After all, why should not Article 370 be removed from Jammu and Kashmir: आखिर जम्मू कश्मीर से क्यों नहीं हटना चाहिए था आर्टिकल 370

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पिछले दिनों संसद के दोनों सदनों में आर्टिकल 370 को लेकर जोरदार बहस हुई। पूरा देश इस बहस का गवाह बना था। विपक्षी पार्टियों में से तो कई ने सरकार का समर्थन करते हुए इसे जरूरी कदम बताया। पर कुछ दलों ने जरूर सरकार के इस कदम को हिटलरशाही कदम बताया। इसे लोकतंत्र पर हमला बताया। लोकतंत्र का गला घोंटना बताया। सरकार का तानाशाही रवैया बताया। संविधान का उल्लंघन बताया। पर मंथन करने की बात है कि एक भी कारण ऐसा नहीं बताया जिसमें यह स्थापित हो सके कि आखिर आज के समय में जम्मू कश्मीर में आर्टिकल 370 क्यों जरूरी है? आखिर वो क्या कारण थे कि जब वहां आर्टिकल 370 जैसे प्रावधान किए गए तो उसे अस्थायी माना गया। और जब अस्थायी माना गया तो वक्त के अनुसार इसे क्यों खत्म नहीं करने का प्रयास किया गया।
आर्टिकल 370 के विरोध में जितने भी नेताओं ने सदन के अंदर अपनी बात रखी उसमें से एक भी नेता ने तार्किक तरीके से इसकी पैरवी नहीं की। कुछ ने की भी तो उनके पास सिर्फ एक ही तर्क था कि यह जम्मू कश्मीर की स्वाधिनता पर खतरा है। वहां के लोगों और कला संस्कृति पर हमला है। तमाम विपक्षी नेताओं ने भले ही यह बताने की जहमत नहीं उठाई कि आखिर जम्मू कश्मीर और लद्दाख में आर्टिकल 370 का अभी क्या औचित्य है। पर दो लोगों ने यह जरूर बताया कि वहां आर्टिकल 370 की जरूरत क्यों नहीं है। आर्टिकल 370 पर संसद में दिए गए दो लोगों का भाषण जरूर सुनना चाहिए। पहला भाषण लद्दाख के बीजेपी सांसद जामयांग शेरिंग नामग्याल का है। करीब 20 मिनट के भाषण के इस युवा सांसद ने बता दिया कि भारतीय राजनीति को क्यों युवा नेताओं की जरूरत है। बेहद तार्किक अंदाज में शेरिंग ने बताया कि आखिर क्यों 370 की जरूरत नहीं है। कैसे आर्टिकल 370 ने लद्दाख के विकास की गाड़ी को पंक्चर कर रखा है। इस युवा सांसद के 20 मिनट के भाषण ने मिनटों में उन्हें सोशल मीडिया का सबसे चर्चित चेहरा बना दिया। उनका भाषण इतना प्रभावशाली था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं उनका वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर किया और इस युवा सांसद को बधाई दी।
सबसे अंतिम भाषण गृह मंत्री अमित शाह का था। आर्टिकल 370 पर उनके द्वारा दिया गया करीब सवा घंटे के भाषण भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का ऐतिहासिक भाषण माना जा सकता है। उनके इस भाषण ने स्थापित कर दिया कि क्यों अमित शाह के व्यक्तिव में लोग लौह पुरुष बल्लभ भाई पटेल की छवि देख रहे हैं। बिना किसी राग द्वेष और राजनीतिक एजेंडे से इतर हर एक भारतीय को अमित शाह का वह ऐतिहासिक भाषण जरूर सुनना चाहिए। एक आम भारतीय के रूप में अगर उस भाषण को आप सुनेंगे तो आप जरूर मंथन करने पर मजबूर हो जाएंगे। कुतर्क तो तमाम हो सकते हैं पर तार्किक तरीके से अगर अपनी बात सामने रखी जाए तो उसे जरूर सुनना चाहिए। कुछ ऐसा ही था अमित शाह का वह ऐतिहासिक भाषण। सोशल मीडिया के तमाम प्लेटफॉर्म पर वह भाषण मौजूद है। मोदी सरकार के चाहे आप सपोर्टर हों या विरोधी, उस भाषण को एक बार जरूर सुनने की जरूरत है।  गृह मंत्री अमित शाह ने अपने भाषण में तार्किक अंदाज में बताया कि आखिर जम्मू कश्मीर में धारा 370 क्यों निरुद्देश्य हो गया था। कैसे आर्टिकल 370 की आड़ में वहां के लोगों को विकास से वंचित रखा गया था। कैसे इस आर्टिकल की आड़ में वहां के राजनीतिक परिवारों ने अपना हित साधा।  