तथाकथित आजादी के “वो पंद्रह दिन”… (शृंखला भाग-9)
15 August 1947 Untold Stories Part 9 | सोडेपुर आश्रम… कलकत्ता के उत्तर में स्थित यह आश्रम वैसे तो शहर के बाहर ही है। यानी कलकत्ता से लगभग आठ-नौ मील की दूरी पर। अत्यंत रमणीय, वृक्षों, पौधों-लताओं से भरापूरा यह सोडेपुर आश्रम, गांधीजी का अत्यधिक पसंदीदा है। जब पिछली बार वे यहां आए थे तब उन्होंने कहा भी था कि, “यह आश्रम मेरे अत्यंत पसंदीदा साबरमती आश्रम की बराबरी करता है।”
आज सुबह से ही इस आश्रम में बड़ी हलचल है। वैसे तो आश्रम के निवासी सुबह जल्दी ही सोकर उठते हैं। लेकिन आज गांधीजी आश्रम में निवास करने आ रहे हैं, इसलिए पिछले सप्ताह से ही इसकी तैयारी चल रही है। स्वच्छता, साफ़-सफाई तो प्रतिदिन नियमित होती ही हैं, परंतु आज कुछ विशेष रूप से हो रही है। क्योंकि बापू यहां आने वाले हैं। विशेषतः सतीश बाबू का उत्साह देखते ही बनता है।
सतीश बाबू यानी सतीशचंद्र दासगुप्ता। सर आचार्य प्रफुल्ल चन्द्र राय द्वारा स्थापित की गई भारत की सबसे पहली केमिकल कंपनी अर्थात ‘बंगाल केमिकल वर्क्स’ में सतीश बाबू की अच्छी खासी नौकरी थी। वे यहां सुपरिन्टेन्डेंट के पद पर कार्यरत थे। चूंकि वे वैज्ञानिक थे इसलिए कई प्रयोग भी करते थे। परंतु उनकी पत्नी हेमप्रभा और वे स्वयं एक बार गांधीजी के संपर्क में आए और उनका जीवन एकदम बदल ही गया।
लगभग छब्बीस-सत्ताईस वर्ष पहले, यानी ठीक से कहा जाए तो सन 1921 में सतीश बाबू ने अपनी अच्छी-खासी नौकरी छोड़ दी और कलकत्ता के बाहरी इलाके में स्थित यह सुंदर सा आश्रम स्थापित किया। आजकल सतीश बाबू और हेमप्रभा दीदी आश्रम में ही रहते हैं। हेमप्रभा दीदी पर गांधीजी का जबरदस्त प्रभाव है। इसीलिए उन्होंने एकदम शुरुआत में ही गांधीजी के आंदोलन को जारी रखने के लिए उनके पास जितने भी सोने के गहने थे गांधीजी को दान कर दिए।
सतीश बाबू को भी इसमें कोई आपत्ति नहीं थी, बल्कि उन्हें तो अपनी पत्नी पर अभिमान था… सतीश बाबू ने इस आश्रम में बहुत सारे प्रयोग किए हैं। मूलतः वे वैज्ञानिक हैं। साथ ही गांधीजी के ‘स्वदेशी’ आंदोलन से बेहद प्रभावित भी हैं। उन्होंने अपने आश्रम में सस्ती और सरल ऑइल प्रेस बनाई है। साथ ही बांस के पल्प से कागज़ बनाने का एक छोटा सा कारखाना भी आश्रम में ही निर्मित किया है।
इस कारखाने से उत्पादित होने वाला कागज़ थोड़ा खुरदुरा होता है, लेकिन उस पर आराम से लिखा जा सकता है और यह कागज़ अच्छा भी दिखता है। इस कागज़ से आश्रम का काम चल जाता है। आश्रम की सारी स्टेशनरी सतीश बाबू के बनाए इसी कागज़ पर छपी है। थोड़ा-बहुत कागज़ बाहर बेचा भी जाता है।
