Coarse Grain Benefits, (आज समाज), नई दिल्ली: दिल्ली एम्स का दावा है कि मोटा अनाज खाने से डायबिटीज यानी मधुमेह को कम किया जा सकता है और साथ ही एनीमिया की कमी को भी दूर किया जा सकता है। एम्स के विशेषज्ञों ने विश्लेषण के बाद दावा किया है कि जिन्हें मधुमेह और एनीमिया जैसे रोग हैं उनमें मोटा अनाज खाने से सुधार देखा गया है। एम्स के सामुदायिक चिकित्सा विभाग में प्रोफेसर और एनीमिया नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय उत्कृष्टता एवं उन्नत अनुसंधान केंद्र के प्रमुख अन्वेषक डाक्टर कपिल यादव ने एम्स में तीन स्तर पर मोटे अनाज के इस्तेमाल को बढ़ाया और इसके शुरुआती परिणाम बेहतर दिख रहे हैं।
तीन स्तर पर मोटे अनाज के इस्तेमाल के तहत सबसे पहले एम्स के डॉक्टरों की कैंटीन में इसे शामिल किया गया। फिर एम्स में भर्ती होने वाले मरीजों को मोटा अनाज देना शुरू किया गया। साथ ही एम्स के सामुदायिक चिकित्सा विभाग की ओपीडी में आने वाले मरीजों के खाने में भी मोटा अनाज शामिल करने की सलाह दी गई। इसके बाद पाया गया है कि केवल गेहूं और चावल खाने वाले लोगों के मुकाबले मोटा अनाज खाने वाले लोगों में पोषण तत्व ज्यादा मिले। साथ ही ऐसे लोगों में मधुमेह और एनीमिया के मामले भी कम हुए हैं।
मोटा अनाज भारत का पारंपरिक खाना है। इसमें प्रचुर मात्रा में पोषण तत्व हैं। यह हमारे शरीर की संरचना के आधार पर बने हुए हैं। इससे एलर्जी नहीं होती। यही कारण है कि इसकी मदद से मधुमेह, एनीमिया के साथ दूसरे रोगों की रोकथाम संभव हो सकेगी। बता दें कि देश की 50 फीसदी महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं। वहीं मधुमेह के मामले भी तेजी से बढ़ रहे हैं।
एम्स के प्रोफेसर रहे चंद्रकांत एस. पांडव ने बताया कि हजारों वर्षों से भारत के लोग मोटा अनाज खा रहे थे। ब्रिटिश काल में दैनिक भोजन में गेहूं को शामिल करने से आंत में सूजन की दिक्कत बढ़ी और इसके कारण मधुमेह व मानसिक रोग सहित अन्य कई रोगों ने जन्म लिया। उन्होने कहा, अगर हम दैनिक भोजन में मोटा अनाज शामिल करें तो खाने का पोषक फिर से शरीर को मिलेगा। चंद्रकांत एस. पांडव ने कहा, यह प्राकृतिक भोजन है और इससे शरीर को काबोर्हाइड्रेट्स व प्रोटिन सहित दूसरे तत्व आसानी से मिलते हैं। शरीर व मस्तिष्क को बैलेंस न्यूट्रिशन मिलने से विकास होता है।
मोटे अनाज के अंतर्गत आठ फसलें शामिल हैं। इसमें ज्वार, बाजरा, रागी, सावां, कंगनी, चीना, कोदो, कुटकी और कुट्टू को मोटा अनाज की फसल कहा जाता है। ये फसलें आम तौर पर सीमांत और असिंचित भूमि पर उगाई जाती हैं, इसलिए इनकी उपज स्थायी खेती और फसल विविधीकरण को प्रोत्साहित करती है। सरकार के प्रोत्साहन और स्वास्थ्य के प्रति लोगों की सजगता बढ़ने से इनकी खरीद बढ़ी है। खरीद बढ़ने से लाभान्वित होने वाले किसानों की संख्या भी बढ़ी है।
पुराने समय में भारतीय लोगों का भोजन रहे मोटे अनाज ‘सुपर फूड’ के नाम से जाने जाते हैं। मोटे अनाज अत्यधिक पोषक, अम्ल-रहित, ग्लूटेन मुक्त और आहार गुणों से युक्त होते हैं। इसके अलावा, बच्चों और किशोरों में कुपोषण खत्म करने में मोटे अनाज का सेवन काफी मददगार होता है क्योंकि इससे प्रतिरक्षा और स्वास्थ्य को बढ़ावा मिलता है।
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