हमें तीन साल पीछे जाकर देखना होगा कि भाजपा नेतृत्व योगी को मुख्यमंत्री नहीं बनाना चाहता था मगर केरल में चल रहे संघ के चिंतन से यह नाम बाहर आया था। जिन नेताओं ने दिल्ली में उनसे मुलाकात नहीं की थी, वही लखनऊ पहुंचकर उनका राजतिलक कर रहे थे। यह भी सच है कि शीर्ष नेतृत्व ने उनके आगे पीछे अपने इतने लोग फिट कर दिये थे कि उनकी घोषणाएं हवाई साबित हों, मगर योगी ने सख्त प्रशासक की तरह सबको किनारे लगा दिया। उनकी ईमानदार और संघ की प्राथमिकताओं का क्रियान्वयन कराने की नीति ने उन्हें सशक्त बना दिया। इसका नतीजा यह रहा कि योगी को चुनावों में देशभर में भाजपा ब्रांड के रूप में प्रस्तुत किया गया। बगैर कुछ कहे, हिंदुत्व का संदेश और हिंदू राष्ट्र की परिकल्पना उनके जरिए जनता में परोसी गई। उनकी एकपक्षीय नीति को बहुसंख्यक हिंदुओं के मन को जीतने के लिए प्रयोग किया गया। प्रयोगशाला में योगी पूरी तरह फिट बैठे। राम मंदिर बनाने से लेकर ताज महल में कदम न रखने की उनकी नीति ने हिंदुओं के मन में दबी टीस को जगा दिया। गोकशी के नाम पर हुई हिंसा में पुलिस इंस्पेक्टर की हत्या के बाद भी उनके हत्यारों को संरक्षण मिला।
आधुनिक और धर्मनिरपेक्ष विचारधारा के लोगों के साथ ही भाजपा के ही तमाम नेताओं ने योगी आदित्यनाथ की आलोचनायें कीं। शिकायतें की गईं मगर किसी का कोई फर्क नहीं पड़ा। कोविड-19 के दौरान जिस तरह से मरकज के जमातियों और मुस्लिम समुदाय के लोगों पर मुकदमें किये गये, वो किसी से छिपे नहीं है। इनकी जितनी आलोचना हुई, योगी को उतना ही लाभ हुआ। उनकी छवि कट्टर हिंदू शासक की बन गई। यही नहीं शाहीनबाग जैसे आंदोलनों को यूपी में पनपने नहीं दिया गया, जबकि सबसे अधिक मुस्लिम आबादी इसी राज्य में है। मुस्लिम चेहरा समझे जाने वाले सपा नेता आजम खान और उनके परिवार को जेल में डालने के लिए साम दाम दंड भेद सभी अपनाये गये। कई बार अदालतों के आदेशों को दरकिनार करके उन्होंने अपने एजेंडे को आगे बढ़ाया। इससे माना गया कि योगी को न अदालतों का खौफ है और न ही शीर्ष नेतृत्व का। पिछले सप्ताह जब उनको हटाने की मुहिम चलाई गई, तो उन्होंने इस तरह व्यवहार किया, जैसे उन्हें कोई फर्क ही नहीं पड़ता। इस मुहिम की गंभीरता को भांपते हुए संघ के भावी प्रमुख लखनऊ पहुंच गये। उनकी मंत्रणा के बाद यह संदेश दिया गया कि योगी तो संत हैं, और संत से कोई शिकायत हो ही नहीं सकती।
सरसंघ चालक मोहन भागवत, दिल्ली पहुंचे। उनका विचार मंथन चलता रहा। उन्होंने राजनीतिक परिदृष्य से लेकर विधानसभा चुनावों के नतीजों और भावी चुनावों तक, सभी पर चिंतन किया। कोविड-19 को आपदा में अवसर बनाने के लिए काम करने का निर्देश दिया। उन्होंने भाजपा और सत्ता के नेतृत्व से दूरी बनाई मगर अपना संदेश स्पष्ट कर दिया। उन्होंने योगी को सुयोग्य और उनके कार्यों को सुशासन बताकर तस्वीर साफ कर दी। इसके बाद योगी, जब विशेष विमान से अचानक दिल्ली पहुंचे, तो तमाम कयास लगाये जाने लगे। जिन्हें भाजपा-संघ के बारे में ज्ञान नहीं था, उन्होंने यह कहकर चर्चा की कि योगी राज में सब ठीक नहीं है। सच तो यह है कि उनको दिल्ली भावी रणनीति के मद्देनजर बिछाई जा रही बिसात के बारे में बताने के लिए बुलाया गया था। कैसे चुनाव के दौरान सभी का साथ और हिंदुत्व चेहरे का लाभ उठाया जाये, इस पर चिंतन हुआ। योगी की यह दिल्ली यात्रा उन्हें और भी मजबूत बनाने की रणनीति का हिस्सा थी।
योगी को सरकार के अधिकारी और पार्टी के पदाधिकारी महाराज कहकर संबोधित करते हैं। न केवल कट्टर हिंदुत्व को अपनाने वाले बल्कि सोशल मीडिया पर सरकारी कार्यालय भी उन्हें महाराज ही कहते हैं। भले ही संविधान में धर्मनिरपेक्ष गणराज्य बना रहे मगर उसका प्रमुख कट्टर छवि का भगवाधारी महंत होगा, तो निश्चित रूप से हिंदुत्व और हिंदू राष्ट्र की परिकल्पना साकार होगी। यही तो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ चाहता है। योगी की दिल्ली यात्रा, यह भी समझाने के लिए थी, कि उनको सलाह मशविरा तो दिया जा सकता है मगर उनके भविष्य का फैसला नागपुर से ही होता है। यह भी साफ किया गया कि योगी की चुगली या आलोचना का कोई लाभ किसी को नहीं होने वाला। देश के मौजूदा नेतृत्व से वह रणनीति और कूटनीति सीखें। मगर करें, वही जो दिशा निर्देश उन्हें संघ से मिलते हैं। ईमानदार नेता और चरित्रवान महंत के साथ ही सख्त शासक के रूप में उन्हें गढ़ा जा रहा है, जिससे वह भाजपा का भविष्य बन सकें।
रामचरित मानस की चौपाई “संत हृदय नवनीत समाना, कहा कविहिन पर कहा न जाना।निज परिताप द्रवहिं नवनीता, पर दुख द्रवहिं संत सुपुनीता”। से समझने का संदेश संघ ने भाजपा के उन नेताओं और आलोचकों को दिया है, जो योगी हटाओ की मुहिम में लगे थे। ऐसे लोग अगर योगी के अनुकूल चलेंगे, तो उनके दुखों से वह द्रवित हो जाएंगे, अन्यथा कठोर शासक के रूप में ही वह दृश्य होंगे। यही छवि संघ की सोच है। इसके लिए कुछ आहुतियां भी स्वीकार्य हैं।
जय हिंद!
(लेखक आईटीवी नेटवर्क के प्रधान संपादक हैं।)
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