अंबाला। कारगिल की सफेद बफ को अपने लहू से लाल कर देने वाले हिंदोस्तानी फौज के जांनिसारों के युद्ध इतिहास के शिलापट पर शौय , बलिदान और समप ण के अमर शिलालेखों का आचमन और स्मरण दिवस है कारगिल विजय दिवस। कारगिल युद्ध में मां भारती के ललाट पर विजय का रक्त चंदन लगाने वाले लगभग 527 से अधिक वीर योद्धा शहीद व 1300 से ज्यादा घायल हो गए, जिनमें से अधिकांश अपने जीवन के 30 वसंत भी नहीं देख पाए थे। इन शहीदों ने भारतीय सेना की शौय व बलिदान की उस सवो च्च परंपरा का निवा ह किया, जिसकी सौगन्ध हर सिपाही तिरंगे के समक्ष लेता है। यह दिन है उन शहीदों को याद कर अपने श्रद्धा-सुमन अप ण करने का, जो हंसते-हंसते मातृभूमि की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। आज समाज परिवार भारतीय सेना के शहीदों और जांबाजों को नमन करता है।
वो 10 योद्धा जिन्होंने वीरता की नई इबारत लिखी
क ारगिल के युद्ध में भारतीय सेना के जवानों ने अपना वो पराक्रम दिखाया जिसे सदियों तक याद किया जाएगा। 26 जुलाई हर भारतीयों के गर्व करने का दिन है जब हमारे वीर योद्धाओं ने कारगिल की सफेद बर्फ से ढकी पहाड़ी पर तिरंगा फहराया था। आइए एक नजर डालते हैं उन दस वीरों पर जिन्होंने मां भारती की रक्षा में अपने प्राणों की आहुति दी। इन शहीदों ने भारतीय सेना की शौर्य व बलिदान की उस सर्वोच्च परम्परा का निर्वाह किया, जिसकी सौगन्ध हर सिपाही तिरंगे के सामने लेता है। यह दिन है उन शहीदों को याद कर अपने श्रद्धा-सुमन अर्पण करने का, जिन्होंने हंसते-हंसते मातृभूमि की रक्षा के लिए मौत को गले लगा लिया।
कैप्टन विक्रम बतरा
कैप्टन विक्रम बतरा वही हैं जिन्होंने कारगिल के प्वांइट 4875 पर तिरंगा फहराते हुए कहा था यह दिल मांगे मोर। वह वीर गति को भी वहीं प्राप्त हुए। विक्रम बतरा 13वीं जम्मू एंड कश्मीर राइफल्स में थे। कैप्टन बतरा ने तोलोलिंग पर पाकिस्तानियों द्वारा बनाए गए बंकर पर न केवल कब्जा किया बल्कि गोलियों की परवाह किए बिना ही अपने सैनिकों को बचाने के लिए 7 जुलाई 1999 को पाकिस्तानी सैनिकों से सीधे भिड़ गए और तिरंगा फहरा कर ही दम लिया। आज उस चोटी को बतरा टॉप के नाम से जाना जाता है। सरकार ने उन्हें परमवीर चक्र का सम्मान देकर सम्मानित किया।
कैप्टन एन केंगुर्सू
कैप्टन एन केंगुर्सू राजपूताना राइफल्स के दूसरी बटालियन में थे। वह कारगिल युद्ध के दौरान लोन हिल्स पर 28 जून 1999 को दुश्मनों को पटखनी देते हुए शहीद हो गए थे। युद्ध के मैदान में दुश्मनों को खदेड़ देने वाले इस योद्धा को सरकार ने मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया।
मेजर पदमपानी आचार्य
भारतीय सेना में मेजर पदमपानी आचार्या राजपुताना राईफल्स की दूसरी बटालियन में थे। 28 जून 1999 को लोन हिल्स पर दुश्मनों के हाथों वीरगति को प्राप्त हो गए थे। सरकार ने कारगिल हिल पर उनकी वीरता के लिए और दुश्मनों के दांत खट्टे करने के लिए मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया था।
नायक दिगेंद्र कुमार
नायक दिगेंद्र कुमार राजपुताना राइफल्स के सेकेंड बटालियन में थे। कारगिल युद्ध में उनके अदम्य साहस के लिए सरकार ने 15 अगस्त 1999 को महावीर चक्र से सम्मानित किया।
कर्नल सोनम वांगचुक
कर्नल सोनम वांगचुक लद्दाख स्काउट रेजिमेंट में अधिकारी थे। कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना को खदेड़ते हुए वह कॉरवट ला टॉप पर वीरगति को प्राप्त हुए थे। उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
कै. मनोज कुमार पांडे
कैप्टन मनोज कुमार पांडे गोरखा राइफल्स के फर्स्ट बटालियन में थे। वह आॅपरेशन विजय के महानायक थे। उन्होंने 11 जून को बटालिक सेक्टर में दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिए थे। वहीं उनके ही नेतृत्व में सेना की टुकड़ी ने जॉबर टॉप और खालुबर टॉप पर वापस अपना कब्जा जमाया था। वह दिन तीन जुलाई 1999 का था। पांडेय ने अपनी चोटों की परवाह किए बगैर तिरंगा लहराया। इस अदम्य साहस के लिए उन्हें परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया।
मेजर राजेश सिंह अधिकारी
मेजर राजेश सिंह अधिकारी की मौत 30 मई 1999 में कारगिल हिल पर हुई थी। उनके वीरता कार्य के लिए सरकार ने उन्हें गैलेंटरी सम्मान महावीर चक्र से सम्मानित किया।
कैप्टन अनुज नैय्यर
कैप्टन अनुज नैय्यर जाट रेजिमेंट की 17वीं बटालियन में थे। 7 जुलाई 1999 को वह टाइगर हिल पर दुश्मनों के दांत खट्टे करते हुए शहीद हुए। कैप्टन अनुज की वीरता को देखते हुए सरकार ने उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया।
योगेंद्र सिंह यादव
कमांडो घटक प्लाटून को गाइड करने वाले ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव थे, जिन्होंने एक चक्र के साथ टाइगर हिल पर एक स्ट्रैटजी बनाकर बंकर पर हमला किया। वह अपनी पलटन के लिए रस्सी का रास्ता बनाते थे। 4 जुलाई को उन्हें कारगिल युद्ध के दौरान अदम्य साहस के लिए सरकार ने परमवीर चक्र से सम्मानित किया।
राइफल मैन संजय कुमार 13 जम्मू और कश्मीर राइफल्स में थे। वह स्काउट टीम के लीडर थे और उन्होंने फ्लैट टॉप पर अपनी छोटी टुकड़ी के साथ कब्जा किया। वह एक जाबांज योद्धा थे उन्होंने दुश्मनों की गोली सीने पर खाई थी। गोली लगने के बाद भी वह दुश्मनों का डटकर मुकाबला करते रहे। छोटी सी टुकड़ी के साथ उन्होंने अदम्य साहस का परिचय दिया इसके बाद राइफल मैन कुमार को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
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