सतीश बाबू यह बात जानते हैं कि गांधीजी इस आश्रम से बहुत प्रेम करते हैं। वर्ष-डेढ़ वर्ष के अंतराल से वे यहां आकर एक-एक माह तक ठहरते हैं। फिर उनसे भेंट करने के लिए बड़े-बड़े नामचीन नेता आश्रम में आते हैं. इस सारी कवायद में, इन महान लोगों के आवागमन से आश्रम का वातावरण पवित्र हो जाता है। सतीश बाबू को स्मरण है कि सात-आठ वर्ष पहले यानी लगभग 1931 में उनकी सुभाष बाबू से भेंट यहीं पर हुई थी।
गांधीजी, सुभाष बाबू और नेहरू बस यही तीनों थे। गांधीजी की इच्छा के विरुद्ध सुभाषचंद्र बोस, त्रिपुरी (जबलपुर) काँग्रेस के अध्यक्ष चुने गए थे। परंतु काँग्रेस के अन्य नेताओं ने उन्हें बहुत दुःख पहूंचाए। इसी समस्या का कोई हल निकालने के लिए यह बैठक आयोजित की थी। काँग्रेस का वह अधिवेशन समाप्त होते ही तत्काल। इस बैठक में समस्या का कोई हल तो निकला नहीं, उलटे सुभाष बाबू ही काँग्रेस छोड़कर निकल गए।
सतीश बाबू गांधीजी के कितने भी भक्त हों, परंतु फिर भी उन्हें इस बात से बहुत दुःख पहूंचा था। बहरहाल, सतीश बाबू ने अपनी इन यादों को झटक दिया, क्योंकि गांधीजी के आने का समय हो चुका था। कलकत्ता में वैसे भी सूर्योदय जरा जल्दी ही होता है। इस कारण सुबह पौने पांच – पांच बजे के आसपास ही बाहर ठीकठाक उजाला हो गया था। बस अब अगले एक घंटे में गांधीजी आश्रम में पधारने वाले थे। उधर दूर दिल्ली में मंदिर मार्ग स्थित हिन्दू महासभा भवन में सुबह से ही हलचल थी। महासभा के अध्यक्ष डॉक्टर ना. भा. खरे कल ही ग्वालियर से दिल्ली पहुंचे थे।
डॉक्टर खरे एक जबरदस्त व्यक्तित्व थे। खरे साहब वैसे तो मूलतः काँग्रेस के थे। 1937 में, मध्य भारत प्रांत के वे पहले काँग्रेसी मुख्यमंत्री थे। लेकिन डॉक्टर खरे, लोकमान्य तिलक की परंपरा से तैयार हुए ‘गरम दल’ गुट के थे। उन्हें काँग्रेस द्वारा सतत मुस्लिम लीग का तुष्टिकरण करना पसंद नहीं था। इसीलिए जब वे इस संदर्भ में सार्वजनिक रूप से अपने विचार रखते थे तो नेहरू और गांधीजी को यह कतई पसंद नहीं आता था। ऐसे में गांधीजी ने डॉक्टर खरे को सेवाग्राम के आश्रम में बुलाया और मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने का आदेश दिया।
यह सुनकर डॉक्टर खरे ने एकदम सहज रूप से गांधीजी से कहा कि, “मेरी वर्तमान मनःस्थिति ठीक नहीं है, इसलिए इस्तीफे का मसौदा आप ही लिख दीजिए।” डॉक्टर खरे इतनी सरलता से त्यागपत्र देने को राजी हो गए, यह सुनकर गांधीजी आनंदित हो गए और तत्काल उन्होंने एक कागज़ पर अपने हाथों से अपनी हस्तलिपि में डॉक्टर खरे का इस्तीफ़ा लिख दिया। वह कागज़ लेकर डॉक्टर खरे शांति से उठे, उस पर हस्ताक्षर नहीं किए और अपनी कार से नागपुर जाने के लिए निकल पड़े। यह देखकर गांधीजी चौंक गए और उनके पीछे से चिल्लाने लगे, “अरे, ये क्या करता है…? कहां जाता है…?”
