राजकुमार शर्मा ।मुझे इस बात की खुशी है कि लम्बे समय के बाद क्रिकेट की बहाली एक रोचक सीरीज़ के साथ हुई है। दुनिया भर के क्रिकेट प्रेमियों के मन में तरह तरह के सवाल थे लेकिन यह सीरीज़ सेफ रही। पहले मैच में वेस्टइंडीज़ ने अपने शानदार खेल से सबको चौंकाया लेकिन इंग्लैंड ने दूसरे मैच में साबित कर दिया कि उसकी एक मज़बूत टीम है। उसने खेल के हर विभाग में बढ़िया प्रदर्शन किया। ओल्ड ट्रैफर्ड में शुक्रवार से शुरू होने वाले तीसरे टेस्ट में इंग्लैंड के सीरीज़ जीतने के 65 फीसदी अवसर हैं।
दूसरे टेस्ट में जोफ्रा आर्चर को बाहर बिठाना इंग्लैंड की मजबूरी थी लेकिन अब उन्हें ज़्यादा समय बाहर नहीं रखा जा सकता। उनके जैसा खिलाड़ी किसी भी टीम की बड़ी ताक़त साबित हो सकता है। सम्भव है कि क्रिस वोक्स या सैम करन में से किसी एक की जगह उन्हें खिलाया जाए। बाकी रंगभेद जैसे मसले पर जोफ्रा के मन में कई तरह से नाराज़गी हैं। मुझे विश्वास है कि इंग्लैंड का टीम मैनेजमेंट उन्हें मनाने में सफल हो जाएगा। अब यह जोफ्रा आर्चर पर निर्भर करता है कि वह इस मैच में आराम फरमाते हैं या अपनी टीम को निर्णायक मैच जिताने में अहम भूमिका निभाते हैं।
बेन स्टोक्स ने खासकर ओल्ड ट्रैफर्ड में काफी प्रभावित किया। वह खेल के हर विभाग में बेहतरीन प्रदर्शन करना जानते हैं। उनकी बॉडी लैंग्वेज ज़बर्दस्त है। वह गेंदबाज़ तो अच्छे हैं ही, बल्लेबाज़ी भी गज़ब की कर रहे हैं। इसी बल्लेबाज़ी के दम पर वह इस सीज़न में अपनी टीम को कई मैच जिता चुके हैं। इतना ही नहीं, उनकी फील्डिंग गज़ब की है। वह ओवरऑल टीम के लिए ऑलराउंड पैकेज हैं। इन्हीं सब खूबियों से वह आज दुनिया के नम्बर एक ऑलराउंडर बन गए हैं। लम्बे समय से नम्बर एक पर चल रहे जेसन होल्डर को उन्होंने पीछे छोड़ दिया है। आईसीसी टेस्ट बल्लेबाज़ी रैंकिंग में भी वह स्टीवन स्मिथ और विराट कोहली के बाद तीसरे स्थान पर पहुंच गए हैं। पहले टेस्ट में जो रूट की गैर मौजूदगी में उनकी कप्तानी में अनुभवहीनता दिखाई दी थी। दरअसल जो नियमित कप्तान होता है, वह इस बात को बहतर तरीके से जानता है कि किस खिलाड़ी से कैसे काम लेना है। उसे अपने खिलाड़ियों की क्षमताओं का भी बेहतर अहसास होता है। फिर भी मैं स्टोक्स का यह कहकर बचाव करूंगा कि एक नए कप्तान को जमने में थोड़ा समय लगता है लेकिन ये भी उतना ही सच है कि बतौर कप्तान जो रूट के आने से बड़ा अंतर देखने को मिला है। इन दोनों मैचों में दोनों टीमें अपने बढ़िया बॉलिंग अटैक पर निर्भर थीं। दोनों का अटैक तेज़ गेंदबाज़ी की ताक़त पर निर्भर है।. इंग्लैंड ने अपनी कंडीशंस में अपने अटैक का बेहतर इस्तेमाल करके सीरीज़ में 1-1 से बराबरी कर ली है। ओल्ड ट्रैफर्ड के इसी मैदान पर शुक्रवार से तीसरा