15 August 1947 Untold Stories Part 13 : 13 अगस्त 1947, बुधवार… जब अधिकृत रूप से पाकिस्तान बना…

0
38
15 August 1947 Untold Stories Part 13 : 13 अगस्त 1947, बुधवार... जब अधिकृत रूप से पाकिस्तान बना...
15 August 1947 Untold Stories Part 13 : 13 अगस्त 1947, बुधवार... जब अधिकृत रूप से पाकिस्तान बना...

तथाकथित आजादी के “वो पंद्रह दिन”… (श्रृंखला भाग-13)

15 August 1947 Untold Stories Part 13

मुंबई… जुहू हवाई अड्डा टाटा एयर सर्विसेज के काउंटर पर आठ-दस महिलाएं खडी है। सभी अनुशासित हैं और उनके चेहरों पर जबरदस्त आत्मविश्वास दिखाई दे रहा है। यह सभी ‘राष्ट्रीय सेविका समिति’ की सेविकाएं हैं। इनकी प्रमुख संचालिका यानी लक्ष्मीबाई केलकर अर्थात ‘मावशीजी’, कराची जाने वाली हैं। कराची में जारी अराजकता एवं अव्यवस्था के माहौल में हैदराबाद (सिंध) की एक सेविका ने उनको एक पत्र भेजा है।

उस सेविका का नाम है जेठी देवानी। देवानी परिवार सिंध का एक साधारण परिवार है, जो संघ से जुड़ा हुआ है। जेठी देवानी का पत्र आने के बाद मावशीजी से रहा नहीं गया। सिंध क्षेत्र की सेविकाओं की मदद के लिए तत्काल वहां जाने का निश्चय उन्होंने किया। राष्ट्रीय सेविका समिति का गठन हुए केवल ग्यारह वर्ष ही हुए हैं। परंतु समिति का काम तेजी से आगे बढ़ रहा हैं। यहां तक कि सिंध, पंजाब और बंगाल जैसे सीमावर्ती प्रांतों में भी राष्ट्र सेविका समिति का नाम और काम पहुंच चुका हैं। कल कराची में कायदे आज़म जिन्ना पाकिस्तान के राष्ट्र प्रमुख की शपथ लेने वाले हैं।

वहां पर कल चारों तरफ स्वतंत्रता दिवस के समारोह मनाए जा रहे होंगे। परंतु फिर भी वहां जाना आवश्यक है। इसीलिए मावशीजी अपनी एक अन्य सहयोगी वेणुताई कलमकर के साथ कराची जाने के लिए हवाई अड्डे पर उपस्थित हैं। चालीस-पचास यात्रियों की क्षमता वाले उस छोटे से विमान में नौ गज वाली महाराष्ट्रीयन साड़ी पहने हुए केवल यही दोनों महिलाएं हैं। यात्रियों में हिन्दू अधिक नहीं हैं।

काँग्रेस में समाजवादी विचारधारा जीवित रखने वाले जयप्रकाश नारायण भी इस विमान में हैं। पूना के एक सज्जन हैं जिनका उपनाम देव है और उन्हें मौसीजी ने पहचान लिया। परंतु ये दोनों ही लोग अहमदाबाद में उतर गए। यहां से चढ़ने वाले भी अधिकांशतः मुसलमान ही हैं और ऐसे यात्रियों के बीच में केवल ये दोनों महिलाएं!

विमान में कुछ उत्साही यात्री, ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ का नारा लगा रहे हैं। एक-दो यात्रियों ने ‘लड़ के लिया है पाकिस्तान, हँस के लेंगे हिन्दुस्तान’ जैसे नारे भी लगाए। परंतु मावशीजी का आत्मविश्वास स्थिर बना रहा, उनका निर्णय पक्का था। उनके चेहरे पर एक कठोरता बनी हुई थी। यह देखकर धीरे-धीरे पाकिस्तान के नारे लगाने वाले चुपचाप बैठ गए…