डॉक्टर खरे वह पत्र लेकर नागपुर आए। गांधीजी के हाथों से लिखा हुआ वह त्यागपत्र उन्होंने नागपुर के सभी अखबारों में प्रकाशित करवा दिया और जनता के सामने यह स्पष्ट कर दिया कि ‘स्वयं गांधीजी किस प्रकार एक मुख्यमंत्री पर दबाव डालकर मुझसे इस्तीफ़ा ले रहे हैं।’ तो, ऐसे चतुर डॉक्टर ना. भा. खरे, आजकल हिन्दू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। उनकी सहायता करने के लिए पंडित मौलीचंद्र शर्मा जैसा जबरदस्त व्यक्तित्व भी है। पंडित शर्मा की पृष्ठभूमि भी काँग्रेसी ही है। 1930 और 1931 में लंदन की गोलमेज कांफ्रेंस में उन्होंने काँग्रेस का प्रतिनिधित्व किया था।
परंतु वे भी काँग्रेस द्वारा मुस्लिम तुष्टिकरण किए जाने के कारण हिन्दू महासभा के निकट आए। आज तो साक्षात तात्याराव सावरकर हिन्दू महासभा भवन में उपस्थित होने जा रहे थे, इसलिए आज सभी के चेहरे प्रसन्नता से एकदम खिले हुए थे। सुबह नाश्ता करके ठीक नौ बजे हिन्दू महासभा के केन्द्रीय समिति की बैठक आरंभ हुई। बैठक में हिन्दू महासभा द्वारा घोषित मुद्दों पर चर्चा शुरू की गई। ‘खंडित हिन्दुस्तान में सभी नागरिकों को पूर्ण अधिकार प्राप्त होंगे, लेकिन प्रस्तावित पाकिस्तान में हिंदुओं की जो और जैसी स्थिति रहेगी, ठीक वैसी ही स्थिति खंडित हिन्दुस्तान में बचे हुए मुसलमानों की रहे’, यह मांग उठाने का तय हुआ।
हिन्दी भाषी प्रांतो में देवनागरी लिपि में हिंदी भाषा में समस्त प्रशासनिक कार्यवाही होगी। अन्य प्रांतों में भले ही पढ़ाई का माध्यम स्थानीय भाषाओं और लिपी में हो, परंतु फिर भी राष्ट्रभाषा हिन्दी को ही प्रशासनिक एवं न्यायिक व्यवस्था में मान्य किया जाए। इसके अलावा ‘अनिवार्य रूप से सभी नागरिकों के लिए सैन्य प्रशिक्षण’ सहित अनेक मांगें हिन्दू महासभा की इस बैठक में रखी गईं। कम से कम खंडित हिन्दुस्तान में तो हिन्दू अपने पूर्ण अभिमान और गर्व के साथ सिर ऊंचा करके रह सके इसी उद्देश्य से ये सारे नेता भिन्न-भिन्न दिशाओं से प्रयास कर रहे थे।
जुम्मे के दूसरे दिन सुबह… यानी आज शनिवार 9 अगस्त की सुबह। बैरिस्टर मोहम्मद अली जिन्ना के लिए यह उनके प्रिय पाकिस्तान में दूसरी सुबह थी। कराची का वह विशाल बंगला, जिन्ना का अस्थायी निवास था। जिन्ना के दिमाग में इस समय असंख्य बातें एक साथ चल रही थीं। नए पाकिस्तान का स्वरूप कैसा होगा, यहां की न्याय-व्यवस्था कैसी होगी, पाकिस्तान का राष्ट्रध्वज कौन सा रहेगा, पाकिस्तान का राष्ट्रगीत क्या होगा…?
इस अंतिम प्रश्न पर आकर जिन्ना एकदम ठहर गए। वास्तव में अन्य सभी बातों पर तो उन्होंने गहराई से विचार किया था, लेकिन पाकिस्तान के राष्ट्रगीत अर्थात ‘कौमी तराना’ पर खास चर्चा नहीं हुई है। अब आधिकारिक रूप से नया पाकिस्तान निर्माण होने में केवल पांच दिन ही बचे हैं। जब जिन्ना, दिल्ली में थे उसी समय उन्होंने कुछ कवियों की रचनाओं पर निशान लगा रखे थे। वह रचनाएं कल अचानक उन्हें याद आईं। उन्हीं कवियों में से एक नाम था, ‘जगन्नाथ आजाद’ का। ये मूलतः लाहौर के पंजाबी हिन्दू हैं, लेकिन उर्दू भाषा पर इनका जबरदस्त प्रभुत्व हैं.
