15 August 1947 Untold Stories Part 7 : 7 अगस्त 1947, गुरुवार  के दिन अमृतसर से आरंभ हुई गांधीजी की ट्रेन यात्रा…

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15 August 1947 Untold Stories Part 7 : 7 अगस्त 1947, गुरुवार  के दिन अमृतसर से आरंभ हुई गांधीजी की ट्रेन यात्रा...
15 August 1947 Untold Stories Part 7 : 7 अगस्त 1947, गुरुवार  के दिन अमृतसर से आरंभ हुई गांधीजी की ट्रेन यात्रा...

तथाकथित आजादी के “वो पंद्रह दिन”… (शृंखला भाग-7)

 15 August 1947 Untold Stories Part 7 | हिरेन वी. गजेरा | देश भर के अनेक समाचार पत्रों में कल गांधीजी द्वारा भारत के राष्ट्रध्वज के बारे में लाहौर में दिए गए वक्तव्य को अच्छी खासी प्रसिद्धि मिली है। मुंबई के ‘टाईम्स’ में इस बारे में विशेष समाचार है, जबकि दिल्ली के ‘हिन्दुस्तान’ में भी इसे पहले पृष्ठ पर प्रकाशित किया गया है। कलकत्ता के ‘स्टेट्समैन’ अखबार में भी यह खबर है, साथ ही मद्रास के ‘द हिन्दू’ ने भी इस प्रकाशित किया है।

“भारत के राष्ट्रध्वज में यदि चरखा नहीं होगा, तो मैं उस ध्वज को प्रणाम नहीं करूंगा”, ऐसा क्षोभ प्रकट करने जैसा वक्तव्य गांधीजी के व्यक्तित्त्व एवं छवि से मेल नहीं खाता था। अभी भारत के अनेक समाचार पत्रों में यह खबर प्रकाशित नहीं हो पाई, क्योंकि उन तक यह खबर पहुंची ही नहीं। लेकिन पंजाब के पंजाबी, हिन्दी एवं उर्दू अखबारों ने इस वक्तव्य को भरपूर उछाला है।

समूचे देश में सुबह-सुबह लोग गांधीजी के इसी बयान पर चर्चाएं कर रहे हैं। लाहौर से प्रकाशित होने वाला दैनिक ‘मिलाप’, सुबह-सुबह लोगों के हाथों में हैं। वहां के हिंदुओं का यह प्रमुख समाचार पत्र हैं। इससे पहले हिन्दू महासभा का मुखपत्र ‘भारत माता’ अधिकांश हिंदुओं के घर में आता था। परंतु कुछ माह पहले उनके कैलीग्राफी कलाकार ने गांधीजी के सबंध में कुछ गलत सूचना बेहद अपमानजनक शब्दों में प्रकाशित कर दी थी।

उसके बाद वह दैनिक अखबार बंद ही हो गया। परंतु मिलाप, वन्दे मातरम्, पारस, प्रताप जैसे हिन्दी में प्रकाशित होने वाले अनेक दैनिक समाचार पत्रों ने सिंध प्रांत के हैदराबाद में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विशाल आमसभा का खासा वर्णन प्रकाशित किया है। सरसंघचालक गुरूजी के भाषण को संक्षेप में प्रकाशित भी किया हैं। डॉन नामक अंग्रेजी दैनिक अखबार ने भी गुरूजी का भाषण प्रकाशित किया है।

रावलपिंडी के एक घर में आज, यानी गुरूवार, सुबह ‘पाकिस्तानी हिन्दू महासभा’ के नेताओं की एक संक्षिप्त बैठक संपन्न हो रही हैं। विभाजन तो अब निश्चित ही है और पिण्डी सहित अधिकांश पंजाब और पूरा का पूरा सिंध प्रांत पाकिस्तान में जाने वाला है, यह स्पष्ट हो चुका हैं। पाकिस्तान के नेशनल गार्ड द्वारा हिंदुओं एवं उनकी संपत्ति पर लगातार हमले बढ़ते ही जा रहे हैं। ऐसी परिस्थिति में पाकिस्तान में बचे रह जाने वाले हिंदुओं के लिए कुछ न कुछ करना आवश्यक हो चला हैं।

