Aaj Samaj (आज समाज),27th World Spiritual Conference concludes,पानीपत : सावन कृपाल रूहानी मिशन के प्रमुख संत राजिन्दर सिंह जी महाराज की अध्यक्षता में आयोजित 27वें विश्व आध्यात्मिक सम्मेलन का समापन 20 सितंबर, 2023 को संत दर्शन सिंह जी धाम, बुराड़ी में संपन्न हुआ। इस भव्य आयोजन पर हजारों की संख्या में एकत्रित हुए लोगों को संबोधित करते हुए संत राजिन्दर सिंह महाराज ने कहा कि प्रेम, शांति और ध्यान-अभ्यास हमें एक-दूसरे को मानव एकता के रूप में जोड़ते हैं। संत राजिन्दर सिंह महाराज ने आगे कहा कि, विश्व आध्यात्मिक सम्मेलन आध्यात्मिकता और ध्यान-अभ्यास का सम्मेलन है। हरेक धर्म उन महान संतों की शिक्षाओं पर आधारित है, जिन्होंने आध्यात्मिक रूप में पिता-परमेश्वर का अनुभव किया। पिता-परमेश्वर एक हैं और वे हम सबके भीतर निवास करते हैं। हम सभी ने उन्हें भले ही अलग-अलग नाम दिये हों और चाहे हमारे बाहरी रीति-रिवाज़ भी अलग-अलग हों लेकिन हम सबकी मंज़िल एक ही है। यह वास्तव में स्वयं को आत्मा के रूप में जानना और पिता-परमेश्वर को अपने अंदर अनुभव करना है।

ध्यान-अभ्यास और आध्यात्मिकता हरेक धर्म का आधार

संयोगवश इस सम्मेलन के दौरान 20 सितंबर को संत राजिन्दर सिंह महाराज का जन्मदिवस होता है, जिसे दुनियाभर में अंतर्राष्ट्रीय ध्यान-अभ्यास दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। विश्व-विख्यात आध्यात्मिक गुरु संत राजिंदर सिंह महाराज ने कहा कि ध्यान-अभ्यास और आध्यात्मिकता हरेक धर्म का आधार है। जब हम अंतर्राष्ट्रीय ध्यान-अभ्यास दिवस मनाते हैं तो इस मौके पर हमें यह समझना चाहिए कि ध्यान-अभ्यास पिता-परमेश्वर को पाने की कुंजी है। जब हम ध्यान-अभ्यास करते हैं तो हम बाहरी अशांति और अंधकार से दूर हो जाते हैं। हमें चाहिये कि हम जागृत जीवन, प्रकाश और चेतनता की ओर बढ़ें। जब हम अपने भीतर पिता-परमेश्वर के प्रेम और ज्योति से जुड़ते हैं तो हम सदा-सदा की शांति और आनंद प्राप्त करते हैं। पिता-परमेश्वर चाहते हैं कि हम उन्हें जाने, पहचानें और अपने भीतर अनुभव करें। इसके अलावा अपने जीवन के मुख्य उद्देश्य की ओर कदम बढ़ाने के लिए हम रोज़ाना ध्यान टिकाएं।

अध्यात्म और मानव एकता के बारे में अपने विचार पेश किये

कार्यक्रम की शुरूआत में पूजनीय माता रीटा ने गुरुबानी से गुरु अर्जन देव महाराज की वाणी ”ठाकुर तुम शरनाई आया शब्द के साथ हुई।” (हे मेरे सत्गुरु मैं आपकी शरण में आ गया हूं।) शब्द का गायन किया। अन्य धार्मिक और आध्यात्मिक नेताओं ने भी सांझे मंच पर अध्यात्म और मानव एकता के बारे में अपने विचार पेश किये। महामंडलेश्वर डॉ. स्वामी प्रेमानंद महाराज ने ध्यान-अभ्यास की परिवर्तनकारी शक्ति के बारे में बताया जबकि महामंडलेश्वर स्वामी देवेन्द्रानंद गिरि महाराज ने संत राजिन्दर सिंह महाराज को आध्यात्मिकता का “कोहिनूर” कहा।