टेस्ट शुरू होने वॉला है। इंग्लैंड इस मैच में अपनी कंडीशंस का अधिकतम फायदा उठाना चाहेगा। सम्भव है कि इस बार ग्रीन टॉप विकेट हो। वेस्टइंडीज़ का प्रदर्शन काफी कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि होल्डर और गैब्रिएल कैसा प्रदर्शन करते हैं। वैसे टीम के एक अन्य स्ट्राइक बॉलर कीमर रॉच को हल्के से नहीं लिया जा सकता। वह टीम के बेहतरीन गेंदबाज़ हैं लेकिन इस सीरीज़ में थोड़े ऑफ कलर चल रहे हैं। जिस स्विंग के लिए वह जाने जाते हैं, वैसी स्विंग से उन्हें मदद नहीं मिल पा रही।
हो सकता है कि लम्बे समय से मैच प्रैक्टिस न मिल पाना इसका कारण हो। आज ज़्यादातर खिलाड़ी लॉककडाउन के दौरान जिम, वेट ट्रेनिंग और साइक्लिंग करके खुद को तो फिट रखने में सफल हो गए हैं लेकिन मैदान में अपने खेल के दौरान वह अभी तक लय पाने में सफल नहीं हो पाए हैं। पिछले दिनों भारत के बॉलिंग और फील्डिंग कोचों ने कहा था कि किसी भी अंतरराष्ट्रीय मैच से पहले कम से कम चार हफ्ते की तैयारी बेहद ज़रूरी है। इतना समय तो कम से कम लगता ही है कि बल्लेबाज़ को गेंद को बल्ले के मिडिल करने और गेंदबाज़ी को पूरी लय पाने के लिए। मुझे लगता है कि इस सीरीज़ में कैम्पबेल और शाई होप के साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। वेस्टइंडीज़ क्रिकेट की दिक्कत यह है कि उसके पास ज़्यादा विकल्प नहीं हैं। पिछले वर्षों में वेस्टइंडीज़ के प्रदर्शन को देखें तो वह टी-20 और वनडे में ही संतोषजनक रहा है जबकि टेस्ट में उसका प्रदर्शन औसत दर्जे का रहा है या कई-कई बार तो खराब रहा है। दरअसल, वेस्टइंडीज़ में युवा प्रतिभाएं या तो फुटबॉल में जा रही हैं या फिर बास्केटबॉल में। देखते ही देखते पिछले वर्षों में वेस्टइंडीज़ में क्रिकेट की रफ्तार कम हो गई थी। वह तो भला हो टी-20 वर्ल्ड कप का, जिसे जीतकर वेस्टइंडीज़ में क्रिकेट फिर से बहाल हो गया।
वेस्टइंडीज़ टीम को संतुलित बनने के लिए मध्य क्रम में कम से कम दो बल्लेबाज़ चाहिए। उन्हें पूरा समय देना होगा। परिणाम के लिए कोई जल्दबाज़ी न की जाए। यहां तक कि भारत में भी ऐसे खिलाड़ियों को पर्याप्त मौके दिए जाते हैं जिनमें हुनर हो या फिर जो तकनीकी तौर पर मज़बूत हों। इस नाजुक मौके पर युवा खिलाड़ियों को खिलाने से बेहतर है कि अपने सीनियर खिलाड़ियों पर ही भरोसा करें।
सीरीज़ का सफलतापूर्वक आयोजन ही क्रिकेट की जीत है लेकिन जहां तक सीरीज़ जीतने का सवाल है, मैं इंग्लैंड के 65 फीसदी अवसर मानता हूं। सबसे बड़ी बात यह है कि इंग्लैंड अपनी कंडीशंस का अधिकतम लाभ उठाकर सीरीज़ जीतने की कोशिश करेगा।
(लेखक विराट कोहली के कोच और द्रोणाचार्य पुरस्कार विजेता हैं)
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