इसीलिए ‘पाकिस्तान हिन्दू महासभा’ के नेताओं ने अपना एक वक्तव्य सभी अखबारों में प्रकाशन हेतु जारी किया हैं। इस वक्तव्य में उन्होंने पाकिस्तान में रहने वाले हिंदुओं से आग्रह किया हैं कि ‘उन्हें मुस्लिम लीग के ध्वज का आदर एवं सम्मान करना चाहिए।’ इसी के साथ पाकिस्तान हिन्दू महासभा ने पश्चिम पंजाब के मुस्लिम लीग के असेंब्ली पार्टी का नेता चुने जाने के अवसर पर इफ्तिखार हुसैन खान ‘मेमदोन’ को बधाई दी हैं।

इसी प्रकार ईस्ट बंगाल मुस्लिम लीग असेम्बली पार्टी का नेता चुने जाने पर ख्वाज़ा निजामुद्दीन का भी सार्वजनिक अभिनंदन किया। पाकिस्तान तो अब बनकर रहेगा, बल्कि बन ही चुका है। यह बात वहां के हिंदुओं को अच्छी तरह समझ में आ चुकी हैं…

हैदराबाद एवं सिंध प्रांत…

रात को हल्की सी बारिश हुई थी, इस कारण वातावरण में गर्मी थोड़ी कम हो गई है। गुरूजी तड़के ही जाग चुके हैं। जिस प्रभात शाखा में गुरूजी को ले जाया गया है वहां पर स्वयंसेवकों की भरपूर उपस्थिति है। अच्छा बड़ा सा मैदान है। उसमें छः गण खेल रहे हैं। आज साक्षात गुरूजी अपनी शाखा में पधारे हैं, इसे देखते हुए स्वयंसेवकों के चेहरों पर प्रसन्नता छलक रही है। लेकिन साथ ही इस बात की मायूसी भी दिखाई दे रही है कि जल्दी ही पूर्वजों की यह पवित्र भूमि हमारे लिए पराई होने जा रही है।

इसे छोड़कर सभी को अब भारत के किसी अज्ञात प्रदेश में निवास करने जाना है। शाखा पूर्ण होने के पश्चात एक संक्षिप्त सी अनौपचारिक बैठक रखी गई हैं। इसमें सभी स्वयंसेवकों के लिए अल्पाहार की व्यवस्था हैं। इस तनावपूर्ण वातावरण को गुरूजी कुछ हलका-फुलका बनाने का प्रयास कर रहे हैं। स्वयंसेवकों में चैतन्य निर्माण करने का उनका प्रयास हैं। हैदराबाद एवं सिंध प्रांत के आसपास वाले इलाकों से हिंदुओं को सुरक्षित भारत कैसे ले जाया जाए, इस बाबत योजना तैयार हो रही है।

दुर्भाग्य से इस समूची कवायद में भारत सरकार की रत्ती भर भी मदद नहीं मिल रही हैं। इन विस्थापित होने जा रहे हिंदुओं को भारत में कहां रखना है, इनकी बस्तियां कहां बसानी हैं इस सबंध में भारत की वर्तमान और आगामी सरकार की ओर से कोई दिशा निर्देश नहीं मिल रहे हैं। क्योंकि मूलतः जनसंख्या की अदलाबदली की अवधारणा ही काँग्रेस को नामंजूर हैं। गांधीजी तो पूर्वी पंजाब और सिंध प्रांत के हिंदुओं को वहीं बसे रहने की सलाह दे रहे हैं।

वहां रहने वाले हिंदुओं को गांधीजी की सलाह यही हैं कि मुस्लिम गुण्डों द्वारा आक्रमण किए जाने की स्थिति में उन्हें निर्भयता के साथ बलिदान हो जाना चाहिए! अब काँग्रेस और भारत सरकार द्वारा पीठ फेरने परिस्थिति में हिंदुओं की रक्षा करना और उन्हें सुरक्षित रूप से भारत लेकर आना बेहद धैर्य, साहस और खतरे का काम हैं। लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने यह चुनौती स्वीकार की है।

