इशिका ठाकुर,करनाल:
अखिल भारतीय गेहूं एवं अनुसंधान संस्थान की 61 वी संगोष्ठी का आयोजन मध्य प्रदेश के ग्वालियर में किया गया। इस संगोष्ठी में गेहूं की 24 किस्मों को मंजूरी दी गई। इनमें से चार किस्में करनाल के भारतीय गेहूं एवं अनुसंधान संस्थान करनाल के द्वारा विकसित की गई हैं।
केंद्र सरकार द्वारा लगातार प्रयास
इस पर जानकारी देने के लिए करनाल के भारतीय गेहूं एवं अनुसंधान संस्थान में आयोजित एक प्रेस वार्ता के दौरान जानकारी देते हुए संस्थान के डायरेक्टर डॉक्टर ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि केंद्र सरकार द्वारा लगातार यह प्रयास किया जा रहा है कि किसानों की गेहूं की पैदावार बड़े और उनकी आय दुगनी हो सके। इसके साथ ही सरकार द्वारा यह भी प्रयास लगातार किया जा रहा है कि गेहूं का बड़े पैमाने पर निर्यात किया जा सके और उसकी गुणवत्ता भी बरकरार रखी जाए ताकि निर्यात में किसी प्रकार की कोई बाधा न आए। इसके लिए लगातार करनाल का गेहूं एवं जो अनुसंधान संस्थान प्रयास कर रहा है और गेहूं के नए-नए बीज भी विकसित कर रहा है। इसी कड़ी में संस्थान द्वारा डीबीडब्ल्यू 370 डीबीडब्ल्यू 371 डीबीडब्ल्यू 372 विकसित किया गया है और डीबीडब्ल्यू 303 को क्षेत्र विस्तार के लिए विकसित किया गया है।
मौसम के बदलाव के चलते गेहूं की पैदावार में कमी
डॉ ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह ने कहा की गत वर्ष अचानक हुए मौसम के बदलाव के चलते गेहूं की पैदावार में कमी देखी गई थी उसके पीछे गर्मी बड़ा कारण रहा है लेकिन संस्था द्वारा विकसित किए गए बीज यदि किसान प्रयोग में लाते हैं तो इनके प्रयोग से गेहूं की पैदावार पर मौसम का बड़ा प्रभाव नहीं पड़ेगा और गेहूं की गुणवत्ता भी बनी रहेगी। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में निर्यात की प्रबल संभावनाएं हैं इसके लिए जरूरी है गेहूं की गुणवत्ता बेहतर हो।डॉ ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि इतिहास में इस वर्ष में पहली बार हुआ है कि जब एक ही वर्ष में इतनी गेहूं की फसलों को अनुमोदित किया गया है। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में अनुसंधान इसी प्रकार और अधिक तेजी से अनुसंधान के कार्य करता रहेगा।
किसानों की आय में किसी प्रकार की कोई कमी न रहे
तो वहीं पत्रकारों द्वारा पूछे गए सवाल के जवाब में फसल सुधार अध्यक्ष डॉ ज्ञानेंद्र सिंह ने कहा कि सरकार ऑर्गेनिक खेती के लिए भी लगातार प्रयास कर रही है। लेकिन इसके लिए किसान फिलहाल तैयार नहीं है और ऑर्गेनिक खेती में पैदावार भी कम रहती है। इसलिए जरूरी है कि पहले किसानों की आय में किसी प्रकार की कोई कमी न रहे उसके लिए बाजार तैयार करना होगा तथा इसके साथ साथ अनुसंधान के क्षेत्र में भी प्रयास किए जाना बेहद जरूरी है। ऑर्गेनिक खेती में अनुसंधान के लिए भी करनाल का संस्थान पूरी तरह तैयार एवं सक्षम है।
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