मुल्तान- लाहौर रेल ट्रैक। नॉर्थ-वेस्टर्न स्टेट रेलवे…

यह लाहौर से पहले का स्टेशन है रियाज़ाबाद। सुबह के ग्यारह बजे हैं। बारिश बिलकुल नहीं है, आकाश एकदम साफ़ है। स्टेशन पर लगभग सौ-दो सौ मुसलमान हाथों में तलवार और चाकू लेकर खड़े हैं। अमृतसर और आगे अंबाला जाने वाली यह ट्रेन धीरे-धीरे स्टेशन में प्रवेश कर रही है। पूरे प्लेटफार्म पर इन हथियारबंद मुसलमानों के अलावा एक भी आदमी नहीं है। स्टेशन मास्टर अपने केबिन का दरवाजा बंद करके अंदर छिपा हुआ है।

उसका असिस्टेंट रेलवे के सिस्टम पर मोर्स कोड का उपयोग करते हुए अपने मुख्यालय में यह समाचार भेजने का प्रयास कर रहा है। परंतु उसके भी हाथ कांप रहे हैं। इसी कारण कड़-कट, कड़-कट की आवाज़ के साथ ‘डिड-डैश’ की भाषा में भेजा जाने वाला टेलीग्राफिक संदेश बार-बार गलत हो रहा है।

गाड़ी प्लेटफार्म पर आने तक भयानक शांति छाई हुई है। ट्रेन धीरे-धीरे अंदर आती है। एक जोरदार सीटी बजती है और एक ही क्षण में ‘दीन-दीन’, अल्ला-हू-अकबर’ के गगनभेदी नारों के साथ ‘मारो-काटो-सालों को’ ऐसी आवाजें सुनाई देने लगती हैं। इस ट्रेन से शरणार्थी के रूप में मुल्तान और पश्चिम पंजाब के गांवों से अपना सब कुछ गंवाकर आए हुए हिंदुओं और सिखों को डिब्बों से बाहर खींचकर निकाला जाता है। धारदार तलवारों से वहीं के वही उनकी गर्दन उड़ा दी जाती है।

अपने ऑफिस की खिड़की के दरारों से झांकता हुआ भयभीत स्टेशन मास्टर यह सब देख रहा है, लेकिन कुछ कर नहीं सकता। जाने-अनजाने वह लाशें गिनने लगता है। अभी तक मुसलमानों ने पहले ही झटके में 21 सिखों और हिंदुओं को मार डाला है। आक्रोश व्यक्त करती हुई उनकी महिलाओं और लड़कियों को मुस्लिम गुण्डे अपने कन्धों पर उठाकर भागते हुए विजयी उल्लास व्यक्त कर रहे हैं। पता नहीं और कितने हिन्दू-सिखों को मारा गया होगा। वह अपने असिस्टेंट से कहता है कि ‘यह सारी जानकारी टेलीग्राफ के माध्यम से मुख्यालय भेजो।

परंतु पंजाब में सेंसरशिप लागू होने के कारण ऐसी न जाने कितनी ख़बरों को दबा दिया गया है!

कराची…

कल पाकिस्तान के स्वतंत्र होने से पहले भारत, पाकिस्तान और ब्रिटिश अधिकारियों की एक गंभीर बैठक चल रही है… भारत और पाकिस्तान के प्रशासन में सत्ता का विभाजन सरलता से हो सके इस हेतु यह बैठक बुलाई गई है। व्यापार, संचार, इन्फ्रास्ट्रक्चर, रेलवे, कस्टम इत्यादि अनेक मुद्दों पर इस बैठक में चर्चा हो रही है।

अंत में यह निश्चय किया गया कि फिलहाल संयुक्त भारत (यानी वर्तमान अखंड भारत) की जो नीतियां हैं, वही नीतियां और नियम मार्च 1948 तक दोनों देशों में लागू रहेंगे। मार्च के बाद दोनों देश अपनी-अपनी नीतियां और अपना प्रशासन लागू करेंगे। पोस्ट और टेलीग्राफ का नेटवर्क भी मार्च तक दोनों देशों का एक ही रहेगा। दोनों ही देशों के नागरिक एक दूसरे के देश में बिना किसी अड़चन के आ-जा सकेंगे।

