नयी दिल्ली। सरकार ने मंगलवार को स्वीकार किया कि पिछले वर्षों की तुलना में 2019 में बिहार में एक्यूट इन्सैफेलाइटिस सिन्ड्रोम (एईएस) के मामलों में और इसके कारण बच्चों की मौत के आंकड़ों में वृद्धि हुई है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने राज्यसभा को बताया कि 2016 में एईएस के 324 मामले सामने आए और 102 बच्चों की मौत हुई। 2017 में इस बीमारी के 189 मामले सामने आए और 54 बच्चों की मौत हुई। 2018 में 124 मामले सामने आए और 33 बच्चों की मौत हुई लेकिन 2019 में दो जुलाई तक एईएस के 837 मामले सामने आए और 162 बच्चों की मौत हुई। चौबे ने एक प्रश्न के लिखित उत्तर में बताया कि बिहार के अलावा, देश के सात अन्य राज्यों में एईएस की वजह से 63 बच्चों की जान जाने की खबर है।
इनमें से असम में 25, झारखंड में दो, महाराष्ट्र, मणिपुर, ओडिशा में एक एक, उत्तर प्रदेश में 17 और पश्चिम बंगाल में एईएस के कारण 63 बच्चों की मौत होने की खबर है। एक अन्य प्रश्न के लिखित उत्तर में उन्होंने बताया कि राज्य एईएस के मामलों और इनसे होने वाली मौत के मामलों की सूचना नियमित रूप से केंद्र सरकार को दे रहे हैं। एईएस के सर्वाधिक मामले बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में होने की खबर है। इस बारे में मंत्री ने बताया कि केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री ने बिहार के स्वास्थ्य मंत्री और मंत्रालय के अधिकारियों के साथ बैठक कर स्थिति की समीक्षा की थी। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने इस रोग से निपटने में राज्य सरकार की मदद के लिए एक केंद्रीय दल की नियुक्ति की थी जिसमें विभिन्न केंद्रीय सरकारी संस्थानों के स्वास्थ्य विशेषज्ञ भी शामिल थे। इसके अलावा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री ने राज्य मंत्री और अधिकारियों के दल के साथ बिहार का दौरा किया तथा स्थिति की समीक्षा की थी। चौबे ने बताया कि स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री ने विभिन्न केंद्रीय सरकारी संस्थानों से वरिष्ठ बाल चिकित्सकों को शामिल करते हुए मुजफ्फरपुर के लिए एक उच्च स्तरीय बहुविषयक दल की भी तैनाती की थी। एईएस का संबंध लीची से बताए जाने के बारे में मंत्री ने स्पष्ट किया कि स्वस्थ लोगों को लीची से कोई नुकसान नहीं होता। ‘‘वर्ष 2013-14 में राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र ने अपने सहयोगी संस्थानों के साथ एक अनुसंधान अध्ययन किया था। अध्ययन में पाया गया कि कुपोषित बच्चे अगर लीची खाते हैं तो इससे उन्हें हाइपोग्लाइसेमिया हो जाता है जिसमें बच्चे को दौरे पड़ते हैं या उसे एईएस की समस्या होती है।