बाल ठाकरे के समय से शिवसेना की स्टाइल रही है की कोई भी शिवसेना के ख़िलाफ़ जाता है या जो लोग शिवसेना को अच्छे नहीं लगते उन्हें ठाकरे स्टाइल में धमकी दी जाती है और उसके बाद अगर कोई मातोश्री के सामने नतमस्तक हो गया तो समझो उस पर ठाकरे की कृपा दृष्टि पड़ गयी फिर उसे कोई परेशान नहीं कर सकता है ये बाला साहेब ठाकरे के समय से शिवसेना की स्टाइल चली आ रही है और आज भी क़ायम है।
आपको याद दिला दें की महाराष्ट्र के सरकार शिवसेना ने भाजपा के साथ इसलिए भी नहीं बनायी क्योंकि जीतने के बाद और शिवसेना से बात बिगड़ने के बाद देवेंद्र फडनविस एक बार भी मातोश्री नहीं गए। अगर वह मातोश्री चले गए होते तो शायद आज महाराष्ट्र में भाजपा सत्ता से दूर नहीं होती।
अब बात सोनू सूद की करते हैं । सोनू सूद को लेकर राजनीति क्यों और कब से शुरू हुई। जब महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने सोनू को राजभवन बुला लिया और मिल लिया इतना ही नहीं सूद की वाहवाही भी कर दी। बस क्या यही से भाजपा को भी मौक़ा मिल गया की मज़दूर की सहायता सिर्फ़ सोनू सूद ही कर रहे हैं महाराष्ट्र सरकार नहीं कर रही मज़दूरों की मदद। एक तरह से सोनू के मज़दूरों का मसीहा बनाकर पेश करने की कोशिश शुरू हो गयी।
सोनू सूद के कंधे पर बंदूक़ रखकर महाराष्ट्र की सरकार पर ज़ोरदार हमला भाजपा करने लगी और यही से शिवसेना को खटकने लगे सोनू सूद। और पूरे देश में ठाकरे सरकार साथ साथ उनकी सहयोगी कांग्रेस की किरकिरी होने लगी।
भाजपा सोनू सूद को आगे कर एक तीर से कई निशाने कर रही थी। सबसे बड़ा निशाना बिहार चुनाव को लेकर। क्योंकि भारी संख्या में बिहारी प्रवासी मज़दूर भी बिहार लौटे हैं और चुनाव नज़दीक है ऐसे में कांग्रेस को पटखनी देने के लिए भाजपा ने सोनू के माध्यम से चल दी बड़ी चाल। क्योंकि महाराष्ट्र सरकार में कांग्रेस भी शामिल है और बिहार में कांग्रेस को और मटियामेट करने के लिए मज़दूरों से अच्छा हथियार इस वक्त भाजपा को नहीं दिखा। मामला सिर्फ़ वोट बैंक का है ।
भाजपा को चुनाव में एक बड़ा मुद्दा चाहिए था तो सोनू सूद के माध्यम से मिल गया। चूँकि सोनू सूद किसी भी पार्टी के समर्थक नहीं है इसलिए उन्होंने मातोश्री की सामने झुकना ही बेहतर समझा। इन्हें समझ में आ गया था की राजनीतिक दल मेरे माध्यम से बड़ी राजनीति कर रहे हैं इसलिए वह इस राजनीति पर विराम लगाने की कोशिश की। लेकिन अब तो बात आगे बढ़ चुकी है। भले ही मुलाक़ात हुई है ठाकरे से लेकिन जो संदेश भाजपा को देना था वो दे चुकी है और सफल भी रही है।
लेकिन यहाँ समझने वाली बात ये है की सोनू सूद को मिलवाने ठाकरे से कांग्रेस के मंत्री असलम शेख़ ले गए। कांग्रेसी मंत्री के साथ सोनू सूद ने भी जाकर एक अलग संदेश देने का प्रयास किया की कोई दूसरी पार्टी उनके नाम पर राजनीतिक फ़ायदा ना ले। और बिहार में कांग्रेस भी अब मज़दूरों के नाम राजनीति कर सके।
इस मीटिंग से अब कांग्रेस अपना श्रेय लेगी और अपनी वाहवाही करेगी तो वही उत्तर भारतीय वोट बैंक और प्रवासी मुद्दे को शिवसेना क्रेडिट लेने की फिराक में है। सूद से अपनी वाहवाही करवाना है उद्धव ठाकरे को।
शिवसेना और बीजेपी की राजनीति में
पिस रहे है सूद।
शिवसेना हमले के बाद
हथियार डाला सूद ने। सूद के बहाने
बीजेपी प्रवासी मजदूर मुद्दे पर सियासत पैनी कर रही है।
बिहार चुनाव भी है।
सभी को पता है उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रियंका गांधी की राजनीति को विफल कर दिया है वह प्रवासी मज़दूरों पर राजनीति करना चाह रही थी ।
अब सोनू सूद के माध्यम से फिर से के बात कांग्रेस बिहार के साथ अन्य राज्यों में पानी नैया पार लगाने की कोशिश करेगी।
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