दिल्ली…

नेहरू सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती है, भारत छोड़कर जाने वाले ब्रिटिश अधिकारियों के स्थान पर भारतीय अधिकारियों की नियुक्ति करना। अखंड भारत के मुख्य न्यायाधीश सर विलियम पेट्रिक स्पेंज कल सेवानिवृत्त हो जाएंगे। अपना पद छोड़ देंगे। इनके स्थान पर सर्वाधिक उपयुक्त व्यक्ति कौन होगा ? कुछ नाम सामने आए हैं, परंतु सारे नामों के बीच अंततः सूरत-गुजरात के सर हरिलाल जयकिशनदास कानिया के नाम पर मुहर लगाई गई।

सर कानिया, सूरत के मध्यमवर्गीय परिवार से आए हुए वकील हैं। वे मुंबई उच्च न्यायालय में 1930 से न्यायाधीश हैं। 57 वर्षीय सर कानिया आजकल सर्वोच्च न्यायालय के सहयोगी न्यायाधीश हैं। अभी जो मुख्य न्यायाधीश हैं यानी सर विलियम पेट्रिक स्पेंज़, इन्हें भारत-पाकिस्तान ‘आर्बिट्रेशन ट्रिब्यूनल’ का चेयरमैन नियुक्त किया गया है।

पेरिस…

आज़ाद हिन्द सेना की ओर से लड़ने वाले अनेक भारतीय फिलहाल जर्मनी के ब्रिटिश और फ्रेंच इलाकों में एकत्रित हैं। परंतु अब ये सभी सैनिक और अधिकारी भारतीय पासपोर्ट के लिए आवेदन कर सकते हैं और मुक्त रूप से कहीं भी आ-जा सकते हैं। पेरिस में स्थित ‘इन्डियन मिलिट्री मिशन’ ने आज यह घोषणा की। इन कैदियों में डॉक्टर हरबंस लाल भी शामिल हैं। लाल साहब, नेताजी की ‘आज़ाद हिन्द सेना’ में लेफ्टिनेंट रहे। अन्य कैदियों के साथ ही डॉक्टर लाल भी भारत वापस आने वाले हैं।

151, बेलियाघाट, कलकत्ता… हैदरी मंजिल…

दोपहर के तीन बजे हैं। सोडेपुर आश्रम से गांधीजी पुरानी सी शेवरलेट गाड़ी से हैदरी मंज़िल पहुंचे। उनके साथ मनु, महादेव भाई और दो अन्य कार्यकर्ता हैं। उन्हीं के पीछे वाली कार से ऐसे ही चार-पांच कार्यकर्ता आए हैं। हाल ही में बारिश हुई है। चारों तरफ कीचड़ फैला हुआ है। हैदरी मंज़िल के सामने बहुत से लोग खड़े हैं।

उनमें से अधिकांश हिन्दू ही हैं। गांधीजी की कार के रुकते ही गांधीजी का नाम लेकर जबरदस्त नारेबाजी शुरू हो गई। परंतु इस बार यह नारेबाजी उनके स्वागत के लिए नहीं अपितु उन्हें दी जाने वाली गालियां और श्राप हैं। गाड़ी से उतरने के बाद ऐसी नारेबाजी सुनते ही गांधीजी की मुद्रा कुछ त्रस्त हो गई, हालांकि उन्होंने अपना चेहरा निर्विकार रखने का सफल प्रयास किया।

नारेबाजी जारी है, – गांधीजी चले जाओ‘, ‘नोआखाली में जाकर हिंदुओं की रक्षा करो‘, ‘पहले हिंदुओं को जीवनदान, फिर मुसलमानों को स्थान‘, ‘हिंदुओं के गद्दार गांधी, चले जाओ… और इन नारों के साथ ही पत्थरों और बोतलों की बारिश भी हो रही है। गांधीजी एक क्षण ठहरते हैं। शांति के साथ पीछे घूमते हैं। हाथ में स्थित शाल ठीक करते हुए वे भीड़ को हाथ से शांत रहने का निवेदन करते हैं। भीड़ थोड़ी शांत भी हो जाती है।

