Aazam khan and BJP: आजम को घेरने के लिए हर हथकंडा!

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उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के दिग्गज नेता आजम खान को घेरने के लिए भाजपा हर तरह के छद्म करने को उतारू है। उनकी पत्नी, बहन, बेटा और भानजे सब पर मुकदमे ठोक दिए गए हैं। ऐसा लगता है, जैसे आजम खान कोई राजनीतिक नेता नहीं, बल्कि शातिर अपराधी हैं। इनमें से कई मुकदमों की तो ठीक से पड़ताल तक नहीं की गई। आरोप लगा, और मुकदमा ठुका। इसके पीछे लगता है, कि भाजपा की आजम खान से खुन्नस कम समाजवादी पार्टी से ज्यादा है। क्योंकि आज की तारीख में अकेले समाजवादी पार्टी ही योगी आदित्यनाथ सरकार से भिड़ने का हौसला रखती है। इसलिए योगी सरकार का एकमात्र लक्ष्य है, येन-केन-प्रकारेण सपा को कमजोर करना। और यह तब ही संभव है जब सपा के सारे दिग्गज नेता घेर लिए जाएं। यह कितना अमानवीय लगता है, कि इस बुजुर्ग नेता की 75 वर्ष की बहन को पुलिस खींच कर ले गई, मानों वह कोई भगोड़ा हों।
दरअसल आजम खान को माइनस कर समाजवादी पार्टी का कोई अस्तित्त्व नहीं बचता। इसलिए सपा को खड़ा करने वाले मुलायम सिंह भी अब अपनी उम्र, अस्वस्थता और अस्थिरता के बावजूद उनके समर्थन में आ गए हैं। मंगलवार को उनकी प्रेस कान्फ्रेंस इसी वजह से हुई। आज उत्तर प्रदेश की योगी आदित्य नाथ सरकार जिस तरह से आजम खान की चौतरफा घेरेबंदी कर रही है, उससे यह तो साफ ही है, कि छोटे-छोटे आरोप लगाकर योगी सरकार असल में तो यूपी से सपा का पत्ता साफ करने की तैयारी में है। कुल ढाई साल बाद ही उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव है। और योगी सरकार के पास अपनी उपलब्धियां बताने को कुछ नहीं है। यहां तक कि उन संसाधनों को भी ढाई साल की योगी सरकार ने नष्ट कर दिया है, जो पूर्ववर्ती अखिलेश सरकार छोड़ गई थी। उत्तर प्रदेश में बिजली, सड़क और पानी के मामले में मायावती और अखिलेश सरकारों ने क्रांतिकारी काम किया था। किन्तु योगी सरकार के वक्त ये सब समाप्त हो गया। इसलिए जीत के लिए कुटिल चालें खेली जा रही हैं। इसका पहला निशाना बड़बोले आजम खान बने हैं। क्योंकि आजम खान ही वह कुंजी हैं, जिसको माइनस कर सपा के असर को खत्म किया जा सकता है।
यूपी का किला फतेह करने के लिए, एक तो पिछड़े वोटों का साथ चाहिए, दूसरे मुसलमानों को अलग-थलग कर देने की चाल। बस दांव पूरा। मुसलमान यदि सपा के साथ रहता है, तो मुलायम सिंह अपने पिछड़े वोटों के बूते सत्ता तक पहुंच ही जाते हैं। यूं भी मुसलमान अब बसपा के पाले में जाने से रहा, लेकिन यदि मुसलमान सपा का साथ छोड़ता है, और कांग्रेस के पास जाता है, तो नतीजा सिफर। क्योंकि कांग्रेस के पास अब कोई वोट-बैंक नहीं बचा है। ऐसे में आजम की घेरेबंदी कर भाजपा अपना खेल खेल रही है। इन मुस्लिम वोटों के लिए आजम खान जैसे मुंहफट और साफ बात करने वाले नेता की सपा को सख्त जरूरत है। क्योंकि पिछड़ों में अब सिर्फ यादव ही उनके पास बचा