सद्गुण अपनायें, अंदर का महामानव जगायें

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Sudhanshu ji Maharaj
Sudhanshu ji Maharaj

सुधांशु जी महाराज

भ गवान श्रीकृष्ण कहते हैं दम्भता जीवन में आसुरी वृत्ति को जन्म देती है, ऐसे व्यक्ति दिखावे की संस्कृति पर विश्वास करते हैं। जबकि विनम्रता से व्यक्ति दम्भ मुक्त बनता है। विनम्रता अपनी प्राप्त प्रत्येक सम्पदा को सेवा में लगाने हेतु प्रेरित करती है। भारतीय परम्परा में ज्ञान के द्वार भी इसीलिए खुले हुए थे। सीखना और बांटना विनम्रता का ही पर्याय है। विनम्रता धारण करने से अंदर की कठोरता सहज मिटती है।

जीवनीशक्ति

जीवन उन्नत्त बनता है, समाज में सेवायज्ञ का वातावरण बनता है। छ लोग प्रारब्ध से सद्गुणों का जखीरा लेकर पैदा होते हैं, जबकि कुछ इन्हें जीवन व्यवहार के बीच कठिन अभ्यास के साथ जगाते हैं। परन्तु जिनके पास प्रारब्धगत सद्गुणों के संस्कार होते हैं, उनका जीवन कठिनाइयों के बीच से न गुजरा अथवा बहुत ही सुविधाओं के बीच उन्हें सीधा व सरल जीवन जीने का अवसर मिल गया, तो अक्सर ऐसे लोगो में जीवनीशक्ति कमजोर पड़ने लगती है, उनकी जीवन प्रखरता, तीव्रता, तेजस्विता मंद पड़ जाती है। जबकि ऐसे व्यक्तित्वों में प्रखरता कहीं ज्यादा देखने को मिलती है, जिन के पीछे कठिनाइयां अधिक होती हैं और वे उसमें अपने को साधकर चल पाते हैं।

व्यक्तित्व विशेषज्ञों का मत

व्यक्तित्व विशेषज्ञों का मत हैं कि जिन्होंने कठिनाइयां झेली हों, जो समस्याओं के बीच से निकले हों, वही जीवन में अपने सद्गुणों के सहारे शीर्ष स्तर पर चमक पाते हैं, क्योंकि कठिनाइयां ही व्यक्ति को सही ढंग से तराशती व उभारती हैं। प्रतिभा कम या ज्यादा हर व्यक्ति में होती है, पर प्रयत्नशील लोग जीवन विकास के साथ अपनी प्रतिभा के अनेक पक्षों को सहज उभार कर व्यक्तित्व को आकर्षक बना लेते हैं। श्रेष्ठ व्यक्तित्व जगाने के लिए जीवन में भक्ति, शक्ति, युक्ति और मुक्ति अर्थात वैराग्य युक्त सद्पुरुषार्थ की आवश्यक होती है। गीता नायक के अनुसार सद्गुणों से भरे श्रेष्ठ व्यक्तित्व में जहां तेजस्विता, क्षमाभावना, धैर्यभाव, शुचिता व पवित्रता, दयाभावना, विनम्रता एवं शालीनता जैसे गुणों का होना आवश्यक है, वहीं उसे द्वेष मुक्त रहना भी अतिआवश्यक है।

तेज: क्षमा धृति: शौचमद्रोहोनातिमानिता। भवन्ति सम्पदं दैवीमभिजातस्य भारत।।

तेजस्विता मुख्य सद्गुण है, जिससे जीवन में क्रांति आती है और जीवन के आमूलचूल रूपातंरण का सुयोग जगता है। सम्पूर्ण रूपांतरण का महत्वपूर्ण आधार है तेजस्विता। तेजस्वी व्यक्तित्व वाला व्यक्ति कहीं क्रूरता की राह न पकड़ ले, इसके लिए उसमें हृदय की विशालता भी आवश्यक है। विशाल हृदय से क्षमा की शक्ति जगती है। हृदय में उदारता, करुणा, सहानुभूति और दुगुर्णों के प्रति उपेक्षा भाव बलवती होता है। क्षमा युक्त तेजस्विता, करुणा और सहानुभूति पूर्ण नीति अपनाने से व्यक्ति के अंदर बड़प्पन आता है। जिससे व्यक्ति कीर्तिवान बनता है। बहुत से लोग भविष्य के प्रति शंकाओं से भरे देखे जाते हैं, जो अपनी इस आदत के चलते अपना वर्तमान भी खराब कर लेते हैं।

