Ambala News : कृषि विज्ञान केन्द्र में जिला स्तरीय जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन

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Ambala News : अंबाला। कृषि विज्ञान केन्द्र, अम्बाला के प्रागण में जिला स्तरीय जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन फसल अवशेष प्रबंधन विषय पर किया गया। जिसका शुभारम्म डॉ. उपासना सिंह, वरिष्ठ वैज्ञानिक एंव प्रधान, के.वि.के. अम्बाला द्वारा किया गया। इस जागरूकता कार्यक्रम में जिले के लगभग 120 किसानो एंव महिलाओं ने भाग लिया। कार्यक्रम में डॉ. उपासना सिंह ने किसानो का स्वागत करते हुए सभी को दीपावली की शुभकामनाये दी। उन्होंने बताया कि खेत में फसल कटने के बाद खेत में पराली को ना जलाने की सलाह देते हुए बताया कि खेत में पराली को जलाने से मृदा की उर्वरकता कम होती है, वातावरण भी दूषित होता है और मनुष्य एवं पशुओ के स्वास्थय पर भी कुप्रभाव पड़ता है ।साथ में उन्होंने किसानो को सुझाव देने को भी कहा कि किसान बताएं कि उनके एरिया में जो भी दलहनी और तलहनी फसलों की पैदावार अच्छी हो सकती है और वो उन फसलों को लगाने के इच्छुक है हम भी उन फसलों को आगे बढ़ावा देना चाहेंगे ताकि किसान अच्छी पैदावार ले सके।

फसल अवशेष प्रबंधन के नोडल आॅफिसर इंजीनियर गुरु प्रेम ने बताया की इस वर्ष कोट कछवा, सबगा, पपलोता, खेड़ा और रजौली पांच गाँव को फसल अवशेष प्रबंधन के तहत अंगीकृत किया गया है जहा पर गेहूं की मशीनो द्वारा बिजाई की जाएगी े सरफेस सीडर, सुपर सीडर, स्मार्ट सीडर, हैप्पी सीडर, शर्ब  मास्टर , पैडी स्ट्रॉ चॉपर, जीरो टिल ड्रिल, एम.बी पलोह इत्यादि की जानकारी दी े उन्होंने किसानो से आग्रह किया की फसल अवशेषों को मिट्टी में मिलायें े सुपर एस एम एस या स्ट्रा चोपर से फसल अवशेषें को बारीक टुकड़ों में काटकर भूमि पर फेलायें। तत्पश्चात सरफेस सीडर, सुपर सीडर, स्मार्ट सीडर, हैप्पी सीडर द्वारा गेहूं की सीधी बुआई करें । उन्होंने बताया कि एक अनुमान के मुताबिक मिट्टी से धान द्वारा ली गयी 25 % नाइट्रोजन व फास्फोरस 50 % गंधक व 75 % पोटाश फसल अवशेषों में ही रह जाता है े यह जानना जरुरी है कि धान के 10  क्विंटल अवशेष जलाने से 5.5  किलो नाइट्रोजन, 2 .3  किलो फास्फोरस, 25  किलो पोटाशियम व 1 .2  किलो गंधक के इलावा अन्य शुष्म तत्व नष्ट हो जाते है े धान कि पराली को जलाने से हानिकारक धुआं निकालता है जिस से कई तरह की गैसे निकलती है इन गैसे से मुख्या 70 % कार्बनडाइआॅक्सिडे 7 % कार्बनमोमो आॅक्साइड  0 .66 % मीथेन व 2 .09  % नाइट्रिकआॅक्साइड आदि कई तरह की गैस निकलती है जी कि वातावरण में कई तरह के बदलाव लाने का कारण बनती है  । कार्यक्रम में फसल अवशेष प्रबन्धन पब्लिकेशन का वितरण भी किया गया।

डॉ. राजेंद्र कुमार सिंह, विषय वस्तु विशेषज्ञ (फसल विज्ञान) ने बताया कि तिलहनी फसलों में प्रमुख रूप से सरसों की खेती की जाती है अम्बाला में अनेक प्रयासों के बाद भी सरसों के क्षेत्रफल में वृद्धि नहीं हो पा रही है इसका प्रमुख कारण है कि सिंचित क्षमता में वृद्धि के कारण अन्य महत्वपूर्ण फसलों के क्षेत्रफल बड़े हैं और तिलहनी फसलों का रकबा कम हुआ है, सरसों की खेती सिंचाई की दशा में अधिक लाभदायक होती है उन्नत तकनीकी सलाह को अपनाकर किसान भाई अधिक उत्पादन ले सकते हैं। कृषि विज्ञान केंद्र अंबाला प्रत्येक वर्ष की भाति इस वर्ष भी सरसों की फसल पर 250 एकड़ पर  प्रदर्शन कर रहा है जिसके लिए समूह में गाँव का चयन किया गया है। आज सभी ब्लॉक से किसान भाई सरसों की उन्नति बीज राधिका लेने के लिए तेपला में कृषि विज्ञान केन्द्र परिसर में पहुचे थे बीज  के साथ साथ जिंक और सल्फर भी किसानो को दिया गया।

राधिका बीज भरतपुर के सरसों अनुसंधान संस्थान से मगाया गया है जिसकी उपज लगभग 10 कुंटल प्रति एकड़ तक बताई गयी है। किसानो को तिलहन फसल के साथ साथ सरसों की उन्नति खेती के बारे में भी बताया। किसानो का रुझान हाइब्रिड किस्म की तरफ ज्यादा होती है लेकिन राधिका किस्म की उत्पादन क्षमता ज्यादा होने के साथ साथ जलवायु अनुकूल भी है। पिछले कुछ वर्षों में देखा गया है कि बेमौसम बारिश से संकर किस्म की सरसों के फसल पर काफी बुरा प्रभाव पड़ा है। जिसको देखते हुए किसान भाइयो को यह ध्यान रखने की जरूरत है की कौन किस्म का बीज लगा रहे है। सभी प्रदर्शन वाले खेत पर समय समय पर केन्द्र के विशेषज्ञ की टीम जाकर रोग एव कीट का निरक्षण भी करेगी और जरूरत के अनुसार किसान को सलाह भी देगी। अभिषेक कुमार ए.डी.ओ साहा ब्लॉक ने किसानो से पराली ना जलाने की अपील की तथा किसानो को सभी सरकार द्वारा चलाई जा रही सरकारी योजनाओं के बारे में अधिक से अधिक जानकारी दी े उनके साथ कार्यक्रम में गुरप्रीत, एग्रीकल्चरल सुपरवाइजर, साहा ब्लॉक तथा राम लाल फील्ड मैन , साहा ब्लॉक ने भी भाग लिया।