गांधीजी धीमे स्वरों में बोलने लगते हैं, “मैं यहां हिंदुओं और मुसलमानों की एक समान सेवा करने आया हूं। मैं यहां पर आपके संरक्षण में ही रहूंगा। यदि आपकी इच्छा हो तो आप सीधे मुझ पर हमला कर सकते हैं। आपके साथ यहीं रहते हुए इस बेलियाघाट में रहकर मैं नोआखाली के हिंदुओंके प्राण भी बचा रहा हूं। मुसलमान नेताओं ने मेरे सामने ऐसी शपथ ली है। अब आप सभी हिंदुओं से बिनती है कि आप लोग भी कलकत्ता के मुस्लिम बंधुओं का बाल भी बांका नहीं होने दें।”

उस अवाक खड़ी भीड़ को वैसा ही छोड़कर गांधीजी शांति से हैदरी मंज़िल में प्रवेश करते हैं! परंतु भीड़ की यह शांति अगले कुछ ही मिनट रही। क्योंकि शहीद सुहरावर्दी का आगमन होते ही वहां इकठ्ठा भीड़ पुनः क्रोधित हो गई। उनके गुस्से का विस्फोट ही हो गया। पांच हजार हिंदुओं की हत्या का खलनायक सुहरावर्दी, सामने से जाते हुए देखकर कोई भी हिन्दू भला शांत कैसे रह सकता है ? भीड़ ने इमारत को चारों तरफ से घेर लिया है और अब उनमें से कुछ युवा लगातार हैदरी मंज़िल पर पथराव जारी रखे हुए हैं।

अखंड हिन्दुस्तान में आदर का पात्र बन चुके महात्मा गांधी की ऐसी क्रूर हंसी उड़ाने वाला और इस प्रकार की अपमानास्पद निर्भस्तना होने वाली यह पहली ही घटना थी…

सुबह साढ़े दस बजे मुंबई के जुहू हवाई अड्डे से निकला हुआ मौसीजी का विमान अहमदाबाद में रुकते हुए लगभग साढ़े चार घंटे की यात्रा के बाद कराची के द्रीघ रोड स्थित हवाईअड्डे पर दोपहर तीन बजे पहुंचा। हवाईअड्डे पर मावशीजी के जमाई, चोलकर स्वयं आए हुए हैं। चोलकर याने मावशीजी की बेटी वत्सला के पति। वत्सला को पढ़ने का शौक था इसलिए मावशीजी ने घर पर ही शिक्षक बुलाकर उसकी पढ़ाई पूर्ण की।

वत्सला ने भी राष्ट्रीय सेविका समिति के कामों में काफी हाथ बंटाया। कराची की शाखा का विस्तार करने में वत्सला का बड़ा योगदान हैं। हवाईअड्डे पर पंद्रह-बीस सेविकाएं भी मावशीजी को लेने आई हुई हैं। सुरक्षा की दृष्टि से संघ के कुछ स्वयंसेवक भी साथ में उपस्थित हैं। एक सेविका की कार में बैठकर यह काफिला मावशीजी के साथ ही बाहर निकला…

जिस समय ‘राष्ट्रीय सेविका समिति’ की प्रमुख लक्ष्मीबाई केलकर का विमान कराची के द्रीघ रोड स्थित हवाईअड्डे पर उतर रहा था लगभग उसी समय अखंड भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन को लेकर उनका खास डकोटा विमान कराची के मौरीपुर स्थित रॉयल एयरफोर्स के हवाईअड्डे पर उतर रहा था। विमान से लॉर्ड माउंटबेटन और उनकी पत्नी लेडी एडविना माउंटबेटन बाहर निकले।

