अध्ययन में हुआ खुलासा
स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण से कई तरह की दिक्कतें पैदा कर रहा है। अब एक नए अध्ययन में पाया गया है कि लगातार वायु प्रदूषण में रहने से तंत्रिका तंत्र संबंधी डिमेंशिया रोग का खतरा बढ़ सकता है। इस अध्ययन में अतिरिक्त प्रभावों की पहचान की गई है और इन रोगों में मनोभ्रंश या विक्षिप्तता (डिमेंशिया) की संभावित भूमिका को समझने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। मनोभ्रंश के जोखिम कारकों और वायु प्रदूषण पर वाशिंगटन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पुगेट साउंड क्षेत्र में लंबे समय से चल रही दो परियोजनाओं के डेटा का उपयोग किया। अध्ययन से पता चलता है कि हवा की गुणवत्ता में सुधार मनोभ्रंश को कम करने के लिए खास हो सकती है।
हालांकि अभी तक सिर्फ यही जाना जाता रहा है कि वायु प्रदूषण से अस्थमा से लेकर फेफड़ों के कैंसर तक श्वसन संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। लेकिन, इस नए शोध में शोधकर्ताओं ने मनोभ्रंश या विक्षिप्तता (डिमेंशिया) के बढ़ते मामलों में वायु प्रदूषण की भूमिका का पता लगाया है। उन्होंने फाइन पार्टिकुलेट मैटर 2.5 (पीएम2.5) – 2.5 माइक्रोमीटर से कम या उसके बराबर व्यास वाले पार्टिकुलेट और डिमेंशिया के बीच संबंध खोजने के लिए मौजूदा डेटा का अध्ययन किया। शोधकर्ताओं ने 25 वर्षों तक 4,000 से अधिक वरिष्ठ नागरिकों के आंकड़ों का अध्ययन किया। अध्ययन शुरू होने पर वरिष्ठों को मनोभ्रंश नहीं था, लेकिन हर दो साल में संज्ञानात्मक जांच की गई। जिसमें 1000 से अधिक में मनोभ्रंश का पता चला।
16 फीसदी बढ़ जाता है खतरा
अध्ययन के दौरान शोधकतार्ओं ने पाया कि यदि महीन कणों के औसत स्तर पर वृद्धि होती है और लोग प्रदूषित हवा के संपर्क में लंबे समय तक रहते हैं तो इस बात की संभावना 16 फीसद बढ़ जाती है कि वे डिमेंशिया से ग्रसित हो जाएं। मनोभ्रंश जोखिम में वृद्धि के अलावा, शोधकतार्ओं ने पाया कि उसी छोटे वायु प्रदूषण में वृद्धि ने अल्जाइमर के जोखिम को 11 प्रतिशत बढ़ा दिया।
क्या होता है डिमेंशिया
मनोभ्रंश या विक्षिप्तता (डिमेंशिया) से ग्रस्त व्यक्ति की याददाशत भी कमजोर हो जाती है। वे अपने रोजमर्रा के कार्य ठीक से नहीं कर पाते हैं। कभी-कभी वे यह भी भूल जाते हैं कि वे किस शहर में हैं, या कौनसा साल या महीना चल रहा है। बोलते हुए उन्हें सही शब्द नहीं सूझता। उनका व्यवहार बदला-बदला सा लगता है और व्यक्तित्व में भी फर्क आ सकता है।