जिन्ना ने सोचा कि, आज़ाद हालांकि काफिर हैं, लेकिन उससे मुझे क्या ? अगर कोई बढ़िया गीत उर्दू में लिखकर दे दें, तो मुझे और क्या चाहिए ? उन्होंने निश्चित किया कि पाकिस्तान का कौमी तराना लिखने के लिए इस आज़ाद नाम के कवि को ही बुलाया जाए. कल दोपहर में ही उन्होंने लाहौर से आजाद को बुलवाने का निमंत्रण दिया है। अभी तक तो उन्हें आ जाना चाहिए था। जिन्ना ने अपने सचिव को आवाज़ दी और पूछा कि, ‘लाहौर से कोई जगन्नाथ आजाद आए हैं क्या ?’ सेक्रेटरी ने बताया कि ‘वे तो सुबह ही आ गए हैं।’
जिन्ना ने कहा कि, ‘उन्हें अंदर भेजो।’ जगन्नाथ आजाद, बमुश्किल तीस वर्ष का युवक था। जिन्ना ने ऐसी कल्पना की थी कि उर्दू में ऐसी गंभीर एवं प्रगल्भ शायरी करने वाला व्यक्ति कोई पचास वर्ष का अधेड़ होगा। जिन्ना ने जगन्नाथ आजाद से बैठने को कहा। उनके हालचाल पूछे और उनसे पूछा कि क्या उनके पास पाकिस्तान का ‘कौमी तराना’ बन सकने लायक कोई बढ़िया गीत है ? जगन्नाथ आजाद के पास उस समय तत्काल कोई गीत तैयार नहीं था, परंतु अपनी कल्पना के अनुसार उन्होंने एक रचना की थी, वही जिन्ना को सुनाने लगे…
ऐ सरजमीं– ए – पाक
जर्रे तेरे हैं आज
सितारों से ताबनाक,
रोशन हैं कहकशां से
कही आज तेरी खाक
तुन्दी– ए –हसदांपे
ग़ालिब हैं तेरा सवाक,
दामन वो सिल गया हैं
जो था मुद्दतों से चाक
ऐ सर जमिनें– ए – पाक…!
‘बस… बस… यही… यही चाहिए था मुझे।’ जिन्ना को यह तराना बेहद पसंद आया। और इस प्रकार एक काफिर द्वारा लिखा गया एक गीत, वतन-ए-पाकिस्तान का ‘कौमी तराना’ बनेगा, यह निश्चित हो गया…
शनिवार 9 अगस्त…
अमृतसर के लिए आज का दिन बेहद तनाव भरा है। अमृतसर शहर और पूरे जिले में मुसलमानों की संख्या अधिक है। सीमावर्ती गांवों से दंगों की ख़बरें लगातार आ रही हैं। इस कारण सिख, हिन्दू और मुसलमान सभी क्रोधित हैं। सिखों ने अपने प्रमुखगुरुद्वारे, स्वर्ण मंदिर में, कट्टर और बहादुर निहंगों का पहरा लगा रखा है। सिख नहीं चाहते कि गुरूद्वारे का पवित्र सरोवर दंगाई मुसलमानों के कारण अपवित्र हो जाए। सुबह लगभग साढ़े ग्यारह-बारह बजे के आसपास अमृतसर रेलवे स्टेशन के तांगा स्टैण्ड को सादे कपड़ों में छिपे दर्जनों पुलिस वालों ने घेर रखा है।
उन्हें यह सूचना मिली है कि मुस्लिम लीग का कट्टर पठान कार्यकर्ता, ‘मोहम्मद सईद’, आज अमृतसर आने वाला है। यह हत्यारा बड़े-बड़े हत्याकांड रचने में उस्ताद हैं। पुलिस ने उसे पकड़ लिया। उसके पास से अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्र, उर्दू में लिखे हुए कुछ पत्र और देसी बम बरामद हुए। अमृतसर में संभावित किसी बड़े हत्याकांड को मूर्तरूप देने आए मोहम्मद सईद की गिरफ्तारी से एक बड़ी घटना टल गई।