यहां पर उनके स्वागत हेतु नए बनने वाले पाकिस्तान के सर्वोच्च अधिकारी मौजूद थे। हवाईअड्डे पर जिन्ना नहीं थे। माउंटबेटन दंपति को बताया गया कि ‘कायदे आज़म जिन्ना और उनकी बहन फातिमा उनके सरकारी निवासस्थान पर आपका इंतज़ार कर रहे हैं।‘ जिन्ना का कराची स्थित सरकारी निवास स्थान अर्थात सिंध के गवर्नर का बंगला। विक्टोरियन शैली में निर्मित इस विशाल बंगले के बडे से दीवानखाने में आज जबर्दस्त सजावट की गई है। पूरा बंगला हॉलीवुड की फिल्मों के सेट जैसा ही प्रतीत हो रहा है। ऐसे शाही अंदाज में सजाए गए हॉल में कायदे आज़म जिन्ना और फातिमा ने माउंटबेटन दंपति का वैसे ही ‘शाही’ अंदाज़ में स्वागत किया…

लाहौर…

            दोपहर चार बजे…टेम्पल रोड पर रहने वाला मुजाहिद ताजदीन। यह रोड पर नान और कुलचे बेचने का काम करने वाला एक सीधा-सादा और गरीब व्यक्ति है। परंतु आज सुबह से ही उसके दिमाग में पता नहीं क्या घुसा हुआ है। ताजदीन के लगभग सभी दोस्त ‘मुस्लिम नेशनल गार्ड’ के कार्यकर्ता हैं।

उन सभी ने और खासकर पुलिस थाना के मुस्लिम हवलदार ने भी आज सुबह उसे बताया कि ‘टेम्पल रोड पर सिखों का जो सबसे बड़ा गुरुद्वारा है उस पर हमला करके उसे नेस्तानाबूद करना है। यह अपने धर्म का ही काम है।’ ताजदीन को नान और कुलचे के अलावा कुछ पता नहीं था, परंतु उसके दिमाग में इन बातों ने गहरा असर किया। उसने दोपहर को ही अपनी दुकान बंद कर दी और गुरूद्वारे पर हमला करने के लिए वह अपने मित्रों के साथ जा खड़ा हुआ।

लाहौर के टेम्पल रोड स्थित मोझंग का गुरुद्वारा ‘छेवीनपातशाही’ सिखों के लिए अत्यधिक पवित्र गुरुद्वारा है। स्वयं महाराजा रणजीत सिंह ने इस गुरूद्वारे का निर्माण किया है। सन् 1619 में गुरु हरगोविंद सिंह जी दीवान चंदू के साथ लाहौर आए थे। उस समय उन्होंने जिस स्थान पर निवास किया था उसी स्थान पर इस गुरूद्वारे का निर्माण किया गया है।

गुरूद्वारे में प्रतिदिन की नियमित अरदास, लंगर वगैरा व्यवस्थित रूप से जारी हैं। गुरूद्वारे की रक्षा के लिए निहंग संत अपनी तलवारें लिए हुए चौकस हैं। परंतु उनकी कुल संख्या केवल चार है। अधिकांश सिख व्यवसायी हैं और सुबह का यह समय व्यवसाय के लिए महत्त्वपूर्ण है। इसलिए लगभग सारे सिख रात को ही यहां इकठ्ठा होंगे। अभी तो गुरूद्वारे में बहुत ही कम लोग मौजूद हैं।

ठीक चार बजे मुस्लिम नेशनल गार्ड ने इस गुरूद्वारे पर हमला किया। ताजदीन सबसे आगे था। सबसे पहला पेट्रोल बम उसी ने फेंका। पचास-साठ मुस्लिम गुण्डों का जो की तलवारों से लैस हैं, सामना भला केवल चार निहंग संत कितनी देर तक कर पाते ? परंतु फिर भी उन्होंने असामान्य वीरता दिखाते हुए तीन-चार मुसलमानों को काट डाला, सात-आठ को ज़ख़्मी भी किया। परंतु अंततः चारों निहंग अपने ही खून के तालाब में गिर पड़े। महाराजा रंजीतसिंह द्वारा निर्माण किया हुआ यह ‘छेवीनपातशाही’ गुरुद्वारा निर्दोष सिखों के रक्त से भर गया था।

