Ambala News | अंबाला। डॉ. समिधा शर्मा एमडी आयुर्वेद इंचार्ज आयुष्मान आरोग्य मंदिर बाड़ा अंबाला जिला आयुर्वेद अधिकारी अंबाला डॉ. शशिकांत शर्मा के दिशा- निर्देशन में बाड़ा की बहगल भवन में योगा सेशन के पश्चात सभी को वर्षा ऋतु की दिनचर्या व ऋतुचर्या के बारे में बताया। इस अवसर पर उनके साथ डिस्पेंसर नसीब सिंह, योगा सहायक दीपेंद्रजीत कौर, योगा इंस्ट्रक्टर सोनिया शर्मा, पार्टिम सनी साथ रहे । डॉ समिधा ने यह भी बताया कि उनके सेंटर की और से रोज तीन योगा सेशन ग्राम बाड़ा में लगाये जा रहे हैं।
वर्षा ऋतु का शरीर पर प्रभाव
वातावरण की नमी का प्रभाव शरीर पर भी पड़ता है। ग्रीष्म-ऋतु में पाचन-शक्ति पहले से ही दुर्बल होती है। वर्षा-ऋतु की नमी से वात-दोष कुपित हो जाता है और पाचन-शक्ति अधिक दुर्बल हो जाती है। वर्षा की बौछारों से पृथ्वी से निकलने वाली गैस, अम्लता की अधिकता, धूल और धुएँ से युक्त वात का प्रभाव भी पाचन-शक्ति पर पड़ता है।
बीच-बीच में बारिश न होने से सूर्य की गर्मी बढ़ जाती है। इससे शरीर में पित्त दोष जमा होने लगता है। गेहूं, चावल आदि धान्यों की शक्ति भी कम हो जाती है। इन सब कारणों से व संक्रमण से मलेरिया और फाइलेरिया बुखार, जुकाम, दस्त (आम से युक्त), पेचिश, हैजा, आत्रशोथ, अलसक, गठिया, सन्धियों में सूजन, उच्च रक्तचाप, फुंसियाँ, दाद, खुजली आदि अनेक रोग आक्रमण कर सकते हैं।
पथ्य आहार-विहार
वर्षा-ऋतु में हल्के, सुपाच्य, ताजे, गर्म और पाचक अग्नि को बढ़ाने वाले खाद्य-पदार्थों का सेवन हितकारक है। ऐसे पदार्थ लेने चाहिए, जो वात को शान्त करने वाले हों। इस दृष्टि से पुराना अनाज, जैसे गेहूँ, जौ, शालि और साठी चावल, मक्का (भुट्टा), सरसों, राई, खीरा, खिचड़ी, दही, मट्ठा, मूँग और अरहर की दाल, सब्जियों में झ्र लौकी, भिण्डी, तोरई, टमाटर और पोदीना की चटनी, सब्जियों का सूप, फलों में सेब, केला, अनार, नाशपाती, पके जामुन और पके देशी आम तथा घी व तेल से बने नमकीन पदार्थ उपयोगी रहते हैं।
आम और दूध का सेवन विशेष रूप से लाभकारी है। आम पका, मीठा और ताजा ही होना चाहिए। कच्चा, खट्टा और पाल से उतरा हुआ आम लाभ के स्थान पर हानि करता है। दही की लस्सी में लौंग, त्रिकटु (सोंठ, पिप्पली और काली मिर्च), सेंधा नमक, अजवायन, काला नमक आदि डाल कर पीने से पाचन-शक्ति ठीक रहती है। लहसुन की चटनी व शहद को जल एवं अन्य पदार्थों (जो गर्म न हों), में मिला कर लेना उपयोगी है।
इस मौसम में वात और कफ दोषों को शान्त करने के लिए कटु, अम्ल और क्षार पदार्थ लेने चाहिए। अम्ल, नमकीन और चिकनाई वाले पदार्थों का सेवन करने से वात दोष का शमन करने में सहायता मिलती है, विशेष रूप से उस समय जब अधिक वर्षा और आँधी से मौसम ठण्डा हो गया हो। रसायन रूप में हरड़ का चूर्ण सेंधा नमक मिला कर लेना चहिए।
विहार- शरीर पर उबटन मलना, मालिश और सिकाई करना लाभदायक है। वत्र साफ-सुथरे और हल्के पहनने चाहिए। भीगने पर तुरन्त वत्र बदल लेना चाहिए। ऐसे स्थान पर सोना चाहिए, जहाँ अधिक हवा और नमी न हो। भोजन भूख लगने पर और ठीक समय पर ही करना चाहिए।
रात्रि को भोजन जल्दी कर लेना चाहिए। मच्छर आदि से बचने के लिए मच्छरदानी का प्रयोग करना चाहिए। घर के आस-पास के गड्ढों में जमा हुए और सड़ रहे पानी में मच्छर, मक्खियाँ आदि कीड़े बहुत पनपते हैं व रोग फैलाते हैं, अत: उनमें कीटनाशक छिड़क देना चाहिए। सफाई का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है।
अपथ्य आहार-विहार-वर्षा ऋतु में पत्ते वाली सब्जियाँ, ठण्डे व रूखे पदार्थ, चना, मोंठ, उड़द, जौ, मटर, मसूर, ज्वार, आलू, कटहल, सिंघाड़ा, करेला और पानी में सत्तू घोलकर लेना हानिकारक है।रात के समय दही और मट्ठा तो बिल्कुल नहीं लेना चहिए। गीले, नमीयुक्त वत्रों और बिस्तर का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
शरीर के जोड़ों, विशेषकर जांघों के जोड़ और गुप्त अंगों के आस-पास की चमड़ी को पानी या पसीने से गीला होने से बचाये रखना चाहिए। फल, सब्जी आदि खाद्य-पदार्थों को अच्छी तरह धोये बिना नहीं खाना चाहिए। नदी, तालाब आदि का अशुद्ध जल तथा जहाँ-तहाँ का दूषित जल नहीं पीना चाहिए। जब बादल छाये हों, तब दस्त वाली दवाई का सेवन नहीं करना चाहिए। इन सब उपर्युक्त पथ्यापथ्यों तथा आहार-विहार का ध्यान रखते हुए मनुष्य स्वस्थ रह कर वर्षा-ऋतु का पूरा आनन्द ले सकता है।
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