अल्पाहार होते ही लगभग सुबह नौ बजे के आसपास गुरूजी वापस कराची के लिए निकलने वाले हैं। गुरूजी को विदाई देते समय हैदराबाद और आसपास के गाँवों से आए हुए स्वयंसेवकों की आंखों में पानी है। उनका अन्तःकरण भारी हो चुका है। किसी को नहीं मालूम कि अब दोबारा गुरूजी की भेंट कब होगी। गुरूजी भी इस बात को अच्छी तरह जान रहे हैं कि सिंध प्रांत का यह उनका अंतिम दौरा है।

ऐसा लग रहा है मानो समय थम गया हो। पूरा वातावरण भारी हो गया है। लेकिन वापसी भी आवश्यक है। गुरूजी के सामने दूसरे ओर भी कई काम पड़े हैं। आबाजी थत्ते, राजपाल जी इत्यादि के साथ गुरूजी का यह काफिला कराची की दिशा में धीरे-धीरे निकल पड़ता हैं।

लगभग ठीक इसी समय अर्थात सुदूर रूस के मॉस्को में सुबह के छः बज रहे थे, तब तत्कालीन सोवियत संघ के लिए नियुक्त की गईं स्वतंत्र भारत की पहली राजदूत श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित का विमान मॉस्को के अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरा। अगस्त का महीना मॉस्को निवासियों के लिए भले ही गर्मी का मौसम रहा हो, लेकिन विजयलक्ष्मी पंडित को वातावरण में ठण्डक महसूस हो रही थी।

हवाईअड्डे पर उनके स्वागत के लिए स्वतंत्र भारत का होने वाला अशोक चक्र से सज्जित राष्ट्रध्वज फहराया गया। संभवतः भारत से बाहर अधिकारिक रूप से भारत का राष्ट्रध्वज फहराने की यह पहली ही घटना थी। यह विचार दिमाग में आते ही विजयलक्ष्मी पंडित हल्के से मुस्कुराईं। सैंतालीस वर्षीया विजयलक्ष्मी भले ही रिश्ते में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की बहन हों, लेकिन यही उनकी एकमात्र पहचान नहीं थी।

उन्होंने स्वयं भी अनेक बार स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया और कारावास की सजा भुगती। वे स्वयं भी कुशाग्र बुद्धि की मालिक हैं। चूंकि विजयलक्ष्मी जवाहरलाल नेहरू से लगभग ग्यारह वर्ष छोटी थीं, इसलिए उन्हें नेहरू का सान्निध्य अधिक नहीं मिला। जब उनकी आयु इक्कीस वर्ष थी, उसी समय उन्होंने अपनी मर्जी से काठियावाड़ रियासत के सुप्रसिद्ध वकील रंजीत पंडित के साथ विवाह किया था।

इस लिए स्वतंत्र भारत की तरफ से रूस के राजदूत पद पर उनकी नियुक्ति करते समय केवल ‘जवाहरलाल नेहरू की बहन’ यही एकमात्र योग्यता नहीं थी, अपितु उनका स्वयं का कर्तृत्त्व भी था। रूसी अधिकारियों ने इस भारतीय राजदूत का अर्थात जवाहरलाल नेहरू की बहन का गर्मजोशी एवं आत्मीयता से स्वागत किया। रूस के उनके कार्यकाल का आरंभ तो बहुत ही सुंदर हुआ…

दोपहर एक बजे के आसपास दिल्ली से कायदे-आज़म जिन्ना को लेकर वाइसरॉय साहब का विशेष डकोटा विमान कराची के मौरिपुर हवाई अड्डे पर उतरा। विमान से जिन्ना, उनकी बहन फातिमा और उनके तीन सहयोगी उतरे। पाकिस्तान के निर्माता के रूप में ‘प्रस्तावित पाकिस्तान’ की इस पहली यात्रा के अवसर पर मुस्लिम लीग के कार्यकर्ताओं में कोई ख़ास उत्सुकता नहीं थी।

इसीलिए जिन्ना का स्वागत करने के लिए बहुत ही थोड़े से कार्यकर्ता हवाई अड्डे पर आए थे। इन कार्यकर्ताओं ने पाकिस्तान और जिन्ना जिंदाबाद जैसे कुछ नारे जरूर लगाए, परंतु उनकी आवाज़ में जोश लगभग नहीं के बराबर था। कायदे-आज़म जिन्ना के लिए आजीवन उनके सपनों के देश अर्थात पाकिस्तान में पहली बार आना बड़ा ही निरुत्साहित करने वाला रहा।

मुंबई….