पेशावर…

‘नॉर्थ-वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस’ (NWFP) की राजधानी। इस पेशावर में अपनी गढी के विशाल मकान में सत्तावन वर्ष के ‘खान अब्दुल गफ्फार खान’ अकेले और विषण्ण विमनस्क अवस्था में बैठे हैं…

खान अब्दुल गफ्फार खान। एक प्रभावशाली नाम, जैसा नाम वैसा ही भारी भरकम उनका व्यक्तित्व भी है। समूचे नॉर्थ-वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस के सर्वमान्य नेता। खान साहब गांधीजी के परम अनुयायी हैं। इसीलिए इन्हें ‘सरहदी गांधी’ की उपाधि भी मिली हुई है। परंतु वे अपने पठानों में ‘बादशाह खान’ के नाम से अधिक प्रसिद्ध हैं। इस पहाड़ी इलाके के सभी अनपढ़ आदिवासियों को गफ्फार खान ने कांग्रेस के झण्डे तले इकठ्ठा किया था।

इसीलिए 1945 के प्रांतीय चुनावों में मुस्लिम बहुल होने के बावजूद इस प्रांत में कांग्रेस को सत्ता मिली। मुस्लिम लीग को कोई खास सीटें नहीं मिलीं। अब जबकि यह स्पष्ट हो गया कि भारत का विभाजन होने वाला है, तब पठानों के सामने सवाल खड़ा हुआ कि, वे किस तरफ जाएं ? पठानों का और पाकिस्तान के पंजाबियों का आपस में बैर बहुत पुराना है। इस कारण इस प्रांत के सभी पठानों की इच्छा थी कि वे भारत में विलीन हों।

प्रांतीय असेम्बली में बहुमत भी इसी पक्ष में था। केवल भौगोलिक निकटता का ही सवाल था, परंतु तर्क यह दिया गया कि पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच भी तो हजारों मील की दूरी है। दूसरी बात यह भी थी कि यदि कश्मीर की रियासत भारत के साथ मिल जाती है तो ये प्रश्न भी हल हो जाएगा, क्योंकि गिलगिट के दक्षिण वाला इलाका नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर से सटा हुआ ही है। परंतु इस सबके बीच नेहरू ने अडंगा लगा दिया।

उनका कहना था कि ‘हमें वहां सर्वमत(रेफरेंडम) से फैसला करना चाहिए।’ कांग्रेस की कार्यकारिणी में भी यह मुद्दा गरमाया और सरदार पटेल ने इस कथित सार्वमत का जमकर विरोध किया। सरदार पटेल का कहना था कि ‘प्रांतीय विधानसभाएं यह तय करेंगी कि उन्हें किस देश में शामिल होना है। देश के अन्य भागों में भी हमने यही किया है। इसीलिए जहां-जहां मुस्लिम लीग का बहुमत है वे सभी प्रांत पाकिस्तान में शामिल होने जा रहे हैं।

इसी न्याय के आधार पर नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर राज्य को भारत में विलीन होना ही चाहिए। क्योंकि वहां कांग्रेस का बहुमत हैं।’ परंतु नेहरू अपनी बात पर अड़े रहे। 14 में से केवल एक मत पा कर लोकतंत्र की धजीया उड़ा कर गांधी की जिद की बदोलत प्रधानमंत्री बने नेहरू ने कहा कि मैं लोकतंत्रवादी हूं। इसलिए वहां के निवासियों को जो लगता है उन्हें वैसा निर्णय लेने की छूट मिलनी चाहिए।’