अपने आपको आध्यात्मिक रूप से विकसित करना चाहिए

इस अवसर पर डॉ. स्वामी प्रेमानंद महाराज ने कहा कि शांति केवल ध्यान-अभ्यास के माध्यम से ही प्राप्त की जा सकती है। हम सभी अध्यात्म के जिज्ञासु हैं इसलिए हमें अपने आपको आध्यात्मिक रूप से विकसित करना चाहिए। संत राजिन्दर सिंह जी महाराज जैसे संत ऐसी दिव्य-शक्ति हैं जो अपने प्रेम और शिक्षाओं के द्वारा लाखों आत्माओं को शुद्ध करते हैं। सम्मेलन को संबोधित करते हुए महामंडलेश्वर स्वामी देवेन्द्रानंद गिरि महाराज ने कहा कि संत राजिन्दर सिंह  महाराज एक पूर्व वैज्ञानिक हैं जिन्होंने समय की दिशा को बदला है। उनका जीवन और शिक्षाएं प्रभु के प्रेम की खुशबू है, जो दूर-दूर तक फैली हुई है। वे आध्यात्मिकता के “कोहिनूर” हैं।

शिक्षाओं को अपने जीवन में ढालना चाहिए

सम्मेलन में अपने विचार रखते हुए श्री श्री भगवान आचार्य ने एक सच्चे आध्यात्मिक गुरु को खोजने की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि एक सच्चा गुरु हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है। हमें आध्यात्मिकता और जीवन के मुख्य उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए ध्यान-अभ्यास करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि एक पूर्ण गुरु दयालु होता है जो हमें ईश्वर की ओर जाने का रास्ता दिखाता है। विवेक मुनि  महाराज ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि प्रेम, एकता और मानवता के इस सांझे मंच ने कई लोगों को ईश्वर के पास वापिस जाने का रास्ता खोजने में मदद की है। उन्होंने कहा कि हमें अपने जीवन को सही मायनों में बेहतर बनाने के लिए यहां दी जा रही शिक्षाओं को अपने जीवन में ढालना चाहिए।

जीवन को बदलने के लिए ध्यान-अभ्यास की शक्ति को पहचानें

सम्मेलन में यहूदी धर्म से रब्बी इज़ेकिल इज़ाक मालेकर ने अपने विचार रखते हुए कहा कि हम सभी ईश्वर की छवि और उनके गुणों के समान ही बने हैं, इसलिए आध्यात्मिकता के मार्ग पर चलने के लिए हमें अपने जीवन में नैतिक गुणों को अपनाना चाहिए। विदेशी प्रतिनिधियों में कोलंबिया से आए लुईस इन्फैंट और जर्मनी से एंड्रियास माकोव्स्की ने अपने विचार रखते हुए कहा कि निष्काम-सेवा और संतों की दया व कृपा से हमें जीवन के सच्चे उद्देश्य को प्राप्त करने में मदद मिलती है। अंत में सभी आध्यात्मिक प्रमुखों ने एकजुट होकर इस वायदे के साथ सम्मेलन के घोषणा पत्र पारित किया कि सबसे पहले हम संतों के ज्ञान को अपने अंदर ढालें, दूसरा हम अपने जीवन को बदलने के लिए ध्यान-अभ्यास की शक्ति को पहचानें, तीसरा रोज़ाना ध्यान-अभ्यास में समय देकर अंतर्राष्ट्रीय ध्यान-अभ्यास दिवस को वास्तविक रूप में मनाएं और चौथा समस्त मानवता के लिए अपने हृदय में प्रेम, शांति और सद्भावना को बढ़ावा दें।
206 भाई-बहनों ने स्वैच्छिक रूप से रक्तदान किया
सप्ताह भर चलने वाले इस सम्मेलन के दौरान सावन कृपाल रूहानी मिशन ने 13 सितंबर को मुफ्त नेत्र जांच शिविर और मोतियाबिंद ऑपरेशन शिविर का आयोजन किया। इसके अलावा 17 सितंबर को रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया, जिसमें 206 भाई-बहनों ने स्वैच्छिक रूप से रक्तदान किया और 20 सितंबर को जरूरतमंद भाई-बहनों के लिए वस्त्र वितरण शिविर का भी आयोजन किया गया। इस अवसर पर सावन कृपाल रूहानी मिशन ने नई दिल्ली में राज नगर स्थित शांति अवेदना सदन, सफदरजंग अस्पताल के पुनर्वास विभाग, सेव द चाईल्ड स्माईल फाउंडेशन, श्रीनिवास संस्कृतपीठ, बुराड़ी और स्वसंसेवी संस्थाओं व अस्पतालों में दवाईयाँ, सब्जियां, फल व अन्य उपयोगी उपकरणों के अलावा स्टेशनरी का भी मुफ्त वितरण किया गया। 27वें विश्व आध्यात्मिक सम्मेलन के समापन समारोह में भारत के सभी राज्यों और दुनियाभर के विभिन्न देशों से हजारों लोगों ने भाग लिया।