उधर दिल्ली में, सर सिरील रेडक्लिफ साहब के बंगले में कोई खास चहल-पहल नहीं हैं। बंगले के तीन-चार कमरों में जो असंख्य कागज़ पसरे पड़े थे, उन्हें विभिन्न संदूकों में भरने का काम चल रहा हैं। सर रेडक्लिफ का अधिकांश कार्य समाप्त हो चुका हैं। भारत और पाकिस्तान की विभाजन रेखा खींची जा चुकी हैं। इस काम में उन्होंने न्याय किया अथवा अन्याय यह उन्हें समझ में नहीं आ रहा हैं। एक पक्ष कहता था कि न्याय हुआ है, जबकि दूसरे पक्ष को वह सरासर अन्याय लग रहा हैं। अलबत्ता सारे आरोपों को झेलते हुए भी अब विभाजन की रेखा तैयार हैं।
वाइसरॉय साहब से आज सुबह ही रेडक्लिफ की चर्चा हुई थी। इस विस्फोटक वातावरण में विभाजन की स्पष्ट रेखा को सार्वजनिक करना एक तरह से आग में घी डालने जैसा ही हैं। ऐसा करने पर दंगे और भी भडकने के आसार हैं और ज्यादा खूनखराबा होगा। फिलहाल इसे यहीं रोकना आवश्यक हैं। इस कारण यह तय किया गया कि स्वतंत्रता दिवस के एक-दो दिन बाद ही विस्तार से विभाजन का संपूर्ण खाका सार्वजनिक किया जाएगा।
इसका अर्थ यह हुआ कि अभी कम से कम आठ-दस दिन रेडक्लिफ साहब का ब्लडप्रेशर स्थिर नहीं रहेगा। दक्षिण के हैदराबाद में अपने विशाल महल में हैदराबाद रियासत के निज़ाम उस्मान अली, अपने दीवान के साथ गंभीर चर्चा में व्यस्त हैं। उन्हें अभी तत्काल एक पत्र जिन्ना को भिजवाना हैं। हैदराबाद रियासत को स्वतंत्र रखने के लिए उन्हें नए बनने वाले पाकिस्तान की मदद चाहिए।
उनके दीवान द्वारा तैयार किए गए पत्र पर निज़ाम साहब ने बड़ी ही लफ्फेबाज उर्दू में अपने हस्ताक्षर किए और अपना एक खास दूत कराची के लिए रवाना किया। अगले एक सप्ताह के भीतर स्वतंत्र होने जा रहे, खंडित भारत के बिलकुल बीचोंबीच, इटली जैसे देश के बराबर क्षेत्रफल वाली एक मुस्लिम रियासत, स्वतंत्र और स्वायत्त रहने के लिए अपने पूरे प्रयास कर रही हैं।
उधर बहुत दूर, पूर्व दिशा में स्थित सिंगापूर में शासकीय कर्मचारियों की छुट्टी हो चुकी हैं। वैसे भी शनिवार को सिंगापुर में शासकीय कार्यालय पूरे दिन के लिए काम नहीं करते। सिंगापूर के ‘मरीना बे’ क्षेत्र में कार्यरत कर्मचारी यूनियन के एक छोटे से कार्यालय में बहुत से शासकीय कर्मचारी एकत्रित हुए हैं। ये सभी कर्मचारी भारतीय हैं। ये कर्मचारी सिंगापुर सरकार के मुख्य सचिव को देने के लिए एक पत्र तैयार कर रहे हैं।
15 अगस्त को शुक्रवार हैं। ज़ाहिर है कि शासकीय एवं अन्य कार्यालयों में अवकाश नहीं हैं। 15 अगस्त को इन सभी भारतीय कर्मचारियों का प्रिय देश स्वतंत्र होने जा रहा हैं। इस अवसर पर ये सभी भारतीय उस खास दिन को एक उत्सव के रूप में मनाना चाहते हैं। और इसीलिए इन सभी को 15 अगस्त के दिन छुट्टी चाहिए हैं। इसी अवकाश को प्राप्त करने के लिए एक पत्र तैयार हो रहा हैं, जो सिंगापुर सरकार को दिया जाएगा।
अमृतसर शहर और समूचे जिले में जबरदस्त तनाव का वातावरण हैं, क्योंकि यह खबर चारों तरफ फ़ैल चुकी हैं कि पुलिस ने मोहम्मद सईद को गिरफ्तार कर लिया है। इस घटनाक्रम से मुसलमान बेहद चिढ़ गए और दोपहर से ही उन्होंने सिखों एवं हिंदुओं की दुकानों-मकानों पर पत्थरबाजी शुरू कर दी थी। शाम होते-होते ही यह दंगा संपूर्ण जिले में फ़ैल गया हैं मुस्लिम लीग के नेशनल गार्ड दंगा और खूनखराबा करने में सबसे आगे हैं।