बादशाह खान को अखबारों के माध्यम से ही यह पता चला कि उनके प्रांत में सर्वमत का निर्णय किया गया है। जिस व्यक्ति ने इस बेहद कठिन माहौल और मुस्लिम बहुल इलाका होने के बावजूद पूरा प्रदेश कांग्रेसी बना डाला था उन्हें नेहरू ने ऐसे अत्यंत महत्त्वपूर्ण प्रश्न पर चर्चा करने लायक भी नहीं समझा। इसीलिए यह समाचार मिलते ही खान अब्दुल गफ्फार खान ने दुखी स्वरों में कहा कि, “कांग्रेस ने यह प्रांत थाली में सजाकर मुस्लिम लीग को दे दिया है!”

इस प्रांत में जनमत (सर्वमत–रेफेरेंडम) की प्रक्रिया 20 जुलाई 1947 से आरंभ हुई, जो लगभग दस दिनों तक चली। सर्वमत से पहले और सर्वमत जारी रहने के दौरान मुस्लिम लीग ने बड़े पैमाने पर धार्मिक भावनाओं को भड़काया। यह देखकर कांग्रेस ने इस सर्वमत का बहिष्कार कर दिया। खुदाई-खिदमतगार यानी बादशाह खान इस बात की चिंता कर रहे थे कि ‘नेहरू की गलतियों की हमें कितनी और कैसी सजा भुगतनी पड़ेगी।’

यह मतदान केवल और केवल एक धोखा भर था। जिन छह आदिवासी जमातों पर खान अब्दुल गफ्फार खान का गहरा प्रभाव था उन्हें मतदान में भाग लेने से रोक दिया गया। पैंतीस लाख जनता में से केवल पांच लाख बहत्तर हजार लोगों को ही मतदान करने लायक समझा गया। सवत, दीर, अंब और चित्रालइन तहसीलों में मतदान हुआ ही नहीं। जितने पात्र मतदाता थे उनमें से केवल 51% मतदान हुआ।

पाकिस्तान में विलीन होने का समर्थन करने वालों के लिए हरे डिब्बे रखे गए थे, जबकि भारत में विलीन होने वालों को मतदान हेतु लाल डिब्बे थे। पाकिस्तान की मतपेटी में 2,89,244 वोट पड़े और कांग्रेस के बहिष्कार के बावजूद भारत में विलीनीकरण के पक्ष में 2874 वोट पड़े। अर्थात पैंतीस लाख लोगों में से केवल तीन लाख के आसपास वोट पाकिस्तान के पक्ष में पड़े थे। बादशाह खान के मन में इसी बात को लेकर नाराजी थी।

नेहरू और गांधीजी ने हम लोगों को लावारिस छोड़ दिया और वह भी इन पाकिस्तानी भेड़ियों के सामने। ऐसी भावना लगातार उनके मन में घर कर रही थी। इसीलिए पेशावर, कोहट, बानू, स्वात इलाकों से उनके कार्यकर्ता उनसे पूछ रहे थे कि ‘क्या हमें भारत में विस्थापित हो जाना चाहिए’ ? तब सीमांत गांधी के पास इन प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं था। वे क्या जवाब दें यह समझ नहीं पा रहे थे…

कराची…

कायदे आजम जिन्ना का निवास स्थान, रात के नौ बजे हैं… लॉर्ड माउंटबेटन के स्वागत हेतु पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर जिन्ना ने ‘शाही भोजन’ का आयोजन रखा है। कुछ देशों के राजदूत और राजनयिक भी स्वयं वहां उपस्थित हैं। पानी की तरह महंगी शराब बहाई जा रही है। लेकिन इस पार्टी में पार्टी के मेज़बान यानी खुद कायदे आज़म जिन्ना सभी लोगों से थोड़े दूर-दूर हैं, थोड़े बहुत अलिप्त भी।