आकाश में बादल छाए हुए हैं, बारिश के कारण वातावरण प्रसन्न हैं। बोरी बंदर स्थित मुंबई महानगरपालिका भवन के सामने एक छोटा सा समारोह आयोजित किया गया हैं। भवन के सामने ‘बेस्ट’ (BEST) की दो बसें खड़ी हैं और एक छोटा सा पण्डाल लगाया गया हैं।

‘बॉम्बे इलेक्ट्रिक सप्लाय एंड ट्रांसपोर्ट’ के नाम से सन 1874, से मुंबई निवासियों की सेवा में कार्यरत कंपनी अब भारत की तथाकथित स्वतंत्रता से सिर्फ एक सप्ताह पहले मुंबई महानगरपालिका के अधीन होने जा रही हैं। यह समारोह इसी संदर्भ में हैं। ‘बेस्ट’ के पास कुल 275 बसें हैं और अब ये सभी बसें 7 अगस्त 1947 से मुंबई महानगरपालिका के स्वामित्व में हस्तांतरित हो रही हैं। मुंबई के इतिहास में एक नया अध्याय शुरू होने जा रहा हैं….

वारंगल….

काकतीय राजवंश की राजधानी, एक हजार स्तंभों वाले मंदिर के लिए प्रसिद्ध स्थान और निज़ामशाही रियासत का एक बड़ा नगर। सुबह के ग्यारह बजे हैं, अगस्त महीने में भी सूर्य आग उगल रहा है। दूर-दूर तक बादलों के कोई चिन्ह नहीं हैं। हवा भी नहीं चल रही। पेड़-पौधों के पत्ते निस्तब्ध और निष्प्राण जैसे स्थिर हैं। ऐसे माहौल में वारंगल शहर के मुख्य चौराहे पर लगभग सन्नाटा ही है।

ऐसे माहौल में अचानक इस चौराहे पर मिलने वाले चारों मार्गों से कांग्रेस के झंडे हाथों में लेकर नारे लगाते हुए लगभग सौ-सवासौ कार्यकर्ता चौराहे पर इकठ्ठे हुए। “निजामशाही को भारतीय संघ राज्य में विलीन करो” ऐसे नारे जोरशोर के साथ लगाए जाने लगे। कांग्रेस कार्यकर्ताओं की इस भीड़ का नेतृत्व कर रहे थे वारंगल जिला कांग्रेस समिति के अध्यक्ष कोलिपाका किशनराव गारू। हैदराबाद राज्य कांग्रेस कमेटी के आदेशानुसार इन कार्यकर्ताओं ने भारत में विलीन होने के लिए निज़ाम के खिलाफ सत्याग्रह शुरू किया है।

हैदराबाद राज्य कांग्रेस के अध्यक्ष स्वामी रामतीर्थ ने जनता से अपील की है कि वे सत्याग्रह में शामिल हों। वे स्वयं भी काचिगुड़ा इलाके में सैकड़ों कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ नारेबाजी और प्रदर्शन में शामिल थे। समूचे भारत में स्वतंत्रता की आहट सुनाई दे रही है। और इधर निज़ाम की रियासत का यह विशाल भूभाग अभी भी गुलामी के अंधेरे में ही है। रज़ाकारों के अमानुषिक अत्याचार को सहन कर रहा है…!!!