अमृतसर के पास स्थित जबलफाद गांव में उन्होंने 100 से अधिक हिंदुओं और सिखों का नरसंहार किया। लगभग साठ-सत्तर जवान लड़कियों को वे उठा ले गए। धापाईगांव पर तो लगभग एक हजार मुसलमानों ने इकठ्ठे होकर हमला किया। हालांकि सिखों की तरफ से इसका प्रतिकार भी हुआ, गाजीपुर गांव में 14 मुसलमान भी मारे गए। दंगों की भीषणता और क्रूरता को देखते हुए मेजर जनरल टी. डब्ल्यू. रीस के नेतृत्व में जो सैनिक तैनात किये गए थे, उनसे भी मुस्लिम नेशनल गार्ड के सैनिक भिड़ गए. शाम के उस धुंधलके भरे वातावरण में लगभग एक घंटे तक मुस्लिम लीग के नेशनल गार्ड और सेना के बीच युद्ध जैसे हालात थे।
उधर कुछ ही मील दूरी पर स्थित पंजाब की राजधानी लाहौर में यह खबर टेलीग्राम के माध्यम से पहुंचाई गई। पंजाब के गवर्नर सर ईवौन मेरेडिथ जेनकिंस ने यह टेलीग्राम बड़े ध्यान से पढ़ा और तत्काल उन्होंने अपने सचिव को बुलाया तथा संपूर्ण पंजाब प्रांत में ‘प्रेस सेंसरशिप’ का आदेश जारी कर दिया। इसका अर्थ यह था कि, शनिवार 9 अगस्त को अमृतसर और इसके आसपास हुए भीषण रक्तपात की ख़बरें अगले दिन पंजाब के किसी भी समाचार पत्र में नहीं दिखने वाली थीं।
उधर पूर्व दिशा में कलकत्ता के पास स्थित सोडेपुर आश्रम में गांधीजी की सायं प्रार्थना की तैयारी चल रही हैं।
प्रार्थना से पहले डॉक्टर सुनील बसु ने गांधीजी के स्वास्थ्य का पूर्ण परीक्षण किया। सन 1939 में जब गांधीजी सोडेपुर आश्रम में एक माह तक ठहरे थे, तब डॉक्टर सुनील बाबू ने ही गांधीजी का स्वास्थ्य चेक-अप किया था। स्वास्थ्य परीक्षण होने के बाद सुनील बाबू ने कहा कि पिछले आठ वर्षों में गांधीजी का स्वास्थ्य एकदम स्थिर बना हुआ है। उसमे कोई खास फर्क नहीं पड़ा है। 1939 के एक माह के प्रवास के दौरान उनका वजन 112 से 114 पाउंड के बीच था और आज भी वे 113 पाउंड के ही हैं। उनका ह्रदय और फेफड़े एकदम व्यवस्थित काम कर रहे हैं।
उनकी नाड़ी की गति 68 है। संक्षेप में कहा जाए तो उनका स्वास्थ्य अच्छा है। आज शाम को गांधीजी की प्रार्थना कलकत्ता की परिस्थिति पर केंद्रित थी। उन्होंने कहा कि ‘हिन्दू और मुसलमान दोनों ही पागलों जैसा व्यवहार कर रहे हैं।’ उन्होंने आगे कहा कि “मुस्लिम लीग मंत्रिमंडल ने क्या किया अथवा क्यों किया इसकी व्याख्या में मैं नहीं जाना चाहता। परंतु 15 अगस्त से खंडित बंगाल का कामकाज संभालने वाले काँग्रेस के मुख्यमंत्री डॉक्टर प्रफुल्ल चन्द्र घोष अपना काम कैसे करते हैं, इस पर मेरा पूरा ध्यान रहेगा।
मैं यह सुनिश्चित करूंगा और ध्यान रखूंगा कि काँग्रेस के शासन में मुसलमानों पर अत्याचार नहीं होना चाहिए। मैं नोआखाली भी जाऊंगा, परंतु कलकत्ता में शांति स्थापित होने के बाद!” इधर दिल्ली में शाम होते ही रामलीला मैदान पर जबरदस्त भीड़ एकत्रित हुई हैं। स्वतंत्रता सप्ताह आज से आरंभ होने जा रहा हैं। आज शनिवार है और अब अगले शुक्रवार को हम एक तथाकथित स्वतंत्र राष्ट्र बनने जा रहे हैं। काँग्रेस के बड़े-बड़े नेताओं के आज होने वाले भाषण यह एक बड़ा आकर्षण हैं। इस सभा में नेहरू, पटेल जैसे बड़े नेता बोलने वाले हैं।
