मनोज वर्मा कैथल:
मदनी मदरसा संचालक मौलाना मोहम्मद सैयदूर रहमान ने कहा कि अमरनाथ यात्रा का अस्तित्व ही इस बात का जीवित सबूत है कि हिंदुओं और मुसलमानों के बीच व्याप्त भाईचारे को कभी हिलाया नहीं जा सकता। चाहे घृणा फैलाने वाले कितनी भी कोशिश कर लें। अमरनाथ की इस पवित्र गुफा को सन 1850 में एक मुस्लिम बूटा मलिक नामक चरवाहे ने ढूंढा था। बूटा मलिक अपने मवेशियों को पहाड़ों में चराने के दौरान एक सूफी संत के संपर्क में आया। एक दिन बूटा मलिक सूफी संत को ढूंढते हुए अचानक उस गुफा व उसके प्रसिद्ध शिवलिंग के मुहाने पर जा पहुंचा। यूं लगा मानो सूफी संत चाहता था कि बूटा मलिक को उस पवित्र गुफा के बारे में पता चले।
आज के बिगड़ते माहौल में धार्मिक सहिष्णुता की सीमाएं निचले स्तर पर पहुंची
उसके बाद से ही बूटा मलिक के परिवार के सदस्य, कुछ पुरोहित महासभा व दशनामी अखाड़ा के पुजारियों के साथ इस तीर्थ स्थान के पारंपरिक कर्ताधर्ता बन गए। आज के इस बिगड़ते माहौल में जब धार्मिक सहिष्णुता की सीमाएं निचले स्तर पर पहुंच गई है, ऐसे में हिंदू मुस्लिम एकता के इस अनूठे उदाहरण स्वरूप जिसके अंतर्गत अमरनाथ तीर्थ स्थान का रख रखाव मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा सन 2000 से ही किया जा रहा हो, सांत्वना देने का कार्य करता है। इस बात को और लोकप्रिय बनाने की जरूरत है ताकि प्रत्येक भारतीय इस तथ्य को जान सके। मौलाना ने कहा यद्यपि यह हिंदू धर्म से जुड़ी यात्रा है, फिर भी बहुत कम हिन्दू लोगों को यह मालूम है कि, इसका संबंध मुस्लिम समुदाय से भी है और इस पवित्र गुफा की खोज एक मुस्लिम व्यक्ति ने की है। सन 2000 के बाद उस समय की जम्मू कश्मीर सरकार ने अमरनाथ तीर्थ स्थान के रखरखाव का कार्य बूटा मलिक के परिवार व अन्य हिंदू संगठनों के हाथों से वापस ले लिया था। फिर भी इस पवित्र तीर्थ स्थान के सुंदर इतिहास को भूलने नहीं दिया जाना चाहिए। जिसके द्वारा सांप्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा मिलता है। इस तरह के उदाहरण भारत की मिश्रित संस्कृति व गंगा जमुनी तहजीब को जीवित रखते हैं और विश्व को यह दर्शाते हैं कि, भारत की ताकत उसकी अनेकता में है और इसे कमजोरी के तौर पर बदलने वाले कभी सफल नहीं हो पाएंगे।
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