कलकत्ता की ‘आनंद बाज़ार पत्रिका’, ‘दैनिक बसुमती’, ‘स्टेट्समैन’ जैसे सभी दैनिक समाचार पत्रों के पहले पन्ने पर आज का प्रमुख समाचार है कि चक्रवर्ती राजगोपालाचारी अर्थात ‘राजाजी’ को बंगाल का गवर्नर नियुक्त किया गया है। राजाजी यह विभाजित बंगाल के अर्थात ‘पश्चिम बंगाल’ के पहले राज्यपाल बनने जा रहे हैं।

राजाजी काँग्रेस पार्टी के विराट व्यक्तित्व हैं। पूरे मद्रास प्रांत को अकेले दम पर चलाने वाले। लेकिन हाल ही में संपन्न हुए प्रांतीय चुनावों में उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा। इसके अलावा राजाजी की पहचान यह ‘विभाजन के विचार को अति-सक्रियता से आगे बढ़ाने वाले’ की थी। इस कारण बंगाल के लोगों ने इस निर्णय को पसंद नहीं किया। अपनी लायब्रेरी में बैठे यह खबर पढ़ते हुए शरदचंद्र बोस का दिमाग घूम गया।

उन्होंने तत्काल एक वक्तव्य तैयार किया और सभी दैनिक समाचार पत्रों में प्रकाशन हेतु भेज दिया। शरद बाबू ने लिखा कि, राजगोपालाचारी की नियुक्ति वास्तव में बंगाल का अपमान है। जिस व्यक्ति को मद्रास ने नकार दिया, चुनावों में परास्त कर दिया, उसी को हमारे सिर पर लाकर बैठाना कौन सी बुद्धिमत्ता है…?

इधर दिल्ली में भारतीय सेना का मुख्यालय। एक अनुशासित वातावरण। कलफ लगे कड़क और चकाचक गणवेश में सैनिकों की चहलपहल जारी है। थोड़ा अंदर जाने पर वातावरण में परिवर्तन स्पष्ट दीखता है। अधिक गंभीर, अधिक अनुशासित, अधिक सम्मानयुक्त।

यहां पर भारत के कमाण्डर-इन-चीफ का कार्यालय है। दरवाजे के पास ही पीतल की बड़ी सी प्लेट पर रौबदार अक्षरों में नाम लिखा हुआ है -Sir Claude John Auchinleck. इस दफ्तर के बड़े से अहाते में उतनी ही बड़ी महागनी टेबल के पीछे शानदार से कुर्सी पर विराजित हैं, सर ऑचिनलेक। उनके टेबल पर रखा हुआ छोटा सा यूनियन जैक सहसा हमारा ध्यान आकर्षित कर ही लेता है। सर ऑचिनलेक के सामने एक बहुत ही महत्वपूर्ण पत्र रखा हुआ है।

प्रस्तावित स्वतंत्रता दिवस के दिन राजनैतिक स्वरूप के सभी भारतीय कैदियों को मुक्त कर देने बाबत यह नोटशीट है। इस पत्र में ‘सभी भारतीय’, इस शब्द पर सर ऑचिनलेक की निगाह ठहर जाती है। इसका अर्थ यह कि, सुभाषचंद्र बोस की ‘ईन्डियन नेशनल आर्मी’ की तरफ से लड़े हुए सैनिक भी ? हां, नोटशीट के अनुसार तो इसका यही अर्थ निकलता है। ऑचिनलेक के दिमाग की नस फडकने लगती है।

सुभाषचंद्र बोस के सहयोगियों को छोड़ दें ? अंग्रेजों के सामने एक वास्तविक चुनौती पेश करने वाले ‘आज़ाद हिन्द सेनानियों’ को रिहा कर दें ? नहीं… कदापि नहीं। कम से कम 15 अगस्त तक तो ब्रिटिश सत्ता है ही, तब तक तो मैं उन्हें नहीं छोड़ने वाला। फिर उन्होंने अपने स्टेनो को बुलाया और धीमी किन्तु कठोर आवाज में उस पत्र का जवाब लिखवाने लगे…’अन्य सभी राजनैतिक बंदियों को रिहा करने में भारतीय सेना को कोई आपत्ति नहीं है।

परंतू सुभाषचंद्र बोस के नेतृत्व में बनी ‘इन्डियन नेशनल आर्मी’ के सैनिकों को छोड़ने पर हमारा प्रखर विरोध है।’ इस प्रकार सुभाष बाबू के तमाम सहयोगी, जिन्होंने भारत को स्वतंत्र करने के लिए अपने प्राणों की बाजी लगा दी थी, उस ‘आजाद हिन्द सेना’ के शूरवीर सैनिक कम से कम 15 अगस्त तक तो नहीं छूटेंगे, यह निश्चित हो चुका था।