यह कार्यक्रम दिल्ली प्रदेश काँग्रेस कमेटी ने आयोजित किया हैं। इस कारण शुरुआत में दिल्ली प्रांत के स्थानीय नेताओं ने बोलना शुरू किया। परंतु जैसे ही सभा स्थल पर नेहरू और पटेल का आगमन हुआ, भीड़ का माहौल एकदम बदल गया। सभी में उत्साह का संचार हो गया। लोग जोरशोर से स्वतः स्फूर्त नारे लगाने लगे। जब सरदार पटेल बोल रहे थे, तब संपूर्ण रामलीला मैदान शांति से उन्हें सुन रहा था। पटेल ने विभाजन की विवशता लोगों को समझाने का प्रयास किया। परंतु जनता को उनके तर्क ना तो पसंद आ रहे थे और ना ही गले उतर रहे थे।
इसलिए पटेल के भाषण को अधिक उत्साही प्रतिक्रिया नहीं मिली। लगभग ऐसा ही नेहरू के भाषण के बाद भी हुआ। भीड़ निरुत्साहित सी लगने लगी। दिल्ली इस समय विस्थापितों की राजधानी बन चुकी हैं. बड़े पैमाने पर घरबार, मकान-दुकान, संपत्ति खोकर लुटे-पिटे हिन्दू शरणार्थी दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं। वे नेहरू-पटेल के मुंह से कोई ठोस बात सुनना चाहते थे। परंतु वैसा नहीं हुआ। नेहरू अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर बोलते रहे।
उन्होंने गर्जना की, कि ‘अब संपूर्ण एशिया से विदेशी शक्तियों को पूरी तरह खदेड़ दिया जाएगा।’ परंतु मैदान में एकत्रित जनता पर इसका कोई असर नहीं हुआ। स्वतंत्रता सप्ताह के पहले ही दिन सभा की शुरुआत में जैसा उत्साह और प्रसन्नता दिखाई दे रही थी वैसी सभा के अंत होते-होते दिखाई नहीं दी…
देश के मध्य में स्थित नागपुर के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के महाल कार्यालय में शनिवार की रात को संघ के वरिष्ठ प्रचारक और पदाधिकारी बैठे हैं। उनके सामने अखंड भारत का नक्शा रखा हुआ हैं। इस विभाजन की एकदम सटीक रेखा कौन सी हो सकती है, तथा उस विभाजन रेखा के उस पार बचे हुए हिन्दू-सिखों को कैसे बचाया जा सकता है, इस पर गहन मंथन चल रहा हैं…
क्रमशः… भाग-10 तथाकथित स्वतंत्रता के अब छह दिन एवं उसके साथ ही विभाजन को अब केवल पाँच दिन ही बाकी बची थे…!!!
संदर्भ पुस्तक :- वो पंद्रह दिन, लेखक – प्रशांत पोळ
यह भी पढ़ें : 15 August 1947 Untold Stories Part 7 : 7 अगस्त 1947, गुरुवार के दिन अमृतसर से आरंभ हुई गांधीजी की ट्रेन यात्रा…
यह भी पढ़ें : 15 August 1947 Untold Stories Part 6 : 6 अगस्त 1947 बुधवार का दिन, महात्मा गांधी की लाहौर यात्रा…
यह भी पढ़ें : 15 August 1947 Untold Stories Part 5 : 5 अगस्त 1947, मंगलवार का वो दिन जब गांधी शरणार्थी शिविर में जाना चाहते थे…
यह भी पढ़ें : 15 August 1947 Untold Stories Part 4 : तथाकथित आजादी के वो पंद्रह दिन…
यह भी पढ़ें : 15 August 1947 Untold Story : तथाकथित आजादी के वो पंद्रह दिन…