है। कुर्मी, जाट, गूजर तथा अन्य पिछड़े वर्गों पर अमित शाह ने कल्याण सिंह के बूते अच्छी पैठ बना ली है। ऐसे में आजम खान को फंदे में ले लेना भाजपा की बड़ी राजनीतिक चाल है। यह पहली बार हुआ होगा, कि उत्तर प्रदेश की राजनीति की रग-रग से वाकिफ आजम खान पर कोई सरकार 80 मुकदमे लाद दे। इनमें से कुछ तो इतने पोच हैं, कि हो सकता है कि वे कोर्ट में स्टैंड ही न कर पाएं। मगर आज की तारीख में भाजपा सरकार ने आजम खान को लाचार तो कर ही दिया है।
मजे की बात, कि आजम खान खुद ही कानून के ही जानकार हैं। सक्रिय राजनीति में आने के पूर्व वे वकालत ही करते थे। 1974 में उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से कानून की डिग्री हासिल की थी। 1977 में वे जनता पार्टी से जुड़े। 1980 में आजम खान ने पहली बार विधानसभा का चुनाव जीता। 1992 में मुलायम सिंह ने जब जनता दल से अलग होकर समाजवादी पार्टी बनाई, तब वे ही उनके साथ थे। यूं भी उत्तर प्रदेश में 1990 में बनी पहली मुलायम सरकार में वे काबीना मंत्री भी रहे थे। लगातार नौ बार वे विधायक रहे। यूपी में मुस्लिम मतदाताओं के बीच आजम खान की अच्छी पकड़ है। लेकिन मुलायम सिंह और आजम खान की दोस्ती को एक झटका 2009 में तब लगा, जब अमर सिंह मुलायम सिंह के साथ जुड़े। वे एक तो भाजपा के तब बागी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को समाजवादी पार्टी में लाए, दूसरे जया प्रदा को रामपुर से चुनाव लड़ाया। यहां पर आजम खान को पराजित और लज्जित होना पड़ा। 2009 में सपा ने 39 लोकसभा जीतीं और जया प्रदा आजम के विरोध के बावजूद राम पुर से लोकसभा जीत गईं।
सपा ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया। तब अमर सिंह का जादू मुलायम पर सवार था। लेकिन इसके बावजूद आजम खान ने संयम बरता, और मुलायम सिंह के बसरे में कभी कोई टिप्पणी नहीं की। किन्तु बाद में मुलायम सिंह को अपनी भूल का अहसास हुआ। 2010 में अमर सिंह को पार्टी से बाहर किया गया, और आजम खान की चार दिसंबर 2010 को सम्मान के साथ वापसी हुई। आपसी बोलचाल में भी दोनों नेताओं ने सदा ही संयम बरता है। मुलायम सिंह सदैव आजम खान को आजम साहब बोलते हैं, और आजम खान उन्हें नेता जी। आजम ने एक बार मुलायम पर शेर कहा था, ‘इस सादगी पर कौन न मर जाए ऐ खुदा,  करते हैं कत्ल और हाथ में तलवार तक नहीं।’ यही कारण है, कि भाजपा ने मुलायम सिंह को अकेला छोड़ देने के लिए ही आजम खान पर तमाम मुकदमे ठोके हैं। रामपुर में गरीब बच्चों के लिए जौहर यूनिवर्सिटी बनाने का आजम खान का एक सपना रहा है। शायद यह यूनिवर्सिटी अगर बन जाती, तो हिंदुस्तान में बेजोड़ होती। मगर भाजपा ने इसी को लक्ष्य बनाकर उन्हें घेरा है। जिस प्रदेश में जगह-जगह प्राइवेट यूनिवर्सिटी की दूकानें चल रही हैं, उसका जौहर यूनिवेर्सिटी के प्रति यह रोष उसकी कुंठा को जाहिर करता है। मगर अब जब मुलायम सिंह ने आजम खान के समर्थन में आकार ताल ठोक दी है, तो भाजपा की यह कोशिश निष्फल ही जाएगी।