उधर मद्रास सरकार ने दोपहर को एक सर्कुलर जारी कर दिया, जिसके अनुसार यह घोषणा की गई कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाले मद्रास प्रांत के सभी लोगों को पांच-पांच एकड़ जमीन मुफ्त में दी जाएगी। 15 और 16 अगस्त को सार्वजनिक अवकाश की घोषणा भी इसी के साथ की गई।

तथाकथित स्वतंत्रता के सूर्य को उगने में अब केवल एक सप्ताह ही बचा हैं….

दोपहर के चार बजे हैं, मद्रास में स्थानीय सिनेमाघरों के मैनेजरों की एक बैठक चल रही है। स्वतंत्रता के संदर्भ में ही यह बैठक आयोजित की गई हैं। केसीआर रेड्डी सबसे वरिष्ठ थियेटर मालिक हैं। उन्होंने बैठक में प्रस्ताव रखा कि, ’15 अगस्त से सभी सिनेमाघरों में अंग्रेजों का अर्थात ब्रिटिश सरकार का राष्ट्रगीत नहीं बजाया जाएगा। उसके स्थान पर कोई भी भारतीय राष्ट्रीय विचारों का गीत बजाया जाएगा। यह प्रस्ताव सर्वानुमति एवं तालियों की गडगडाहट के साथ स्वीकार कर लिया जाता है।

उधर कराची की एक बड़ी सी हवेली में श्रीमती सुचेता कृपलानी लगभग सौ-सवासौ सिंधी महिलाओं की एक बैठक ले रही हैं। ये सभी सिंधी महिलाएं इतने असुरक्षित वातावरण के बावजूद इस बंगले पर एकत्रित हुई हैं। सुचेता कृपलानी के पति आचार्य जे. बी. कृपलानी काँग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। काँग्रेस द्वारा विभाजन का निर्णय स्वीकार किए जाने के कारण सीमावर्ती इलाकों में जनमत बेहद क्रोधित है। अतः अपने गृह प्रांत में काँग्रेस के खिलाफ उबल रहे इस वातावरण को शांत करने के लिए दोनों पति-पत्नी के प्रयत्न जारी हैं।

वे सभी सिंधी औरतें सुचेता कृपलानी से शिकायत कर रही हैं कि वे कितनी असुरक्षित हैं। सिंधी महिलाओं पर मुसलमानों के नृशंस अत्याचार के बारे में बता रही हैं। लेकिन इन महिलाओं के कथनों से सुचेता कृपलानी सहमत नहीं दिखतीं। वे आवेश में आकर अपना पक्ष प्रस्तुत करती हैं कि, “मैं पंजाब और नोआखाली में सरेआम घूमती हूं, मेरी तरफ तो कोई भी मुस्लिम गुण्डा, तिरछी निगाह से देखने की भी हिम्मत नहीं करता।

क्योंकि मैं ना तो भडकीला मेकअप करती हूँ और ना ही लिपस्टिक लगाती हूं। आप महिलाएँ लो-नेक का ब्लाउज पहनती हैं, पारदर्शी साडियां पहनती हैं। इसीलिए मुस्लिम गुंडों का ध्यान आपकी तरफ जाता है। और मान लीजिए किसी गुण्डे ने आप पर आक्रमण कर भी दिया, तो आपको राजपूत बहनों का आदर्श अपने सामने रखना चाहिए ‘जौहर’ करना चाहिए… (Indian Daily Mail – 7 अगस्त का समाचार पहला पृष्ठ) उस बड़ी सी हवेली में बैठी, अपने प्राणों की बाजी लगाकर किसी तरह एक-एक दिन गिनने वाली उन घबराई हुई सिंधी महिलाओं को सुचेता कृपलानी के इस वक्तव्य पर क्या कहें समझ नहीं आ रहा था, वे अक्षरशः अवाक रह गई हैं।