औपचारिक भोज आरंभ होने से पहले मेज़बान के संक्षिप्त भाषण की बारी आई। जिन्ना ने अपनी एक आंख वाला चश्मा नाक पर ठीक किया और वे पढ़ने लगे। ‘योर एक्सीलेंसी, योर हायनेस, हिज़ मैजेस्टी सम्राट के दीर्घ एवं स्वस्थ जीवन के लिए आपके समक्ष यह जाम पेश करते हुए मुझे बेहद खुशी हो रही है। योर एक्सीलेंसी, लॉर्ड माउंटबैटन, तीन जून की बैठक में निहित सभी सैद्धांतिक एवं नीतिगत बातों को आपने जिस संपूर्णता और कुशलता से लागू किया है, हम उसकी तारीफ़ करते हैं। पाकिस्तान और हिन्दुस्तान आपके योगदान को कभी भुला नहीं सकेंगे।’

क्या विडंबना है कि… इस्लाम के लिए, इस्लामिक सिद्धांतों के लिए, जो राष्ट्र कल जन्म लेने जा रहा है उस राष्ट्र का निर्माण शराब की नदियां बहाकर किया जा रहा है…

ऑल इंडिया रेडियो, लाहौर केंद्र… रात के 11 बजकर 50 मिनट हुए हैं। रेडियो पर उदघोषणा की जाती है, “यह ऑल इंडिया रेडियो का लाहौर केन्द्र है। आप चंद मिनट हमारे अगले ऐलान का इंतज़ार कीजिए।” फिर अगले दस मिनट कुछ वाद्यवृन्द बजता हैं।

ठीक 12 बजकर 1 मिनट पर…

अस्सलाम आलेकुम। पाकिस्तान की ब्रॉडकास्टिंग सर्विस में आपका स्वागत है। हम लाहौर से बोल रहे हैं। कुबुल-ए-सुबह-ए-आज़ादी…”

और इस प्रकार, पाकिस्तान के जन्म की अधिकृत घोषणा हो गई…

क्रमशः… भाग-14 पाकिस्तान बनने की अधिकृत घोषणा के बाद, अब आने वाली सुबह अखंडित भारत का नक्शा आकार लेगा खंडित भारत का…!!!

संदर्भ पुस्तक :- वे पंद्रह दिन, लेखक – प्रशांत पोळ

यह भी पढ़ें : 15 August 1947 Untold Stories Part 12 : 12 अगस्त 1947, मंगलवार के दिन जब कश्मीर की राजनीति में नया अध्याय शुरू हुआ…

यह भी पढ़ें : 15 August 1947 Untold Stories Part 11 : 11 अगस्त 1947, सोमवार के दिन जब महात्मा गांधी सोडेपुर आश्रम पहुंचे…

यह भी पढ़ें : 15 August 1947 Untold Stories Part 10 : 10 अगस्त 1947, रविवार के दिन प्रतिनिधियों का विभाजन के प्रति गहरा क्रोध…

यह भी पढ़ें : 15 August 1947 Untold Stories Part 9 : 9 अगस्त 1947, शनिवार का वो नवां दिन…

यह भी पढ़ें : 15 August 1947 Untold Stories Part 8 : 8 अगस्त 1947, शुक्रवार के दिन वेंकटाचार ने जोधपुर रियासत को पकिस्तान में जाने से बचा लिया…

यह भी पढ़ें : 15 August 1947 Untold Stories Part 7 : 7 अगस्त 1947, गुरुवार के दिन अमृतसर से आरंभ हुई गांधीजी की ट्रेन यात्रा…

यह भी पढ़ें : 15 August 1947 Untold Stories Part 6 : 6 अगस्त 1947 बुधवार का दिन, महात्मा गांधी की लाहौर यात्रा…

यह भी पढ़ें : 15 August 1947 Untold Stories Part 5 : 5 अगस्त 1947, मंगलवार का वो दिन जब गांधी शरणार्थी शिविर में जाना चाहते थे…

यह भी पढ़ें : 15 August 1947 Untold Stories Part 4 : तथाकथित आजादी के वो पंद्रह दिन…

यह भी पढ़ें : 15 August 1947 Untold Story : तथाकथित आजादी के वो पंद्रह दिन…