर्देशनुसार आयोजित करवाया गया। इस वर्कशॉप की कन्वीनर और मुख्य वक्ता डॉ सोनिया बत्रा ने अपनी पॉवर प्वाइंट प्रेजेंटेशन के माध्यम से बताया कि आज पर्यावरण को बचाने की आवश्यकता है और हमारे विद्यार्थियों को अपने आस पास के पक्षियों के बारे में अत्यधिक जानकारी होनी चाहिए।
पक्षियों को बचाने के लिए हमें उनके लिए पानी की व्यवस्था करनी चाहिए। हमे अपनी छतों पर पानी के कसोरे रखने चाहिए और कृत्रिम घोंसलों का प्रयोग करके उनको बदलते मौसम की विपरित परिस्थितियों से बचाना चाहिए। पक्षियों का पर्यावरण संरक्षण में बहुत बड़ा महत्व है।
कुछ पक्षी जैसे कैटल एग्रेट और किंगफिशर अनेक पशुओं के शरीर पर बैठकर उनके शरीर से हानिकारक सूक्ष्म जीवों को खाते हैं जिससे कि पशु और पक्षी दोनों को फायदा होता है। हमारे देश में पक्षियों की अनेकों प्रजातियां पाई जाती हैं जिनका पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता में बहुत बड़ा योगदान है।
आजकल खाद्यान्न उत्पादन को बढ़ाने के लिए खेती में अनेक हानिकारक उर्वरकों एवं कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है जिससे कि पक्षियों में हानिकारक तत्व लंबे समय बने रहते हैं और उनमें जैविक आवर्धन का खतरा उत्पन्न हो सकता है।
जैविक आवर्धन की वजह से, हमारे खाने में हानिकारक रसायन जमा हो जाते हैं इन्हें पानी से धोकर या किसी और तरीके से अलग नहीं किया जा सकता. हमें अपने आसपास के पशु पक्षियों को हानिकारक कीटनाशकों और जहरीले उर्वरकों से बचाना चाहिए।
इस अवसर पर रसायन शास्त्र विभाग के डॉ जोगिंद्र रोहिल्ला ने भी युवाओं को बताया कि आज पूरी दुनिया को 17 सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल को पूरा करने के लिए काम करना चाहिए जिनमें पर्यावरण संरक्षण भी एक मुख्य विषय है उन्होंने बताया कि खाद्य श्रृंखला के अलग-अलग स्तरों पर मौजूद जीव, हानिकारक पदार्थों को इकट्ठा करते हैं। इस प्रक्रिया में, खाद्य श्रृंखला के हर स्तर पर जहरीले पदार्थों की मात्रा बढ़ती जाती है।
आखिर में, ये पदार्थ मनुष्यों तक पहुंच जाते हैं। उन्होंने बताया कि अमेरिका के उत्तरी अमेरिका में मिशीगन झील के आस-पास मच्छरों को मारने के लिए बहुत ज्यादा डी.डी.टी. का छिड़काव किया गया था जिसकी वजह से पेलिकन पक्षियों की संख्या बहुत कम हो गई थी।
पक्षियों में जैविक संचय के लिए पारा, आर्सेनिक और कोबाल्ट जैसी अनेक हानिकारक धातुएं भी जिम्मेदार हैं। गौरतलब है कि सनातन धर्म महाविद्यालय, पर्यावरण संरक्षण के लिए समाज में जागृति लाने के लिए इस तरह के कार्यक्रम आयोजित करवाता रहता है।
इस कार्यक्रम को सफल बनाने में डॉ सोनिया बत्रा, वनस्पति विभाग की अध्यक्षा डॉ दिव्या जैन, प्राणी शास्त्री विभाग की अध्यक्षा प्रो जीनत मदान, रसायन शास्त्र विभाग के प्रो डा जोगिंदर रोहिल्ला, वनस्पति विभाग के प्रो सुमित छिब्बर और जीव विज्ञान विभाग के अनेक विद्यार्थी जैसे पलक, प्रीत, नैना, तुषार, शिवांश, एंजल, हिमांशी, अनु रिया, इत्यादि का अहम योगदान रहा।
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