करनाल: छठे वित्त आयोग हरियाणा के चेयरमैन पी. राघवेन्द्र राव ने अधिकारियों से की मीटिंग

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प्रवीण वालिया, करनाल:
छठा वित्त आयोग हरियाणा के चेयरमैन पी.राघवेन्द्र राव (सेवानिवृत्त वरिष्ठ आई.ए.एस. अधिकारी) ने कर्ण लेक पर बुद्धीशीलता सत्र नाम से करनाल मण्डल के स्थानीय प्रशासन अधिकारियों के साथ एक मीटिंग कर, उनकी क्या-क्या सिफारिशें हैं, उन पर विचार-विमर्श कर सुझाव लिए। उनके साथ राज्य वित्त आयोग के सदस्य सचिव विकास गुप्ता भी थे। इस मीटिंग में करनाल मण्डल के आयुक्त संजीव वर्मा, उपायुक्त निशांत कुमार यादव, कैथल के उपायुक्त प्रदीप दहिया तथा पानीपत के उपायुक्त की ओर से अतिरिक्त उपायुक्त वीना हुड्डा, जिला नगर आयुक्त व निगमायुक्त करनाल डॉ. मनोज कुमार, पानीपत के निगम आयुक्त आर.के. सिंह तथा तीनो जिलो के सीईओ जिला परिषद, डी.डी.पी.ओ. व नगर पालिकाओं के ई.ओ. शरीक हुए। पी. राघवेन्द्र राव ने बताया कि संविधान में हर 5 साल के बाद राज्य वित्त आयोग के गठन का प्रावधान है। इसका मुख्य उद्देश्य यह है कि राज्य सरकार का करों से एकत्रित होने वाला जितना राजस्व है, उसमें से पंचायतों व स्थानीय निकायों के साथ कितना शेयर करना है। संविधान के 73वे व 74वें संशोधन में भी पंचायतों व अर्बन लोकल बॉडिज के शेयर की ही बात कही गई है। उन्होंने कहा कि 5वें राज्य वित्त आयोग में यह सिफारिश की गई थी कि स्टेट के टैक्स रिवेन्यू में से कॉलैक्शन चार्जिज कम करने के बाद कुल राजस्व का 7 प्रतिशत लोकल बॉडिज यानि पंचायतें व निकायों को आबंटित करना है। इसी 7 प्रतिशत में से 55 प्रतिशत पंचायतों तथा 45 प्रतिशत अर्बन लोकल बॉडीज को दिए जाने की बात की गई थी। पंचायतों के शेयर में से 75 प्रतिशत दिया जाए पंचायत, 15 प्रतिशत पंचायत समीति और 10 प्रतिशत जिला परिषदों के लिए निर्धारिण करना था। अब छटे वित्त आयोग के लिए आज मण्डल स्तर की जो मीटिंग की गई है, उसका मकसद यह है कि क्या पिछले फामूर्ला में किसी बदलाव की जरूरत है या कोई नया टैक्स कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त किन-किन उद्देश्यों के लिए अनुदान की सिफारिश की जा सकती है तथा उसकी पृष्ठभूमि क्या है। बता दें कि इन सब चीजों को लेकर चेयरमैन ने आज फील्ड आॅफिसर व प्रतिनिधियों के साथ बातचीत की, ताकि यह मालूम हो सके कि उनकी क्या-क्या दिक्कतें हैं और वे सुधार के लिए किस तरह का बदलाव चाहते हैं। ऐसे सभी सुझाव लेने के बाद जो भी फिजिबल होगा, उसकी सिफारिश वित्त आयोग को की जाएगी। उन्होंने बताया कि इस मीटिंग की शुरूआत करनाल से हुई है, इसी तरह सभी 6 मण्डलों पर उपायुक्त, सीईओं व प्रतिनिधियों से बातचीत करेंगे, आयोग के सदस्यों, जनता तथा सरकार की भी राय लेंगे। उन्होंने कहा कि आज अधिकारियों के साथ जो मंथन किया गया है, उसमें अच्छे सुझाव आए हैं। पंचायतों व शहरी स्थानीय के विगत के 55 व 45 के अनुपात को बढ़ाकर 50-50 करने की बात कही गई है। क्योंकि यह पैसा प्रदेश से लेकर दोनो को देना है, इसे देखते जितना सम्भव होगा, उसमें बेहतर संतुलन की सिफारिश करेंगे। मीटिंग में मौजूद वरिष्ठ आई.ए.एस. अधिकारी तथा छटे वित्त आयोग के सदस्य सचिव विकास गुप्ता ने कहा कि आज का सैशन काफी उपयोगी है। सरकार जो भी पॉलिसी व स्कीमें बनाती है, उसे प्रभावी बनाने के लिए डाटाबेस जरूरी है। उन्होंने कहा कि फील्ड में जाकर ही स्थानीय प्रशासन की दिक्कतों और वे क्या चाहतें हैं, इन बातों का पता लगता है।
करनाल मण्डल के आयुक्त संजीव वर्मा ने चेयरमैन पी. राघवेन्द्र राव का स्वागत किया। उन्होंने मीटिंग में आए अधिकारियों से कहा कि अच्छे से अच्छे सुझाव दें, ताकि उनकी सिफारिशें सरकार तक पहुंचे और सरकार से जनता को अधिक से अधिक सुविधाएं मिलें। गरीब मजदूर व किसान का भला हो, स्थानीय स्तर पर लोगों को किस तरह से रोजगार दिया जाए, महिलाओं का सशक्तिकरण तथा स्थानीय खर्चों से आत्मनिर्भर कैसे हो सकते हैं, आयोग का यही ध्येय है। उन्होंने उम्मीद की कि छटा वित्त आयोग कुछ परिवर्तन लेकर आएगा, जिससे हर वर्ग को फायदा होगा। मीटिंग के संयुक्त सत्र में करनाल के उपायुक्त निशांत कुमार यादव, उपायुक्त कैथल प्रदीप दहिया, नगर निगम आयुक्त डॉ. मनोज कुमार, पानीपत की एडीसी वीना हुड्डा व निगमायुक्त आर.के. सिंह, सीईओ पंचायती राज गौरव कुमार तथा सीईओ जिला परिषद पानीपत विवेक चौधरी ने प्रेजेन्टेशन के माध्यम से अपने-अपने सुझाव दिए। सुझाव में कहा गया कि टाईड यानि सेनीटेशन व ड्रिंकिंग वाटर पर 60 प्रतिशत और अनटाईड यानि गलियों के निर्माण आदि पर 40 प्रतिशत खर्च होना चाहिए। स्थानीय प्रशासन यानि पंचायतों व शहरी निकायों के आय के स्त्रोत बढऩे चाहिएं, जिसमें नागरिकों के साथ-साथ सरकारी विभागों से टैक्स कॉलैक्शन मिलनी चाहिए, ताकि सरकार के ऊपर अनुदान की निर्भरता कम से कम हो। गांवो में कॉमर्शियल गतिविधियों को टैक्स के दायरे में लाना चाहिए, ताकि पंचायतों की आमदनी बढ़े। इसके लिए ब्लॉक या जिला परिषद स्तर पर कराधीन अधिकारी होना चाहिए।