दरअसल आर्टिकल 370 जम्मू सरकार को ऐसा संवैधानिक अधिकार देता है जिसमें भारत में लागू किसी भी नियम को वहां की सरकार चाहे तो लागू कर सकती या नकार सकती है। अब तक करीब नौ संविधान संशोधन सहित 109 नियम कानून ऐसे हैं जिसे जम्मू कश्मीर की सरकार ने अपने यहां लागू नहीं करवाया। बाल विवाह जैसी घिनौनी प्रथा को भारत में खत्म कराने के लिए लंबा संघर्ष हुआ। बाद में बाल विवाह कानून बना। पूरे भारत में यह कानून बच्चों की रक्षा करता है, लेकिन जानकर आश्चर्य होगा कि जम्मू कश्मीर में यह कानून लागू नहीं होता है। वहां आप बाल विवाह कर सकते हैं। ठीक इसी तरह छह से 14 साल के बच्चों को भारत सरकार शिक्षा का अधिकार देती है। सरकार का यह दायित्व बनता है कि वह इन बच्चों को शिक्षा के अधिकार यानि आरटीई कानून के तहत शिक्षा की व्यवस्था कर। पूरे देश के बच्चे इस कानून के तहत लाभांवित होते हैं, लेकिन अफसोस है कि जम्मू कश्मीर के बच्चे अपने इस मूल अधिकार से वंचित हैं। क्योंकि वहां की सरकार ने आर्टिकल 370 की आड़ लेकर इस कानून को अपने यहां लागू नहीं होने दिया। आर्टिकल 370 के हटाने का विरोध कर रहे लोग चिंता जता रहे हैं कि जम्मू कश्मीर की खूबसूरती खत्म हो जाएगी। वहां के जंगल और पर्यावरण को नुकसान पहुंचेगा। पर शायद विरोध कर रहे लोग इस बात से अंजान हैं कि पूरे भारत में वन और पर्यावरण को बचाने वाले सख्त नियम जम्मू कश्मीर में लागू ही नहीं हैं। आर्टिकल 370 का सहारा लेकर यह महत्वपूर्ण कानून वहां प्रभावी ही नहीं है। बंटवारे के बाद भारत में बसे करोड़ो लोगों को भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त सारे अधिकार प्राप्त हैं, पर जम्मू कश्मीर में बसे पाकिस्तान से आए लोगों को वोटिंग तक का मौलिक अधिकार प्राप्त नहीं है। आर्टिकल 370 की आड़ में करीब 20 लाख लोगों को यह   अधिकार नहीं दिया गया।  मंथन करने की जरूरत है कि आखिर भारत की एकता, अखंडता और लोगों को मौलिक अधिकार देने वाले करीब 109 कानून वहां लागू क्यों नहीं थे। क्यों वहां सीआरपीसी की जगह रणबीर पैनल कोड लागू था। मंथन करने की जरूरत है कि क्यों वहां आर्टिकल 370 की आड़ में अलगाववादियों ने अपनी पैठ जमाई। क्यों उन्हें भारत सरकार के किसी कानून का भय नहीं था। कैसे आर्टिकल 370 का सेल्टर लेकर कश्मीर की घाटियां आतंकियों की सैरगाह में तब्दील हो गई। भारत सरकार से ही करोड़ों रुपए की सहायता लेकर कैसे वहां की सरकार और अलगाववादी तत्वों ने भारत सरकार के खिलाफ ही आग उगलना शुरू कर दिया। मंथन इस बात पर भी करना जरूरी है कि आर्टिकल 370 हटाने से सबसे अधिक परेशानी किन लोगों को हो रही है। कांग्रेस के ही कई युवा नेताओं ने पार्टी लाइन या यह कहना सही होगा कि गुलाम नबी आजाद जैसे नेताओं की लाइन से अलग जाकर आर्टिकल 370 का समर्थन किया है। इन नेताओं ने भारत सरकार के इस साहसिक कदम का खुले दिन से स्वागत किया है।
कुछ नेताओं ने तर्क दिया कि वहां के लोगों की रायसुमारी जरूरी थी। यह लोकतांत्रिक मुल्यों का हनन है। पर यह समझना जरूरी है कि आर्टिकल 370 को चोरी छिपे लागू नहीं किया गया है। भारतीय जनता पार्टी ने अपने चुनावी एजेंडे में इसे सबसे ऊपर रखा था। मेनिफेस्टो में बकायदा लिखित तौर पर आर्टिकल 370 हटाने की बात कही थी। ऐसे में उस वक्त वो नेता चुप क्यों रहे जो आज हाय तौबा मचा रहे हैं। अगर उन्हें इस बात की चिंता रहती तो पिछले पांच साल तीन महीने से इस मुद्दे पर चुप क्यों थे। आज न कल यह लागू होना ही था। जब 70 साल इस आर्टिकल के साथ जी कर देख लिया गया तो क्यों नहीं आने वाले कुछ साल इसके बिना भी जी कर देखा जाए। हो न हो यह जम्मू कश्मीर और लद्दाख के लोगों के लिए यह नया सवेरा ही हो। दिल खोलकर नई सुबह की धूप का स्वागत करने की जरूरत है।
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(लेखक आज समाज के संपादक हैं )