एक राष्ट्रीय अध्यक्ष की पत्नी ये हमसे क्या कह रही हैं ? ऐसे घोर संकट के समय क्या हम औरतें भडकीला मेकअप करेंगी ? लो-कट ब्लाउज़ पहनेंगी ? और क्या केवल इसलिए मुसलमान गुण्डे हमारी तरफ आकृष्ट होते हैं ? और मान लो यदि वे हमारे साथ बलात्कार करने का प्रयास करें, तो क्या हमें राजपूत महिलाओं के समान जौहर कर लेना चाहिए…? इस समय केवल काँग्रेस के नेता ही नहीं, बल्कि उनकी पत्नियां भी जमीनी वास्तविकता और मुस्लिम मानसिकता से कोसों दूर हैं…

दिल्ली का वही सैन्य मुख्यालय…

दूसरी मंजिल पर एक बड़ा सा अहाता।  इसमें गोरखा रेजिमेंट के सैन्य मुख्यालय से सबंधित छोटा सा कार्यालय। ‘गोरखा राइफल्स’ के नाम से समूचे विश्व में अपनी बहादुरी प्रदर्शित करने वाले शूरवीर सैनिकों की टुकड़ी। यहां एक बड़े से टेबल के पास इस रेजिमेंट के चार अधिकारी गहन विचार-विमर्श कर रहे हैं। चूंकि भारतीय सैनिकों का भी बंटवारा होने जा रहा हैं, इसलिए अब गोरखा रेजिमेंट को पाकिस्तान में जाना चाहिए या नहीं, यह प्रमुख मुद्दा हैं।

इससे पहले अंग्रेज अधिकारियों के अनुरोध पर गोरखा रेजिमेंट की कुछ टुकडियां सिंगापुर को दे दी गई थीं। कुछ गोरखा सैनिक ब्रुनेई भी भेज दिए गए। इन सारी बातों के लिए नेपाल सरकार की भी सहमति थी। परंतु एक भी गोरखा सैनिक पाकिस्तान जाने को तैयार नहीं हैं। अंततः गोरखा रेजिमेंट के उन चारों वरिष्ठ अधिकारियों ने एकमत होकर एक नोटशीट तैयार की और उसे कमाण्डर-इन-चीफ को सौंपा, कि गोरखा रेजिमेंट की एक भी बटालियन पाकिस्तान की सेना में शामिल होने के लिए तैयार नहीं है, हम भारत में ही रहेंगे।

लखनऊ…

स्टेट असेम्बली में मुख्यमंत्री का कार्यालय। मजबूत देहयष्टि के मालिक और घनी-मोटी मूँछों वाले गोविन्द वल्लभ पंत अपने जिंदादिल स्वभाव के अनुसार हमेशा की तरह अपने सहयोगियों के साथ हंसी-मजाक सहित चर्चा कर रहे हैं। कैलाशनाथ काटजू, रफ़ी अहमद किदवई और पीएल शर्मा जैसे मंत्री उनके आसपास बैठे हैं। चर्चा का विषय है कि ब्रिटिश सत्ता द्वारा अपभ्रंश किए गए शहरों के, नदियों के नाम बदलकर उन्हें मूल हिन्दू नाम से पहचाना जाए।

अंग्रेजों ने गंगा को ‘गैंजेस’ और यमुना नदी को ‘जुम्ना’ बना डाला था। पवित्र मथुरा नगरी का नाम अंग्रेजों ने ‘मुत्रा (Muttra) कर दिया था। इन सभी की पहचान इनके मूल नाम से ही होनी चाहिए। इस संदर्भ में मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में इस समिति ने एक आदेश निकाला एवं तत्काल प्रभाव से नदियों, गांवों, शहरों के बदले हुए मूल नामों से ही लिखा जाए ऐसा घोषित कर दिया।

17, यॉर्क रोड यानि जवाहरलाल नेहरू का वर्तमान निवास अर्थात तथाकथित स्वतंत्र भारत का वर्तमान मुख्य प्रशासनिक केन्द्र। अब शाम के छः बज चुके हैं और नेहरू विदेश मंत्री की भूमिका में आ गए हैं। पाकिस्तान को अस्तित्त्व में आने के लिए केवल एक सप्ताह ही बाकी रह गया है। इस पाकिस्तान में भारत का भी एक राजदूत होना अति-आवश्यक है। अभी तो बहुत से ऐसे काम हैं जिन्हें भारत-पाकिस्तान को आपसी सामंजस्य से पूरे करना है।