जीवन के प्रति आशा भाव के लिए धैर्य महत्वपूर्ण

उनमें धैर्य के अभाव के कारण यह स्थिति आती है। कल क्या होगा? रोग ठीक होगा या नहीं? कर्ज चुका पाएंगे या नहीं? बुढ़ापे में बच्चे साथ देंगे या नहीं? आज के सहयोगी साथ निभायेंगे या छोड़ देंगे? मन में ऐसी ही न जाने कितनी तरह की आशंकाएं व्यक्ति में धैर्य के अभाव में उठती रहती हैं। कहते हैं धैर्यहीन इंसान में स्वयं और परमात्मा दोनों पर विश्वास का अभाव सा रहता है, परिणामत: जीवन भी कठिनाइयों का गट्ठर बन जाता है। अत: परमात्मा के प्रति विश्वास एवं जीवन के प्रति आशा भाव के लिए धैर्य जैसा महत्वपूर्ण गुण व्यक्ति में होना ही चाहिए। इस प्रकार शुद्ध बुद्धि से व्यक्ति में पवित्रता जन्म लेती है। पवित्रता ऐसी खेती है, जिसमें व्यक्ति धन, सम्पत्ति, सौभाग्य, सुख, साधना से लेकर कीर्ति आदि कुछ भी उगा सकता है। पवित्रता में साक्षात परमात्मा का प्रतिबिम्ब समाहित होता है, इसीलिए ईश्वर से जुडे़ हर स्थल पवित्र माने गये हैं। जैसे मंदिर, पुस्तकें, उपासना स्थली, संत, श्रेष्ठविचार आदि इन्हें हम पवित्र मानते हैं। इनका अनुशरण करने पर व्यक्ति का तन-मन, बुद्धि-भावनायें सहज पवित्र होती जाती हैं। पवित्र बुद्धि ही अच्छाई-बुराई का सही निर्णय कर पाती है। ऐसा हृदय मंदिर बन जाता है और परमात्मा विराजमान होते हैं।

पवित्रता विनम्रता जैसे गुण का भी वाहक है

विनम्र व्यक्ति को कभी अभाव नहीं सताता। ऐसे व्यक्ति के लिए कल्याणका द्वार सदा खुल जाते हैं। तभी तो हमारे ऋषि-मुनि विद्वान होकर भी अत्यंत सरल, सहज और विनर्र्र्म्र्र होते थे। विनम्रता अपनी प्राप्त प्रत्येक सम्पदा को सेवा में लगाने हेतु प्रेरित करती है। विनम्रता बढ़े भारतीय परम्परा में ज्ञान के द्वार इसीलिए खुले हुए थे। सीखना और बांटना विनम्रता का पर्याय है।

विनम्रता

धारण करने से अंदर की कठोरता सहज मिटती है। जीवन उन्नत होता है। विनम्रता से ही व्यक्ति दम्भ मुक्त बनता है। भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं दम्भता जीवन में आसुरी वृत्ति को जन्म देती है, ऐसे व्यक्ति दिखावे की संस्कृति पर विश्वास करते हैं। मकान, शादियों पर बेतहाशा खर्च करना, मंहगी गाड़ी आदि का अलक्षित प्रदर्शन यह सब दम्भ है। विनम्रता व्यक्ति को दम्भमुक्त करके उसे मानकों, मयार्दाओं एवं संकल्पों के प्रति निष्ठावान बनाती है। जिससे समाज एवं व्यक्तिगत जीवन में दया एवं शांति भाव का जागरण होता है और समाज में सेवायज्ञ का वातावरण बनता है। कहते हैं जिस समाज में व्यक्ति की आंखों में लज्जा, हृदय में कोमलता, परोपकारभाव, प्राणियों के प्रति दया, मन में शांति, जीवन में त्याग, सत्य, न्याय जैसे सदगुणों का वास होता है। वह समाज ध्यान, सिमरन, स्वाध्याय, सेवा, संतोष भाव में स्थिर होकर महामानवों जो गढ़ने में सहायक होता है, जिससे देवत्वपूर्ण समाज का निर्माण सम्भव बनता है, हम भी इन मूल्यों को अपनायें।