हिंदुओं-सिखों के विस्थापन एवं उनकी समस्याओं का प्रमुख प्रश्न है उसका भी हल निकालना है, इसलिए पाकिस्तान में तो भारत का राजदूत चाहिए ही। ऐसे में नेहरू के समक्ष श्री प्रकाश का एक नाम उभरा। श्री प्रकाश प्रयाग अर्थात नेहरू के इलाहाबाद से ही थे। इन्होंने अनेक बार स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया। ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन में वे दो वर्षों तक जेल में रहे। श्री प्रकाश एक विनम्र एवं स्पष्ट वक्ता व्यक्ति हैं।

कैम्ब्रिज में उच्च शिक्षा प्राप्त इस सत्तावन वर्षीय व्यक्ति की प्रशासनिक क्षमता बेहतरीन है। अर्थात नवनिर्मित पाकिस्तान में भारत के पहले हाई कमिश्नर के रूप में श्री प्रकाश की नियुक्ति तय हुई। 11 अगस्त को कायदे आज़म जिन्ना पाकिस्तान की संसद में अपना पहला भाषण देने वाले हैं। उससे पहले ही श्री प्रकाश को कराची जाकर रिपोर्ट करना आवश्यक हैं। अगले दो वर्ष तक पाकिस्तान से विस्थापित होने वाले लाखों हिंदु-सिखों का मुद्दा… पाकिस्तान का हठी, दबंग और उच्छृंखल स्वभाव… कश्मीर को हड़प करने संबंधी पाकिस्तानी चालबाजियां… ऐसे कई कठिन प्रश्नों-समस्याओं का सामना श्री प्रकाश को करना पड़ेगा, ऐसा उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था।

गुरुवार 7 अगस्त…

रात गहराती जा रही है। अमृतसर से आरंभ हुई गांधीजी की ट्रेन यात्रा जारी है। एक ही स्थान पर बैठे-बैठे गांधीजी का शरीर अकड़ गया है। उन्हें पैदल चलना बहुत पसंद हैं। ऐसे व्यक्ति को लगातार चौबीस घंटे एक ही स्थान पर बैठाए रखना वास्तव में उनके लिए सजा के समान ही हैं। परंतु ट्रेन में भी गांधीजी का पठन-पाठन एवं चिंतन-मनन चालू ही है। इस समय ट्रेन संयुक्त प्रांत से गुज़र रही है। जहां-जहां भी ट्रेन रुकती है, रेलवे स्टेशन पर काँग्रेस कार्यकर्ता और जनता उन्हें मिलने जरूर आती है।

अधिकांश लोगों के मन में बस एक ही सवाल है, ‘बापू, ये हिन्दू-मुस्लिम दंगे कब थमेंगे ?’
इधर ट्रेन में उनके प्यारे बापू बेचैन हैं। उन्होंने वाह के शरणार्थी शिविर और लाहौर शहर में जो भी देखा और सुना, वह बहुत ही भयानक हैं। लेकिन फिर भी उनका दिल नहीं मान रहा हैं कि ‘क्या मुसलमानों के हमलों के कारण अपना स्थान, अपनी जमीन, अपने मकान छोड़कर भारत भाग जाना चाहिए ?

फिर तो मैं जिन सिद्धांतों की बात करता हूं वे सब झूठे ही सिद्ध हो जाएंगे। ‘कल सुबह गांधीजी पटना में उतरेंगे। अंधेरे को चीरती उनकी ट्रेन आगे बढ़ी जा रही है और ट्रेन की खिड़की से गांधीजी दूर क्षितिज की ओर देख रहे हैं। एक अस्वस्थ भारत का भविष्य देखने का उनका व्यक्तिगत मनस्वी प्रयास है…

क्रमशः… भाग-8 तथाकथित स्वतंत्रता एवं उसके साथ ही विभाजन को अब केवल आठ दिन ही बाकी बची थे…!!!

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